इंदौर : कालजयी धर्मग्रंथ रामायण में मंथरा को खलनायिका की दृष्टि से देखा जाता है।महारानी कैकेयी के कान भरकर प्रभु श्रीराम को वनवास पर भिजवाने का दोषी मंथरा को ही माना जाता है पर वरिष्ठ कवि सत्यनारायण सत्तन ने अपने खंडकाव्य ‘मंथरा’ में उसके सकारात्मक पक्ष को उभारने का प्रयास किया है। इसी खंड काव्य को ‘मंथरा गान’ के रूप में कवि व साहित्यकार पुष्पेंद्र पुष्प द्वारा पेश किया जा रहा है।
प्रति सप्ताह हिंदी साहित्य समिति के सभागार में पेश किए जाने वाले इस कार्यक्रम की चौथी कड़ी का आयोजन हाल ही में किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो. डॉक्टर श्यामसुंदर पलोड़ ने की। विशेष अतिथि के रूप में कमलेश दवे सहज उपस्थित थे।
पुष्पेंद्र पुष्प ने 12 कड़ियों में विभाजित मंथरा गान के चौथे एपिसोड में मंथरा के व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं को रेखांकित किया। उन्होंने मंथरा के मुख से कहे गए शब्दों को प्रभु की लीला निरूपित किया।
कार्यक्रम में अतिथिद्वय प्रो. पलोड़ और कमलेश दवे ने अपने विचार रखे।
प्रारंभ में दीप प्रज्वलन एवं मां सरस्वती का पूजन अतिथियों द्वारा किया गया। सरस्वती वंदना डॉक्टर शशि निगम ने प्रस्तुत की। अतिथियों का स्वागत सत्य प्रकाश सक्सेना, नयन राठी द्वारा किया गया। कार्यक्रम का संचालन एलएनउग्र द्वारा किया गया।
शहर के प्रबुद्ध नागरिक साहित्यकार कवि पत्रकार समाजसेवी गणमान्य नागरिक एवं मातृशक्ति उपस्थित थे ।श्री अरविंद जवलेकर जी ने सभी के प्रति आयोजन में उपस्थित अतिथियों और श्रोताओं का आभार व्यक्त किया । प्रसादी के उपरांत आयोजन का समापन हुआ।