इंदौर : उदघोषणा की गुणवत्ता का पैमाना सिर्फ़ अच्छी आवाज़ ही नही, भाषा, ज्ञान, विचार, स्मृति और संस्कार भी होते हैं। मंच की कसौटियों को पार करते हुए सारा आत्म विश्वास और कौशल इसी बुनियाद पर टिका होता है।
जाने माने उदघोषक और कला समीक्षक विनय उपाध्याय ने यह विचार रविवार को एक कार्यशाला में साझा किए। पंचम निषाद और इन्दौर प्रेस क्लब द्वारा
‘द पोडियम टीम’ भोपाल के सहयोग से ‘मंच यात्रा’ कार्यशाला का आयोजन’ इंदौर प्रेस क्लब सभागार में किया गया था। यह कार्यशाला उद्घोषणा कला कौशल पर केंद्रित थी जिसमें मुख्य वक्ता के रूप में विनय उपाध्याय प्रतिभागियों से रुबरु हुए। विनय उपाध्याय ने अपने जीवन और उदघोषणा से जुड़े अनेक प्रसंग व रोचक संस्मरणों के जरिए कार्यशाला के प्रतिभागियों का मार्गदर्शन किया। उन्होंने बताया कि आवाज की दुनिया में आज रचनात्मकता की अनेक संभावनाएं और चुनौतियां हैं।
विनय उपाध्याय ने कार्यशाला की शुरुआत में नाद की उत्पत्ति पर बात करते हुए वेदों का जिक्र किया। उन्होंने नाद यानी ध्वनि के बुनियादी महत्व को समझने का मशविरा दिया। उपाध्याय ने बताया कि एक उदघोषक के लिए ज़रूरी है कि उसका शब्द ज्ञान मजबूत हो। शब्द और जीवन की परस्परता समझते हुए उसका उचित इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
उन्होंने बताया कि उदघोषक की भाषा व ज्ञान पर पारिवारिक और सांस्कृतिक पृष्टभूमि का बहुत प्रभाव होता है। इस सब के बावजूद किसी भी उद्घोषक के लिए लगातार पढ़ना और रियाज़ करना अनिवार्य है।
‘द पोडियम टीम’ की सदस्य डाॅ. स्नेहा कामरा ने बताया कि इस कार्यशाला की श्रृंखला में आने वाले समय में उद्घोषणा के अन्य पहलुओं पर चर्चा की जाएगी। कार्यशाला का संचालन उज्जवला जोशी ने किया।