इंदौर : कोरोना संक्रमण ने हमारी जिंदगी को गहरे तक प्रभावित किया ही, त्योहारों की रौनक को भी खत्म कर दिया। बरसों से चली आ रही परंपराएं भी कोरोना के कहर से बच नहीं पाई। इंदौर का सबसे बड़ा लोकोत्सव गणेश विसर्जन चल समारोह भी कोरोना की भेंट चढ़ गया। कपड़ा मिल मजदूरों के परिश्रम और जुनून के प्रतीक इस चल समारोह में निकलने वाले झिलमिलाती झांकियों के कारवां को देखने से शहर के लोग इस बार वंचित रहे पर कहते हैं न, जहां चाह, वहां राह। सड़कों पर जगमगाती झांकियों के दीदार भले ही न हुए हों पर खजराना गणेश की झांकी ने डिजिटल प्लेटफार्म पर अपनी छटा जरूर बिखेरी।
अजय मलमकर ने टूटने नहीं दी खजराना गणेश की झांकी की परंपरा।
शहर के जाने- माने कलाकर अजय मलमकर हर साल खजराना गणेश की झांकी का निर्माण करते हैं। गणेश विसर्जन चल समारोह में खजराना गणेश की झांकी सबसे आगे रहती है। इस बार कोरोना संक्रमण काल के चलते प्रशासन ने चल समारोह की अनुमति नहीं दी इसलिए मिलों की झांकियां भी नहीं बन पाई पर अजय मलमकर खजराना गणेश की झांकी की परंपरा टूटने नहीं देना चाहते थे। उन्होंने इसके लिए थ्री डी तकनीक का सहारा लिया। इसके जरिये उन्होंने चलित ई- झांकी का निर्माण किया। झांकी के पहले हिस्से में विघ्नहर्ता से दुनिया के विघ्न हरने की प्रार्थना की गई। मध्य भाग में कोरोना के खिलाफ जंग लड़ते हुए लोगों की जिंदगी की रक्षा करने वाले योद्धाओं को नमन करते हुए उनका आभार जताया गया। झांकी के आखरी हिस्से में खजराना गणेश की प्रतिकृति बनाई गई है। इस मनोहारी और नयनाभिराम झांकी को अजय ने डिजिटल प्लेटफार्म (यू ट्यूब) के जरिए लोगों तक पहुंचाया। इस तरह उन्होंने खजराना गणेश की झांकी की परंपरा को भी बरकरार रखा।
लोगों ने अजय की कला और प्रयासों को दी दाद।
अजय मलमकर के परंपरा को कायम रखने की कवायद में ई- झांकी के इस साकार और कामयाब प्रयास को लोगों की भरपूर सराहना मिली। बड़ी संख्या में खजराना गणेश की इस चलित ई- झांकी को देखा और सराहा।
पिता की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं अजय।
आपको बता दें कि अजय के पिता बाबूराव मलमकर ख्यात झांकी कलाकार रहे हैं। उन्हीं से अजय मलमकर ने कला गुण आत्मसात किए। बीते कई वर्षों से वे खजराना गणेश की झांकी को आकार दे रहे हैं। प्रसिद्ध संत मुरारी बापू के कार्यक्रमों में मंच सज्जा की जिम्मेदारी अजय ही संभालते रहे हैं। परदेशीपुरा स्थित गेंदेश्वर महादेव मंदिर में विभिन्न अवसरों पर साज सज्जा का दायित्व भी उनके कंधों पर रहता है।