इंदौर : सरकारें गरीब और आदिवासी वर्ग के उत्थान के दावे और वादे करते नहीं थकतीं लेकिन हकीकत ये है कि इन वर्गों की परेशानी को हल करने में किसी की रुचि नहीं होती। राजनीतिक दलों को भी इनकी याद केवल चुनाव के समय ही आती है। विकास के नाम पर यही वर्ग उजाड़ा जाता है और दर- दर भटकने के लिए उसे छोड़ दिया जाता है। दिल्ली- मुम्बई एक्सप्रेस हाइवे के लिए झाबुआ जिले के सैकड़ों आदिवासी परिवारों की जमीन और खेत अधिग्रहित किए जा रहे हैं पर उनके पुनर्वास की ओर शासन- प्रशासन ध्यान नहीं दे रहा है।
21 गांवों के लोग हो रहे प्रभावित।
एक्सप्रेस हाइवे से प्रभावित इलाकों के लोगों ने जनजाति विकास मंच बनाकर लड़ाई लड़ने का ऐलान कर दिया है। शनिवार को मंच से जुड़े लोग इंदौर आए और प्रेस क्लब में पत्रकार वार्ता के जरिए अपनी बात रखी। मंच के कैलाश अमलियार, पुंजालाल निनामा लीला बेन और रिटायर्ड डीएसपी गोविंद भूरिया ने विस्तार से मामले पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि झाबुआ जिले से दिल्ली- मुम्बई एक्सप्रेस हाइवे का 48 किमी का हिस्सा गुजरता है। करीब 100 मीटर चौड़े इस हाइवे के लिए थांदला, मेघनगर तहसील के 21 गांवों की करीब 1517 हेक्टेयर जमीन अधिग्रहित की गई है। जिन गांवों की जमीन अधिग्रहित की गई है उनमें चोखवाड़ा, ढेबर, तलाई, आमली, वडलीपाड़ा, भामल, दौलत, दौलतपुरा, हेड़ावा, कलदेला, खादन, कुकडिपाड़ा, मियाटी, मोरझरी, मुंजाल, नवापाड़ा, नौगावां नगला, नौगावां सोमला, रणनी, रूपगढ़, तलवाड़ा, टिमरवानी और उदेपुरिया।
थांदला तहसील के 265 परिवारों को किया जा रहा बेदखल।
जनजाति विकास मंच के पदाधिकारियों ने बताया कि केवल थांदला तहसील के वडलीपाड़ा, भामल और अन्य गांवों के 265 परिवार ऐसे हैं जिन्हें बेदखली का नोटिस स्थानीय प्रशासन ने थमा दिया है। जबकि मकान, जमीन और खेत का कोई मुआवजा नहीं दिया जा रहा है। प्रशासन के अधिकारियों से कई बार गुहार लगाने के बाद भी उनकी सुनवाई नहीं की जा रही है।
जनप्रतिनिधि भी नहीं दे रहे ध्यान।
जनजाति विकास मंच के पदाधिकारियों के साथ आए पीड़ित परिवारों ने बताया कि उन्होंने इस अन्याय के खिलाफ आंदोलन भी किया था पर लॉक डाउन के चलते उसे स्थगित करना पड़ा। अपनी समस्या को लेकर वे झाबुआ के सांसद गुमानसिंह डामोर और विधायक वीरसिंह भूरिया से भी मिले पर सिवाय आश्वासन के उन्हें कुछ नहीं मिला।
ठेकेदार के लोग दे रहें धमकियां।
पीड़ितों का कहना था कि एक्सप्रेस हाइवे का निर्माण करने वाले ठेकेदार के लोग उन्हें आकर धमका रहे हैं।उनके खेतों में खड़ी फसल को नष्ट किया जा रहा है, जिससे उनके समक्ष भुखमरी के हालात पैदा हो रहे हैं।
पटवारी पैसा लेते हैं पर रसीद नहीं देते।
पीड़ित आदिवासी परिवारों का कहना था कि वे बरसों से उस जमीन पर रहते हुए खेती कर रहे हैं। पटवारी को वे टैक्स भी देते हैं पर उन्हें उसकी रसीद नहीं दी जाती।
बारिश में न हो बेदखली।
पीड़ित परिवारों की शासन- प्रशासन से मांग है कि बारिश के मौसम में उनकी जमीन और खेत अधिग्रहित न किए जाए। उनकी आजीविका का सहारा सिर्फ खेती है। अगर अभी उन्हें बेदखल किया जाता है तो वे दाने- दाने को मोहताज हो जाएंगे।
खेत और जमीन का मिले समुचित मुआवजा।
जनजाति विकास मंच और प्रभावित आदिवासी परिवारों का कहना था कि वे एक्सप्रेस हाइवे के विरोधी नहीं हैं लेकिन उनका समुचित पुनर्वास होना चाहिए। उन्हें अधिग्रहित जमीन के बदले जमीन, खेत और रहवास के लिए समुचित मुआवजा दिया जाना चाहिए। उन्होंने शासन- प्रशासन से मांग की है कि उनकी समस्या का शीघ्र निराकरण किया जाए अन्यथा वे आंदोलन के साथ कोर्ट का दरवाजा खटखटाने पर विवश होंगे।