कभी भूल नहीं पाएंगे अंचल के पारम्परिक भोजन का स्वाद
इंदौर, प्रदीप जोशी। मालवा के आदिवासी अंचलों में बिखरी प्राकृतिक छटा भी बेमिसाल है। यह अलग बात है कि टूरिज्म के नक्शे पर अंचलों की सुंदरता उतने अच्छे से उकेरी नहीं गई जिसके ये हकदार हैं। आदिवासी संस्कृति में रचे बसे प्रकृति के रंग मन में भीतर तक उतर जाते हैं। यहां के प्राकृतिक नजारे, लोक संस्कृति और उसके साथ लजीज स्थानीय व्यंजन। बस और क्या चाहिए खुशनुमा जिंदगी के लिए। फिलहाल बात अलीराजपुर जिले की जहां इन दिनों चुनावी हल्ला ज्यादा है। जोबट में होने वाले उपचुनाव को कवर करने जाना पड़ रहा है और इसी बहाने इलाके को तसल्ली से देखने का मौका भी मिल रहा है।
अलीराजपुर शहर से बाहर छोटा उदयपुर रोड़ पर है नट्टी का ढाबा। आम ढाबों जैसा है मगर खाने में चुनिंदा चीजे ही हैं, जैसे मक्के और ज्वार की रोटी साथ में उड़द और तुवर की दाल। अब सेव तो हमारे खून में घुल चुकी है लिहाजा सेव इस ढाबे में खास तौर पर बनाई जाती है और ग्राहकों की विशेष फरमाईश पर सेव की सब्जी भी मिल जाती है।
कभी ना भूल पाने वाला स्वाद
वैसे इस ढाबे पर जाने का फरमान वरिष्ठ पत्रकार और मेरे अग्रज अरविंद तिवारी जी इंदौर से रवाना होने से पहले ही कर चुके थे। इसलिए ना तो ज्यादा दिमाग लगाना था और ना ही ना नुकर की कोई गुंजाईश थी।
खबरों से निवृत्त होकर हम खाना खाने पहुंच गए। साथ में अजीज मित्र मार्टिन पिंटो, अलीराजपुर के पत्रकार मित्र सोहेल कुरेशी, सुरेंद्र वर्मा, शानु मंसूरी, यतेंद्र सोलंकी भी थे।
इशारों में आर्डर हुआ और खाना मेज पर था। ज्वार की रोटी तो हम खाते रहते है मगर फुलके के समान फुली हुई रोटी देखी तो बड़ा अचरज हुआ। फुली हुई करारी रोटी, उड़द की दाल, हरी मिर्च की तीखी चटनी, अचार और प्याज। बेहतरीन भूख और सामने लाजवाब भोजन बस, हमारी बातें बंद और सारा ध्यान खाने पर था। वैसे यहां तुवर की दाल के साथ मक्का की रोटी का भी कोई जवाब नहीं था। बहुत ही लजीज भोजन के बाद चर्चा सेव की चल पड़ी।
हम इंदौरी तो नमकीन के मामले में कुछ ज्यादा ही घमंडी है। सोहेल भाई ने अलीराजपुर की सेव की तारीफ में कसीदे पढ़ना शुरू कर दिए। उनका कहना था कि आपके इंदौर की टक्कर की है हमारे यहां के बजरंग की सेव। चूकी पेट भर चुका था सेव खाने जैसी कोई गुंजाईश नहीं थी तो हम होटल के लिए रवाना हो गए। फतेह मैदान के पास पानी पताशों के ठेले देख मन पिघल गया।
गर्म छोले में अलग अलग स्वाद के पानी वाले पताशे ने भोजन को सेट कर दिया। अगले दिन सोहेल भाई बजरंग की सेव लेकर हाजिर थे, सेव खाने के बाद महसूस हुआ कि वो सच ही कह रह थे। सेव वाकई गजब की थी।
लक्ष्मणी में झापु के दाल पानिये का भी जवाब नहीं
अलीराजपुर आने से पहले एक स्थान है लक्ष्मणी, यह स्थान जैन तीर्थ के कारण देश भर में प्रसिध्द है। स्वामी पद्म प्रभु जी का स्थान अत्यंत मनोरम है। कुछ देर अगर आप यहां रूकेंगे तो असीम शांति का अनुभव होगा। खाने की भूख लगी हो तो यहीं पर झापु का ढाबा भी है। इस ढाबे पर आप ठेठ देशी अंदाज में बने दाल पानिये का लुफ्त ले सकते हैं। झापु के दाल पानिये के स्वाद को शब्दों में उकेरा नहीं जा सकता। इसके लिए आपकों खुद जाकर टेस्ट करना पड़ेगा।
बहरहाल, अब तक की कहानी पढ़ ली है तो खाने की तलब भी लग ही आई होगी। अगर अलीराजपुर जाने का मन बने तो रास्ते के लोकल फूड का भी आनंद लेना ना भूले। सफर थोड़ा लंबा है रास्ते में एक या दो स्टाप ले सकते हैं। चाय के लिए बड़वानी में मदनी रेस्टोरेंट पर जरूर रूके। रबड़ी जैसी लाजवाब चाय आपको तरोताजा कर देगी।
नमकीन के मामले में कुक्षी भी पीछे नहीं
वैसे स्वादिष्ट नमकीन के मामले में कुक्षी भी पीछे नहीं है। कुक्षी के मिर्च बड़े और समोसे के साथ नमकीन भी बहुत ही स्वादिष्ट है। हालांकि इसका स्वाद हमने बाजार में नहीं बल्कि वरिष्ठ भाजपा नेता रमेश धारीवाल जी के निवास पर लिया। धारीवाल साहब की पिछले माह बायपास सर्जरी हुई है। कुशल क्षेम जानने उनके घर पहुचे थे। जनसंघ से जमाने के खांटी नेता बिना खिलाए पिलाए छोड़ने वाले नहीं थे। अलग अलग तरह के नमकीन से टेबल भर दी फिर एक एक आयटम चखने की उनकी जिद। इन्ही सब के साथ पुराने दौर के किस्सों का दौर भी खूब चला। उन किस्सों में अटल जी, ठाकरे जी से लेकर एआईसीसी के सचिव वरिष्ठ पत्रकार पंकज शर्मा जी से जुड़ी यादे भी थी। अपनेपन और स्वाद से भरी यह मुलाकात भी लाजवाब थी।