कैट रोड स्थित हरिधाम पर झांसी की मानस कोकिला रश्मिदेवी के श्रीमुख से हनुमत कथा का समापन।
इंदौर : मान और सम्मान उन्हीं का होता है, जो त्याग करते हैं। हनुमान इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं, जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन अपने प्रभु श्रीराम को समर्पित कर दिया। भगवान राम जैसा आदर्श चरित्र दुनिया में कहीं नहीं मिल सकता। उसी तरह हनुमानजी जैसा भक्त भी विश्व में कहीं नहीं मिलेगा। रामचरित मानस में हनुमानजी का प्रवेश होते ही प्रत्येक प्रसंग प्रेम, वात्सल्य, करूणा और स्नेह की रसधारा से भरपूर नजर आता है। हनुमानजी ही इसके वास्तविक सूत्रधार हैं। कई मौकों पर तो राम से भी बड़ा नाम हनुमान का माना गया है। कलयुग में राम नाम के साथ हनुमान की भक्ति को सर्वोपरि माना गया है।
झांसी से आई मानस कोकिला श्रीमती रश्मिदेवी शास्त्री ने कैट रोड, हवा बंगला स्थित हरिधाम आश्रम पर पीठाधीश्वर महंत शुकदेवदास महाराज के सान्निध्य में चल रही हनुमत कथा के समापन दिवस पर उक्त प्रेरक विचार व्यक्त किए। कथा शुभारंभ के पूर्व महिला मंडल की ओर से श्रीमती निर्मला बैस, कांता खंडेलवाल, ललिता परमार, मीना गौतम, समाजसेवी बालकिशन छावछरिया (बल्लू भैया), सीताराम नरेड़ी, डॉ. सुरेश चौपड़ा, मुकेश बृजवासी, सुधीर अग्रवाल आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया। बड़ी संख्या में भक्तों ने आरती में भाग लिया। कथा के समापन पर महिला मंडल की ओर से श्रीमती रश्मिदेवी का मालवा की पगड़ी पहनाकर सम्मान भी किया गया।
मानस कोकिला रश्मिदेवी शास्त्री ने कहा कि हनुमानजी भक्त भी हैं और भगवान भी। वे ऐसे भक्त हैं, जो समाज और संस्कृति के साथ अपने आराध्य के लिए स्वयं को पूरी तरह समर्पित कर देते हैं। उनका चरित्र उस आभायुक्त दीपक की तरह है , जो स्वयं जलकर दूसरों के जीवन में धन्यता और दिव्यता का प्रकाश फैलाता है। हनुमानजी के चरित्र में कहीं भी दोष नहीं है। उन्होंने प्रभु भक्ति को ही सर्वोपरि माना और यही उनके चरित्र की आधारशिला है। जिसके जीवन में प्रकाश है, वही दिव्यवान होता है, क्योंकि प्रकाश में चैतन्यता और सत्यता है। हनुमान जैसा आदर्श चरित्र और कहीं नहीं मिल सकता। उन्होंने अपनी प्रत्येक भूमिका का निर्वाह पूरी लगन, निष्ठा, सूझबूझ और धैर्य के साथ किया है। कलयुग में आज भी यह मान्यता है जहां कहीं भगवत कथा होती है, वहां हनुमानजी अवश्य उपस्थित रहते हैं।