उम्र के बंधन में न बांधे खुशियों को…
(लघुकथा) गौरी बालकनी में बैठे-बैठे अपने अतीत की यादों में खोई हुई थी। कैसे बाल्यकाल से ही सबसे बड़ी होने का दायित्व निभाया। कभी छोटी बहन अस्वस्थ हुई। असमय पिता एक्सीडेंट का शिकार हुए, उसके बाद माँ की ज़िम्मेदारी और भाई की मानसिक स्थिति। इन सबके बीच गौरी केवल और केवल परिस्थितियों से जूझती रहीं। गौरी की बाल्यावस्था तो मात्र संघर्ष की अनवरत यात्रा थी। बाल्यकाल में तो उसे कभी सुख की परिभाषा समझ ही नहीं आई। कुछ समय पश्चात और पढ़े