प्रवासी भारतीय सम्मेलन में शिरकत करने आई उषा कमारिया का दिल जीत लिया बदले हुए इंदौर ने।
🔺कीर्ति राणा🔺
इंदौर : अमेरिका के शहर इलिनॉई के स्कोकी में महात्मा गांधी की एक हजार किलो वजनी कांस्य प्रतिमा जन सहयोग से स्थापित करा चुकी उषा कमारिया प्रवासी भारतीय सम्मेलन में शामिल होने इंदौर आई हैं। दशकों पहले से जो इंदौर उनकी आंखों में बसा था, उसके बदले रूप ने उन्हें सम्मोहित कर रखा है। श्रीमती कमारिया को इंदौर के लोगों पर गर्व है। वो कहती हैं लगातार छह बार इंदौर का देश में नंबर वन पर बने रहना बताता है कि स्वच्छता का अनुशासन हर नागरिक की रग रग में रक्त की तरह प्रवाहित है।
मीडिया से चर्चा में उन्होंने जहां अपनी उपलब्धियों का जिक्र किया वहीं यह कहना भी नहीं भूलीं कि इंदौर के आमजन की इन उपलब्धियों को वह अमेरिका में तो बताएंगी ही, इंदौर इस बात की भी मिसाल बना है कि व्यक्ति ठान ले तो सामूहिक संकल्प से असंभव को भी संभव कर सकता है।उन्होंने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह, जिला प्रशासन और खासकर महापौर पुष्यमित्र
भार्गव का प्रवासी भारतीय सम्मेलन में शामिल होने का निमंत्रण देने के लिए आभार व्यक्त किया । सम्मेलन की तैयारियों के अंतर्गत इंदौर के बदले रूप, सौंदर्यीकरण, सफाई आदि को लेकर उन्होंने कहा मैने शहर घूमा है और यह कहने में संकोच नहीं कि लगता है मैं शिकागो में ही हूं।
चार साल की सतत मेहनत से सपना पूरा किया प्रतिमा स्थापना का।
श्रीमती उषा कमारिया ने कहा अमेरिका में बसने के बाद से ही मन में छटपटाहट थी कि इस पराए देश में ऐसा क्या किया जाए कि इंदौर और भारत को लोग सदैव याद रखें। इलिनॉई के स्कोकी में गांधीजी की प्रतिमा स्थापना का सपना देखा जिसे चार साल में पूरा कर सकी।
अहमदाबाद (गुजरात) के शिल्पी जस्सूबेन से एक हजार किलो वजनी कांस्य प्रतिमा बनवाई। एयर इंडिया से प्रतिमा शिकागो लाए। भूमि चयन, मूर्ति के लिए धन संग्रह, शासकीय अनुमति आदि की औपचारिकता में चार साल लगे लेकिन 2 अक्टूबर 2004 को भव्य समारोह में स्कोकी में प्रतिमा की स्थापना की गई।
मेरा यह प्रयास इसलिए भी गर्व करने लायक है कि भारतीय महिला अमेरिका में घरेलू महिला न होकर सामाजिक जीवन में अपने दम पर ऊंचाइयां छूने के साथ वहां के लोगों को यह स्वीकारने पर भी बाध्य कर रही है कि भारतीय महिलाएं किसी भी क्षेत्र में उनसे पीछे नहीं हैं।
विश्व के सर्व शक्तिमान देश में परिवार से मिले संस्कारों और अपने काम से पहचान बनाई।
इंदौर के पारंपरिक मारवाड़ी मेहता परिवार (मोहनलाल-श्रीमती रामप्रसाद के यहां ) जन्मी उषा को निसंतान चाचा ( मुरलीधर-लीलाबाई मेहता) ने गोद ले लिया और 19 वर्ष में खाचरौद (उज्जैन) निवासी ओम प्रकाश कमारिया से विवाह के तीन महीने बाद ही अमेरिका निवासी हो गईं।परिवार के संस्कार उस पराए शहर में अपनी पहचान बनाने में काम आए।
विश्व के इस सर्वशक्तिमान देश की नाइल्स टाउनशिप (शिकागो) में भारतीय समुदाय की अध्यक्ष रहने के साथ ही श्रीमती कमारिया इलिनॉई स्टेट में शासकीय पद पर पहली एशियाई भारतीय महिला रही हैं।शिक्षा के माध्यम से विभिन्न संस्कृतियों में जागृति लाने वाली इसी शहर की प्रतिष्ठित संस्था किंग टूगेदर की वे संस्थापक सदस्य हैं।यही नहीं वे हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार के साथ गैर हिंदी भाषियों को मंच उपलब्ध कराने वाली संस्था हिंदी लवर्स क्लब की संस्थापक सदस्य हैं।चार सौ से अधिक सदस्यों वाले यूनाइटेड सीनियर परिवार की वे 15 वर्षों से सलाहकार सदस्य हैं।
किताब उषा कमारिया : द पाथफाइंडर।
उनकी इन सारी उपलब्धियों को उज्जैन के वरिष्ठ पत्रकार रमेश दीक्षित ने उषा कमारिया : द पाथ फाइंडर नाम से पुस्तक रूप में समाहित किया है। इस किताब के संबंध में श्रीमती कमारिया का कहना है इसके प्रकाशन का कतई यह उद्देश्य नहीं है कि मेरी प्रशंसा हो, भारतीय महिलाएं जहां भी रहें वक्त को अपने मुताबिक ढाल लेती हैं, यह दर्शाना है। इसी उद्देश्य से सम्मेलन में आ रहे विभिन्न देशों के प्रवासी भारतीयों को भी यह किताब भेंट करुंगी।