ANALYSIS: सिर्फ प्रॉफिट पर फोकस करते रहे मिस्त्री; 8 लाख करोड़ के टाटा ग्रुप से उन्हें हटाने के ये हैं बड़े कारण

  
Last Updated:  October 25, 2016 " 11:38 am"

नई दिल्ली/मुंबई.रतन टाटा को अपना उत्तराधिकारी चुनने में तीन साल का वक्त लगा था। उन्होंने ग्रुप को 1991 में 10 हजार करोड़ के कारोबार से 2012 में 4.75 लाख करोड़ रुपए तक पहुंचा दिया था। लेकिन चेयरमैन बने 48 साल के साइरस को हटाकर अब 78 साल के रतन को इंटरिम चेयरमैन बना दिया गया है। आज आठ लाख करोड़ रुपए के मार्केट कैप वाले इस ग्रुप के 148 साल के इतिहास में सोमवार को ऐसा पहली बार हुआ, जब किसी चेयरमैन को हटाया गया है। साइरस को हटाने के पीछे तीन बड़ी वजह मानी जा रही हैं। पढ़ें कॉरपोरेट हिस्टोरियन और कॉलमिस्ट प्रकाश बियाणी का एनालिसिस…
क्या रही साइरस को हटाने की 8 बड़ी वजह?
1. सिर्फ मुनाफा कमा रही कंपनियों पर कर रहे थे फोकस
– कंपनी के बोर्ड ने कोई ठोस कारण नहीं बताया है, लेकिन माना जा रहा है कि टाटा सन्स अपने ग्रुप की नॉन-प्रॉफिट बिजनेस वाली कंपनियों से ध्यान हटाने की मिस्त्री की सोच से नाखुश थी। इसका एक उदाहरण यूरोप में टाटा स्टील का बिजनेस है।
– मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, रतन टाटा को लगता था कि साइरस का पूरा फोकस टाटा कंसल्टेंसी सर्विस यानी टीसीएस पर है। जबकि ये कंपनी पहले ही प्रॉफिट में है और सबसे ज्यादा मजबूत है। लेकिन साइरस उन कंपनियां के लिए ज्यादा कुछ नहीं कर रहे थे जो दिक्कतों का सामना कर रही हैं।
– मिस्त्री परंपरागत कारोबार से ध्यान हटाकर ‘कैश काउज’ पर ही फोकस कर रहे थे। ये बोर्ड को नागवार गुजरा।
– हालांकि, मिस्त्री के लिए भी ये चैलेंज से भरा रहा, क्योंकि उन्हें घाटे के चलते यूके में टाटा स्टील को बेचने का फैसला करना पड़ा। सितंबर 2015 में पहली बार यूरोप में टाटा स्टील काे घाटा झेलना पड़ा।
– 2016 के फर्स्ट क्वार्टर में टाटा स्टील को 3 हजार करोड़ रुपए का घाटा हुआ। ब्रिटेन जैसे ही यूरोपियन यूनियन से बाहर हुआ, टाटा स्टील पर संकट मंडराने लगा।
2. घट रहा था ग्रुप का परफॉर्मेंस
– टाटा ग्रुप के ऑटोमोबाइल से लेकर रिटेल तक और पावर प्लान्ट से सॉफ्टवेयर तक, करीब 100 बिजनेस हैं। इनमें से कई कंपनियां मुश्किल दौर से गुजर रही हैं।
– फाइनेंशियल ईयर 2016 में ग्रुप की 27 लिस्टेड कंपनियों में से नौ कंपनियां नुकसान में चल रही हैं। सात कंपनियों की कमाई में भी कमी आई है।
– 2014-15 में टाटा ग्रुप का टर्नओवर 108 अरब डॉलर था जो 2015-16 में घटकर 103 अरब डॉलर रह गया।
– साइरस मिस्त्री के कार्यकाल में टाटा समूह का कारोबार आगे नहीं बढ़ा। रतन टाटा से मिस्त्री को 108 बिलियन डालर का सालाना करोबार (2014-15) मिला था, जो 2015-16 में घटकर 103 बिलियन डालर रह गया।
– ग्रुप का कुल कर्ज/देनदारी मार्च 2015 में जहां 23.4 अरब डॉलर थी, वह मार्च 2016 में बढ़कर 24.5 अरब डॉलर हो गई।
– ग्रुप पर कर्ज करीब 1 बिलियन डाॅलर बढ़ा है।
3. कानूनी मुकदमें, बड़ा फाइन
