+नीरजा*
अमित का परिवार दूसरे शहर में रहता था। वह नौकरी के सिलसिले में अभी अभी इस शहर में अकेला ही आया था।एक सुंदर और शांत कॉलोनी में अमित ने छोटा सा बंगला किराए पर ले लिया।लगता था जैसे वह मकान हमेशा से किराए पर ही रहा है।तभी वह बस रंगाई पुताई कर ठीक ठाक सा किया हुुुआ था। पास का बंगला बहुत सुंदर था।एक बड़ा सा गार्डन था जिसमें तरह-तरह के पेड़ और फूलों के पौधे लगे थे। वह सब तो ठीक है लेकिन कॉलोनी में इतनी शांति थी कि इंसानों की आवाज कम और पक्षियों की आवाजे ज्यादा आती थी। अमित को पास के मकान से बस कभी-कभी कुछ बातचीत की आवाज आ जाया करती थी जिससे उस जगह की नीरवता थोड़ी कम हो जाती थी। आवाज से लगता था जैसे कोई 55- 60 साल की फिक्रमंद महिला रहती है। कभी शायद अपने पति से पूछ रही होती,अरे क्या हो गया ऐसे सुस्त से क्यों खड़े हो? फिर कभी बच्चों की परेशानी का कारण पूछती, तबीयत तो ठीक है ना ? कैसे मुरझा गए हो। फिर कभी खुशी से कहती, ओह हो आज तो बड़ा खिल रहे हो। अमित के कानों पर उनकी बातें पड़ती रहती थी। एक दिन सोचा क्यों न शाम को ऑफिस से लौटकर पड़ोस के परिवार से मिलने चला ही जाऊं। परिचय हो जाएगा तो अकेलापन भी नहीं लगेगा। यह पहली बार था जब अमित अपने परिवार से दूर रह रहा था और कुछ ही दिनों में उसे परिवार की कमी खलने लगी थी। शाम को वह पड़ोस के घर पहुंचा और डोर बेल बजाई। एक महिला ने दरवाजा खोला। 55 60 वर्ष की महिला ने, मेरा नाम अमित है। आपके पड़ोस में अभी कुछ दिन पहले ही रहने आया हूं। अमित ने अपना परिचय दिया। अच्छा अकेले ही रहते हो या परिवार भी साथ रहता है। उस महिला ने पूछा। अभी तो अकेला ही हूं। अमित ने उत्तर दिया। उन्होंने अमित को ड्राइंग रूम में बैठाया और दो कप चाय ले आई। इतनी देर में अमित को घर में उनके अलावा न कोई और दिखाई दिया ना ही किसी की आवाज सुनाई दी। अमित ने जिज्ञासा वश पूछ ही लिया। आपके हस्बैंड और बच्चे बाहर गए हैं क्या? वह हाथ में चाय का कप थामे धीरे से बोली, हस्बैंड की 10 साल पहले डेथ हो गई। दो बेटे हैं। दोनों की शादी हो चुकी है। एक पुणे में और एक मुंबई में रहता है। अब तुम तो जानते ही होंगे। वहां तो एक दो बीएचके के अपार्टमेंट्स ही होते हैं। उन्हीं को छोटे पड़ते हैं। यह घर बड़ा है। तो मैं यही रह लेती हूं। अमित को समझ नहीं आया फिर वह बातचीत की आवाजे कैसी? किससे? उसने थोड़ा सहम कर पूछा, वो मुस्कुराकर बोली, देखी नहीं, मेरी बगिया मेरा परिवार है तो उसमें इतने सारे मेरे अपने। बस कभी अमरूद, कभी गुड़हल, कभी चमेली, कभी गुलाब से बातें करती रहती हूं।
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