आर्थराइटिस के इलाज के अब कई बेहतर विकल्प मौजूद

  
Last Updated:  January 29, 2024 " 03:46 pm"

बेबी प्लान करने से पहले डॉक्टर से सलाह लें आर्थराइटिस पेशेंट।

कमर में जकड़न को अनदेखा न करें।

आर्थराइटिस कांफ्रेंस में बोले विशेषज्ञ चिकित्सक।

रूमेटोलॉजी कांफ्रेंस में बोले विशेषज्ञ चिकित्सक।

एसोसिएशन ऑफ फिजिशियन ऑफ इंडिया की इंदौर ब्रांच और अर्थराइटिस एंड बोन केयर सोसायटी के बैनर तले किया गया रुमेटोलॉजी कॉन्फ्रेंस का आयोजन।

इंदौर : एसोसिएशन ऑफ फिजिशियन ऑफ इंडिया की इंदौर ब्रांच और अर्थराइटिस एंड बोन केयर सोसायटी की ओर से रविवार को ब्रिलियंट कन्वेंशन सेंटर में रुमेटोलॉजी कॉन्फ्रेंस आयोजन किया गया। ‘रुमेटोलॉजी अपटेड: फ्रॉर्म लैब टू बेडसाइड’ थीम पर यह कांफ्रेंस आयोजित की गई।

आर्थराइटिस का इलाज अब पहले से बेहतर।

एपीआई इंदौर ब्रांच के ज्वाइंट सेक्रेटरी और कॉन्फ्रेंस के ऑर्गनाइजिंग सेक्रेटरी डॉ. अक्षत पाण्डेय ने बताया कि आज से 15-20 वर्ष पहले आर्थराइटिस के ट्रीटमेंट के लिए 4-5 मेडिसिन ही अवेलेबल थीं पर 2024 में हमारे पास ट्रीटमेंट के काफी सारे विकल्प मौजूद हैं। इसके लिए अब हमारे पास बायोलॉजिकल एजेंट्स उपलब्ध हैं, जो बेहद इफेक्टिव साबित हो रहें हैं। इसके अलावा अब जेक इन्हिबेटर मॉलिक्यूल्स भी आ गए हैं, दो साल पहले तक इसकी एक महीने की थेरेपी 18 से 20 हजार रुपए की होती थी वो अब 1000-1200 रुपए में हो जाती है। ये बहुत कारगर मेडिसिन है पर इनमें हाई मॉलीक्यूल होते हैं। इनके साइड इफेक्ट भी हो सकते हैं। इसके लिए प्रॉपर मॉनीटरिंग जरूरी है।

पैनल डिस्कशन में डॉ. वीपी पांडे ने किया सूत्र संचालन।

कॉन्फ्रेंस में स्पेशल पैनल डिस्कशन का भी आयोजन किया गया। जिसमें इस बात पर चर्चा की गई कि अर्थराइटिस के उस केस में क्या ट्रीटमेंट किया जाए जिसमें सारी अच्छे से अच्छी दवा फेल हो चुकी है। इस पैनल डिस्कशन का संचालन डॉ.वी.पी पाण्डेय ने किया।

बेबी प्लान करने से पहले डॉक्टर से सलाह लें आर्थराइटिस पेशेंट।

कॉन्फ्रेंस में केरल के कालीकट से आए रुमेटोलॉजिस्ट प्रो. डॉ. विनोद रविन्द्रन ने ऑटो इम्यून डिसीज के साथ प्रेंग्नेंसी के कॉम्प्लिकेशन के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि अगर किसी गर्भवती महिला को गठिया या उससे जुड़ी बीमारी है तो उन्हें बेहद सावधानी रखने जरूरत होती है क्योंकि इस प्रकार की बीमारी प्रेंगनेंसी के दौरान काफी ज्यादा बढ़ सकती है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण है अगर कोई भी महिला जो कि किसी भी ऑटो इम्यून डिसीज से पीड़ित है तो उसे और उनके हसबैंड को बेबी प्लान करने से पहले अपने डॉक्टर से इस बारे में डिस्कशन करना चाहिए कि उनकी बीमारी इस समय किस स्टेज में है। अगर बीमारी सही अवस्था में है या कंट्रोल स्टेज में है तो इस बात के काफी ज्यादा चांसेज है कि वह एक हेल्दी और नॉर्मल बेबी डिलिवर कर पाएंगी। इसके लिए डॉक्टर से बात करके कौन सी दवाएं उनके लिए सुटेबल रहेंगी यह भी पता करना चाहिए। यह समझना जरूरी है कि अगर हम नॉर्मली 10 दवाओं का इस्तेमाल कर सकते हैं तो प्रेंग्नेंसी के केस में केवल 2 दवाएं ही इस्तेमाल की जा सकती हैं। गठिया एक जेनेटिक बीमारी नहीं है, ऐसे में यह जरूरी नहीं है कि अगर ये मां को है तो बच्चें को भी होगी। यह एक ऑटो इम्यून कंडीशन है जो हर इंसान का उसका खुद का होता है और समय के साथ उसमें बदलाव आता है।
युवा कमर की अकड़न को न करें अनदेखा
कॉन्फ्रेंस में जयपुर से आए डॉ. राहुल जैने ने बताया कि स्पॉन्डिलाइटिस कमर की गठिया है जो कि युवाओं में काफी देखने को मिलती है वो भी 20 से 45 साल के परुषों में यह ज्यादा नजर आती है। इसमें सुबह उठने पर कमर में आधे घंटे से ज्यादा अकड़न रहती है। इसके बाद वह चलने फिरने लग जाते है और अपना नॉर्मल रुटिन फॉलों करने लगते है तो वो ठीक हो जाता है। इस तरह के मामले में पेशेंट्स को लगता है कि मेरा बेड खराब था या मुझे अपनै मैट्रेस चेंज करने की जरूरत है। आमतौर 2 से 5 साल तक वो इन सब चीजों में ही निकाल देते हैं। जब वो बिमारी धीरे धीरे बढ़ती है तो छाती में दर्द, पैर और घूटनों में सूजन, कमर के नीचे दर्द जैसी समस्याएं होने लगती है। जब बिमारी के बारे में पता चलता है तो 5 से 10 साल बीत चुके होते हैं। उस वक्त काफी डैमेज हो चुका होता है ऐसे मामलों में ट्रीटमेंट देकर डैमेज के इफैक्ट को रिवर्स करने में काफी समय लगता है। इसलिए जरूरी है कि अगर फैमिली में किसी को भी इस प्रकार का दर्द महसूस हो रहा हो तो तुरंत अपने डॉक्टर से कंसल्ट करके उस जगह का एक्सरे और एचएलए बी 27 करवाना चाहिए। इससे सही बीमारी का पता चल पाएगा और पेशेंट को उचित ट्रीटमेंट मिल पाएगा। हाथ-पैर का गठिया 100 में 1 को होने की संभावना होती है वहीं स्पॉन्डिलाइटिस 200 से 300 लोगों में किसी एक को होने की संभावना रहती है।

