हर शिक्षित व्यक्ति एक गरीब को शिक्षा देने का प्रण लेंं..
अभ्यास मंडल की व्याख्यानमाला में बोले डॉ. वेदप्रकाश मिश्रा।
इंदौर : प्रसिद्ध शिक्षाविद डॉ. वेद प्रकाश मिश्रा ने कहा है कि हर शिक्षित नागरिक एक गरीब व्यक्ति को शिक्षित करने का प्रण लें, तो देश में शिक्षा का परिदृश्य बदल सकता है। हमारे देश की चिकित्सा शिक्षा इतनी बेहतर है कि वह सबसे पहले विश्व गुरु का दर्जा हमें दिला सकती है ।
डॉ मिश्रा जाल सभागृह में आयोजित अभ्यास मंडल की 64 वीं ग्रीष्मकालीन व्याख्यान माला को संबोधित कर रहे थे। उनका विषय था ‘शिक्षा का व्यवसायीकरण और वर्तमान चुनौतियां।’ उन्होंने कहा कि 15 अगस्त 1947 को देश के आजाद होने के बाद जब संविधान का निर्माण किया जा रहा था, उस समय सबसे पहला प्रश्न यह था कि शिक्षा किसके लिए हो? उस समय पर हमारे संविधान के निर्माताओं ने तय किया कि शिक्षा सभी के लिए होना चाहिए। इसमें जाति, रंग ,लिंग, धर्म का भेदभाव नहीं होना चाहिए। संविधान के अनुच्छेद 19 और 21 में इस बात के लिए प्रावधान किया गया। ये भी कहा गया कि शिक्षा का उद्देश्य केवल आजीविका नहीं होगा। डॉ.मिश्रा ने कहा कि हमारे देश में शिक्षा का व्यवसायिकरण अनायास नहीं हो गया, जब सरकारों ने शिक्षा को अनदेखा करना शुरू किया तो उस खाली स्थान को निजी शिक्षण संस्थानों ने हथिया लिया। जब देश आजाद हुआ था उस समय पर हमारे देश में साक्षरता की दर 2 प्रतिशत थी, उस समय पर हमारे देश में 17 मेडिकल कॉलेज चल रहे थे। इन कॉलेज में 960 सीट थी और देश की आबादी 30 करोड़ थी। इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि उस समय पर हमारे देश में केवल 1.02% आबादी को उच्च शिक्षा प्राप्त थी।
उन्होंने कहा कि वर्ष 1952 में देश में पहला शिक्षा आयोग बनाया गया। इसके अध्यक्ष सर्वपल्ली राधाकृष्णन थे। इस आयोग द्वारा जो अनुशंसा की गई उसमें यह कहा गया कि देश के कुल जीडीपी का 6% शिक्षा पर और 6% स्वास्थ्य पर खर्च किया जाए। उस समय से लेकर आज तक कभी भी बजट में 6% राशि शिक्षा को नहीं दी गई। अब तक के इतिहास में अधिकतम 2.93% राशि शिक्षा के लिए आवंटित की गई है।
उन्होंने कहा कि हमारे देश में यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है की फीस के अभाव में प्रतिभावान बच्चे पढ़ नहीं पाते हैं।आज देश में 810 चिकित्सा महाविद्यालय हैं, इसमें से 1991 के बाद 571 खोले गए हैं। इसमें 412 प्राइवेट चिकित्सा महाविद्यालय हैं। देश में 1146 विश्वविद्यालय हैं, इसमें से 85% प्राइवेट विश्वविद्यालय हैं ।शिक्षा के क्षेत्र में निजी क्षेत्र कभी भी चैरिटी के लिए नहीं आता है बल्कि फायदे के लिए आता है ।
उन्होंने कहा कि प्राइवेट कॉलेज पहले अनुदान पर चलते थे। फिर बिना अनुदान के चलने लगे और आज कमाने के लिए चल रहे हैं। चुनौतियां कभी भी ना तो आसमान से आती है ना धरती में से निकलती है वह तो व्यवस्था के माध्यम से निर्मित होती है।
डॉ मिश्रा ने कहा कि चरित्र और व्यक्ति के निर्माण का कार्य शिक्षा के माध्यम से किया जाना चाहिए था। आज शिक्षा दो वर्गों में आम आदमी की शिक्षा और ऊपर क्लास की शिक्षा के रूप में बंट गई । वर्तमान में हमारे देश में मात्र 28.5% लोग उच्च शिक्षा हासिल कर पा रहे हैं। सरकार के द्वारा यह लक्ष्य रखा गया है कि 2035 तक हम 50% लोगों तक उच्च शिक्षा को पहुंचा देंगे। इस आंकड़े से यह स्पष्ट है कि 72% लोग उच्च शिक्षा से वंचित है। वे शिक्षा के माध्यम से मिलने वाले अवसरों से वंचित हैं। दुनिया के दूसरे देशों में 66% आबादी के पास उच्च शिक्षा है। पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम आजाद ने कहा था कि 21 वीं सदी भारत की है। हम अपने देश के नागरिकों के सपनों को कौशल में बदलकर साधन संपन्न बना देंगे। इस समय हमारे देश की असली ताकत 64% वह आबादी है जिसकी उम्र 35 वर्ष से कम है। हमारे देश के संविधान में शिक्षा की गारंटी तो दी है लेकिन गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की गारंटी नहीं दी है। वर्ष 1994 में नेक द्वारा विद्यालय को अधिमान्यता देने का काम शुरू किया गया। देश में 9.6% विश्वविद्यालय अधिमान्य है और इसमें से भी केवल 0.68 प्रतिशत विश्वविद्यालय के पास ए ग्रेड है। हमारे देश में 12% बच्चे ऐसे हैं जो की चौथी कक्षा में पढ़ने के लिए जाने के पहले स्कूल छोड़ देते हैं।यह स्थिति चिंताजनक नहीं बल्कि चिंतन का विषय है।
उन्होंने कहा कि यदि देश में शिक्षा के परिदृश्य को बदलना है तो हर एक शिक्षित नागरिक एक गरीब के बच्चे को शिक्षित करने की जिम्मेदारी का वहन करना चाहिए।
डॉ मिश्रा ने कहा कि हमने मेडिकल चिकित्सा का एक सिस्टम विकसित करके वर्ष 2015 में देश में सामने रखा था जिसे 2023 में वैश्विक मान्यता प्राप्त हुई। अब चिकित्सा शिक्षा एक ऐसा क्षेत्र बन गया है जिसमें कि भारत सबसे पहले विश्व गुरु बन सकता है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए शिक्षाविद शंकर लाल गर्ग ने कहा कि चिराग से ही नहीं शिक्षा से भी घर रोशन होते हैं। पहले के समय पर बच्चों का ऐसे स्कूलों में एडमिशन किया जाता था जहां पर उसकी कुटाई ज्यादा होती थी। आज के समय में पैसा कमाना ही शिक्षण संस्थानों का लक्ष्य रह गया है। कार्यक्रम के प्रारंभ में अतिथियों का स्वागत शफी शेख, पुरुषोत्तम वाघमारे ,आदित्य सिंह, मिर्जा हबीब बेग, नयनी शुक्ला व मयंक शर्मा ने किया। कार्यक्रम का संचालन कुणाल भंवर ने किया। अतिथियों को स्मृति चिन्ह डॉ भरत छापरवाल और राधेश्याम शर्मा ने भेंट किए। अंत में आभार प्रदर्शन स्टेट प्रेस क्लब के अध्यक्ष प्रवीण खारीवाल ने किया।