– पिछले एक साल में इंटरनेशनल कोर्ट खासकर यूएस में टाटा समूह की खूब फजीहत हुई। इनमें सबसे ज्यादा काबिल-ए-गौर है यूएस ग्रैंड ज्यूरी की तरफ से समूह की सबसे कमाऊ कंपनी टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेस और टाटा अमेरिका इंटरनेशनल कॉरपोरेशन पर लगा फाइन।
– दोनों कंपनियों पर ज्यूरी ने एक ट्रेड सीक्रेट मुकदमे के तहत 94 करोड़ डॉलर (करीब 6000 करोड़ रुपए) का फाइन लगाया था।
– टाटा ग्रुप जापान की डोकोमो से भी टेलिकॉम ज्वाइंटर वेंचर के बंटवारे को लेकर कानूनी लड़ाई लड़ रहा है। डोकोमो टाटा टेलि सर्विसेस से अलग हो चुकी है।
– डोकोमो ने टाटा से 1.2 बिलियन डॉलर का हर्जाना मांगा। ऐसा ना होने पर टाटा की ब्रिटिश प्रॉपर्टीज पर मालिकाना हक दिए जाने की मांग की।
4. शेयरधारकों से खराब व्यवहार
– टाटा मोटर्स के शेयरहोल्डर्स ने अगस्त 2016 में शिकायत की थी कि उन्हें एक शेयर का सिर्फ 20 पैसे डिविडेंड दिया गया।
– तब मिस्त्री ने इस कदम को सही ठहराया था। उन्होंने कहा, अाप सभी से जुटाई पूंजी नए प्रोडक्ट्स में लगा रहे हैं। इस लंबे सफर में कमजोर दिल वालों की जगह नहीं है।
5. ग्रुप का बेतरतीब ढांचा
– ग्रुप की कंपनियों में क्रॉस ऑनरशिप है। टाटा संस की टाटा मोटर्स या टाटा स्टील में हिस्सेदारी है और इन कंपनियों की एक-दूसरे में हिस्सेदारी है। इससे डाइवर्सिफाइड ग्रुप के रूप में पहचान नहीं बन पा रही। वहीं, टाटा समूह के कार्यप्रणाली में नौकरशाही का दबदबा है।
6. ग्रोथ की ठोस योजना नहीं
– साइरस मिस्त्री चाहते थे कि 2025 तक टाटा समूह मार्केट कैप के लिहाज से दुनिया के टॉप-25 में आ जाए और समूह की पहुंच दुनिया की 25% आबादी तक हो जाए। लेकिन वे इसके संकेत ही दे सके। डिटेल प्लान पेश नहीं कर पाए।
7. फैसले लेने में देरी करते रहे
– मिस्त्री समूह के विभिन्न कारोबार की लीडरशिप में जान फूंक नहीं पाए।
– 2014 में कार्लस्लिम की माैत के बाद टाटा मोटर्स में सीईओ नियुक्त करने में देरी की। हालांकि, टीसीएस के लिए एन चंद्रशेखरन जैसा स्मार्ट लीडर खोजन में कामयाब रहे।
8. स्लोलर्नर, क्लास अटेंड करते रहे
– मिस्त्री ने पहले तीन साल टाटा समूह के कारोबारी साम्राज्य और इसकी जटिलताओं को समझने में लगा दिए। भू-राजनैतिक, टेक्नोलॉजी और सामाजिक मसलों पर अपनी समझ ही बढ़ाते रहे। क्लासरूम और सेमिनार में नई-नई पाॅलिसी ही सीखते रहे।
कैसे हटाए गए साइरस?
– साइरस पालोनजी मिस्त्री के बेटे हैं। उनके ग्रुप की टाटा सन्स में 18.4 फीसदी की हिस्सेदारी है जो उनके दादाजी शापूरजी मिस्त्री ने 1936 में खरीदी थी। किसी एक शेयरहोल्डर की टाटा समूह में यह सबसे ज्यादा होल्डिंग है।
– चेयरमैन बनने से पहले साइरस शापूर पालोनजी कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर और टाटा एलक्सी और टाटा पावर के डायरेक्टर थे।
– शापूरजी और पालोनजी ग्रुप का कहना है कि साइरस को जिस तरीके से हटाया गया है, वह गलत है। फैसला आम सहमति से नहीं लिया गया था।
– टाटा सन्स बोर्ड के 8 में से 6 मेंबर्स ने मिस्त्री को हटाने का फैसला किया। हालांकि, दो मेंबर्स ने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया।
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