रिपोर्ट्स का नहीं पेशेंट्स का करें ट्रीटमेंट।

तिरुपति के डॉ. पी दामोदरन ने एएनए टेस्ट (ऑटो इम्यूनिटी टेस्ट) के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि हमारे शरीर का जो ऑटो इम्यून सिस्टम है वह रोगों से लड़ने के लिए बना है पर कुछ कारणों की वजह वो अपने ही शरीर के खिलाफ काम करने लगता है वो भुल जाता है कि ये मेरी ही बॉडी है और उसमें अटैक करके बीमारी पैदा करने लगता है जिसे ऑटो इम्यून डिजीज के नाम से जाना जाता है। इसमें 4 कॉमन तरह की बीमारी है, सबसे कॉमन है बार-बार मुंह में छाले आना, धूप में शरीर में लाल निशान पड़ जाना, बालों का झड़ना, लम्बे समय तक बुखार आना आदि।दूसरी तरह की बीमारी है मुंह में सूखापन रहना, खुश्की हो जाना,आंखों में सूखापन रहना, इसे सूखेपन का गठिया भी कहा जाता है। तीसरी बीमारी है हाथों में नीलापन होना, हाथों में घाव हो जाना, बहुत लम्बे समय तक खांसी रहना, लंग्स पर इफैक्ट होना, इसे चमड़ी के सख्त होने की बीमारी भी कहा जाता है। चौथी बीमारी है मांसपेशी की कमजोरी। इसमें उठने- बैठने में भी परेशानी होती है। इन चारों तरह के मामलों में एएनए टेस्ट पॉजिटिव आने की संभावना रहती है। इस तरह के सिम्टम्स अगर किसी पेशेंट में नजर आए तो एएनए टेस्ट करना चाहिए। अगर ये सिम्टम्स नहीं है तो एएनए टेस्ट करने से बचना चाहिए क्योंकि एएनए टेस्ट नॉर्मल पॉपुलेशन का पॉजिटिव आ सकता है, ऐसे में जिन पेशेंट्स को दिक्कत है उन्हीं का एएनए टेस्ट कराना चाहिए क्योंकि हम पेशेंट को ट्रीट करते हैं रिपोर्ट को नहीं।

200 से ज्यादा डेलीगेट्स हुए शामिल।

एपीआई इंदौर के प्रेसिडेंट डॉ. आरके झा ने बताया कि कॉन्फ्रेंस में एमडी फिजिशियन, गायनेकोलॉजिस्ट,रूमेटोलॉजिस्ट एमडी और डीनबी स्टूडेंट्स सहित लगभग 200 डेलीगेट्स शामिल हुए। इस कॉन्फ्रेंस में सभी टॉपिक इस प्रकार के रखें गए कि रुमेटोलॉजी के बारे में ज्यादा से ज्यादा अवेयरनेस फैलाई जा सके। इसके अलावा पेशेंट्स का ट्रीटमेंट लैब टेस्ट और उनके रिजल्ट को बेहतर तरीके से इस्तेमाल करने पर भी फोकस किया गया।

एपीआई इंदौर के सेक्रेटरी डॉ. अभ्युदय वर्मा ने बताया कि इस अवसर पर पीजी के स्टूडेंट्स द्वारा केस भी प्रेजेंट किए गए। इस अवसर पर डॉ. अपूर्व पौराणिक, डॉ.धर्मेंद्र झंवर और डॉ. संदीप सक्सेना उपस्थित थे।

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