लगातार सिकुड़ रही है नर्मदा नदी..
पारंपरिक जल स्रोतों के सहेजने के साथ छतों से बहने वाले पानी को जमीन में उतारने की है जरूरत..
वर्षा जल को सहेजे और बड़ी संख्या में लगाए पेड़..
अभ्यास मंडल की मासिक व्याख्यानमाला में बोले ख्यात पर्यावरणविद डॉ.सुनील चतुर्वेदी।
इंदौर : ख्यात पर्यावरणविद्ध डॉ. सुनील चतुर्वेदी ने आगाह किया है कि सतपुड़ा के घने जंगल जिस तरह से काटे जा रहे हैं और नर्मदा नदी पर बड़े बांधों का निर्माण हो रहा है, उसके चलते जीवनदायिनी नर्मदा दिनों दिन सिकुड़ती जा रही है, ऐसे में इंदौर को नर्मदा का पानी अधिकतम 30- 35 वर्ष और मिल सकता है। अतः ज़रूरी है की हम आज से ही वर्षा के जल को सहेजे और अधिक से अधिक पेड़ लगाए।
डॉ.चतुर्वेदी श्री मध्य भारत हिंदी साहित्य समिति के सभागार में अभ्यास मंडल की मासिक व्याख्यानमाला में मुख्य वक्ता के रूप में बोल रहे थे। व्याख्यान का विषय था ‘जलवायु परिवर्तन के दौर में जल सरंक्षण की आवश्यकता एवं महत्व’ ।
खत्म होते जा रहे पारंपरिक जलस्रोत।
डॉ. चतुर्वेदी ने कहा कि जल ही जीवन है और हम सब जल पर निर्भर है। लेकिन बीते कुछ वर्षो से जल संकट बढ़ता जा रहा है।नदियां सूख कर नाले में तब्दील हो रही है। पारंपरिक जल स्रोत कुएं, बावड़ियां, पोखर और तालाब खत्म होने की कगार पर हैं। कुएं – बावड़ियां बंद की जा रही हैं। तालाबों के कैचामेंट एरिया में अतिक्रमण हो गए हैं।ग्लोबल वार्मिंग का असर ऋतुचक्र पर दिखाई देने लगा है। जल की कमी का एक बड़ा कारण यह भी है कि हम जितना पानी जमीन से निकाल रहे है उतना सहेज नही रहे है। अत ये संकट प्रकति प्रदत्त कम और मानव प्रदत्त अधिक है।
घरों की छत से बहने वाले वर्षा जल को सहेजें।
डॉ .चतुर्वेदी ने कहा कि वर्षा के जल को सहेजकर कर हम एक बड़े संकट से बच सकते हैं। सबसे अच्छा तरीका यह है कि हम वॉटर हार्वेस्टिंग को अपनाएं। घरों की छतों से बहकर निकल जाने वाले वर्षा जल को हम पाइप के सहारे जमीन में उतारें। एक अनुमान के मुताबिक वर्षा ऋतु में 1500 वर्ग फीट की छत पर करीब डेढ लाख लिटर पानी एकत्रित होता है जिसका अधिंकाश हिस्सा बह जाता है। वर्षा के जल को सहेजने का तरीका ये है कि जमीन में चार बाय चार फीट का गड्डा खोदे और उसमें नीचे तक पाइप डाले। इस तरकीब से भू जल स्तर बढ़ेगा। उन्होंने कहा कि वर्षा जल से भूजल स्तर को बढ़ाते समय अधिक सावधानी की भी जरूरत है, क्योंकि अगर भूमि पर कार्बन,प्लास्टिक या और कोई अपशिष्ट है तो वह भी वर्षा जल के साथ भूमि में जाएगा। जो रोग का कारण बनेगा। पानी में आर्सेनिक की मात्रा अधिक होगी तो कैंसर का खतरा और यदि फ्लोराइड की मात्रा बढ़ गई तो हड्डियों का कमजोर होना तय है। डॉ. चतुर्वेदी ने बताया कि पानी की बड़ी टंकी में छत से बहने वाला वर्षा का जल एकत्रित कर उसे घरेलू कार्यो में उपयोग किया जा सकता है।
डॉ .चतुर्वेदी ने कहा कि सभी ग्रहो मे एकमात्र पृथ्वी ही ऐसी है जहाँ जीवन है लेकिन जिस तेजी से पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है, वह आने वाले समय में खतरे का बड़ा संकेत है।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में रिटायर्ड डीआईजी धर्मेंद्र चौधरी ने कहा कि उन्होंने सरकारी सेवा कार्य के दौरान आदिवासी क्षेत्र झाबुआ में वर्षा जल को सहेजा था उसके अच्छे परिणाम निकले। आवश्यकता इस बात की है कि हम वर्ष भर सचेत रहे और जल को सहेजे।
मंच पर अभ्यास मंडल के अध्यक्ष रामेश्वर गुप्ता और सचिव माला ठाकुर भी उपस्थित थे।अशोक कोठारी, स्वप्निल व्यास, ,एन के उपाध्याय, हबीब बेग आदि ने अतिथियों का स्वागत तुलसी के पौधे से किया। अतिथियों को प्रतीक चिन्ह पर्यावरणविद एस एल गर्ग और वरिष्ठ पत्रकार कीर्ति राणा ने प्रदान किए। कार्यक्रम का संचालन वैशाली खरे ने किया और आभार सुनील व्यास ने माना। कार्यक्रम मे पर्यावरणविद् ओपी जोशी, शंकर गर्ग, ओम नरेड़ा, नेताजी मोहिते,संजय गुप्ता, शरद कटारिया,दशरथ गोलाने, अनिल भोजे, किशन सोमानी,फादर लाकरा, कुणाल भंवर,दीप्ति गौर सहित कई प्रबुद्धजन बडी संख्या में उपस्थित थे।
ट्रैफिक वॉलेंटियर्स का सम्मान।
इस मौके पर यातायात व्यवस्था में सहयोग देने वाले ट्रैफिक वॉलेंटियर्स का अभ्यास मंडल की ओर से सम्मान किया गया।