अखबारों में सिमटता साहित्य चिंता की बात..

  
Last Updated:  April 9, 2025 " 02:34 am"

कॉरपोरेट कल्चर से अखबारों से गुम हुआ साहित्य..

इंदौर प्रेस क्लब के मीडिया कॉन्क्लेव में बोले वक्ता।

इंदौर : इंदौर प्रेस क्लब का पहले दिन का तीसरा सत्र ‘अखबारों में सिमटता साहित्य’ के नाम रहा। विभिन्न वक्ताओं ने अलबारों में साहित्य को जगह कम मिलने पर चिंता जताई। कुछ का यह भी कहना था कि इसका कारण साहित्य की गुणवत्ता में कमी आना है।

साहित्य के नाम पर फूहड़ता न हो।

दैनिक जागरण दिल्ली के वरिष्ठ पत्रकार अनन्त विजय ने कहा कि हमें सबसे पहले यह समझना होगा कि हम साहित्य किसे मान रहे हैं। सिनेमा, रंगमंच, लघुकथा क्या यही साहित्य हैं। आज देश में स्वतंत्र रूप से लिखने वालों की कमी हो गई है। अगर हम यह सोचें कि साहित्य के नाम पर अखबारों में फूहड़ता लिखें तो सच में स्थान की कमी हो गई है। अगर घटिया साहित्य को ही लेखन मान लिया जाएगा तो बचेगा क्या। उन्होंने कहा कि लेखन में गुणवत्ता की कमी है। हरीशंकर परसाई, शरद जोशी, श्रीलाल शुक्ल जैसे कितने ही मूर्धन्य साहित्यकार हैं, जिनका आज भी तोड़ नहीं हैं। अगर हम अपनी लेखनी पर स्वयं ध्यान देकर सब आरोप अखबारों पर लगा देंगे तो यह ज्यादती होगी।

पत्रकारिता और साहित्य दोनों के दृष्टिकोण बदले हैं।

एनडीटीवी इंडिया के सीनियर एक्जीक्यूटिव एडिटर प्रियदर्शन ने कहा कि आजादी की जंग में पत्रकारिता की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। यह पत्रकारिता जेलों में गढ़ी गईं और उसका अपना संघर्ष रहा है। समय और काल के साथ पत्रकारिता में बड़ा बदलाव आया है, जिससे साहित्य का स्थान अपने आप कम हो गया। आज की कविताओं में कविता नहीं है। कहानियों से कहानी गायब है, जो साहित्य के लिए चिंतनीय है। जीवन की घटनाओं से साहित्य का जन्म होता है और साहित्य का अपना दृष्टिकोण भी होता है। वक्त के साथ पत्रकारिता और साहित्य दोनों के दृष्टिकोण बदल गए। आज का साहित्य रसहीन है। एक दौर था जब पत्रकारिता ही साहित्य का हिस्सा हुआ करती थी। फिर पत्रकारिता में साहित्य का दौर आया और आज दोनों की धुरी अलग-अलग है।

कॉरपोरेट कल्चर आने से अखबारों में सिमटा साहित्य।

वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार निर्मला भुराडिय़ा ने कहा कि साहित्य से मनुष्य में चेष्टा जागृत होती थी, लेकिन समय के साथ यह कम हो गई। अखबारों से साहित्य में कमी आई जो चिंता की बात है। कार्पोरेट कल्चर आने के बाद पत्रकारिता से साहित्य दिनों-दिन गुम होता जा रहा है। युवाओं का ध्यान भी साहित्य पर नहीं है, जो चिंतनीय है। एक दौर था जब युवाओं में साहित्य के प्रति ललक होती थी, आज यह खत्म हो गई है।

साहित्य से संवेदना गायब है।

वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. स्वाति तिवारी ने कहा कि एक दौर था, जब अखबार भी साहित्य का हिस्सा हुआ करते थे, लेकिन समय के साथ इसमें भी बदलाव आया। किसी घटना को देखकर एक साहित्यकार जो सृजन करता था, उसमें संवेदना हुआ करती थी। यह संवेदना ही समाज को गति प्रदान करती थी, लेकिन आज के साहित्य में संवेदना गायब है। इस सत्र की मॉडरेटर डॉ. अमिता नीरव थी।

कार्यक्रम में विशेष रूप से उपस्थित नईदुनिया के स्टेट एडिटर सद्गुरुशरण अवस्थी, संपादक डॉ. जितेन्द्र व्यास और नवभारत समूह के संपादक क्रांति चतुर्वेदी का इस मौके पर स्वागत भी किया गया।

मप्र शासन के कैबिनेट मंत्री तुलसी सिलावट ने भी मीडिया कॉन्क्लेव में अपनी भागीदारी दर्ज कराते हुए इस आयोजन के प्रति अपनी शुभकामनाएं व्यक्त की।

अतिथियों का स्वागत मुकेश तिवारी, डॉ. कमल हेतावल, डॉ. ज्योति जैन, सुधाकर सिंह, विनिता तिवारी, संध्या राय चौधरी ने किया। प्रतीक चिन्ह व्योमा मिश्रा, अलका सैनी, वैशाली शर्मा और स्मृति आदित्य ने प्रदान किए। कार्यक्रम का संचालन डॉ. अर्पण जैन ने किया।

पद्मश्री भेरूसिंह चौहान के कबीर भजनों ने समां बांधा।

इंदौर मीडिया कॉन्क्लेव का अंतिम सत्र कबीर गायक पद्मश्री भेरूसिंह चौहान के नाम रहा। उन्होंने अपनी मखमली और दमदार आवाज में संत कबीर और मीराबाई के भक्ति भरे भजनों को संगीत की लड़ी में पिरो कर भक्ति और उल्लास का माहौल बना दिया। कबीर के भजनों को सुनने के लिए बड़ी संख्या में मीडियाकर्मी एवं सुधि दर्शक उपस्थित थे।

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