इन्दौर : स्टेट प्रेस क्लब, इन्दौर द्वारा रवींद्र नाट्यगृह में आयोजित भारतीय पत्रकारिता महोत्सव के दूसरे दिन भी मीडियाकर्मियों और शोधार्थी छात्रों का उत्साह बना रहा। प्रथम सत्र में ‘टूटता भरोसा, बढ़ता गुस्सा’ विषय पर टॉक-शो हुआ, जिसमें दिल्ली और ग्वालियर से पधारे वरिष्ठ पत्रकारों ने अपनी बात बेबाकी के साथ रखी।
गलत बातों पर मुखर रहे पत्रकार।
वरिष्ठ पत्रकार अशोक वानखेड़े ने कहा कि न्यूज चैनल आने के बाद से पत्रकारिता खेमों में बंट गई है। न्यूज चैनल सुबह भाजपा, दिन में कांग्रेसी और शाम को लेफ्टी (वामपंथी) हो जाते हैं। इतनी तेजी से बदलती पत्रकारिता का दौर पहले कभी नहीं रहा। पत्रकारिता का समाज से गहरा सरोकार है। पत्रकार का काम ही है कि वह जहां भी गलत देखे या सुने तो खामोश रहने के बजाय उसे अभिव्यक्त करें। चुप रहना एक तरह का राष्ट्र द्रोह है। जनता का धर्म है कि वह सत्ता से सवाल पूछे और उनसे जवाब ले। कोई भी सत्ता बहुत दिन तक झूठ बोलकर जनता को बरगला नहीं सकती। दरअसल पत्रकारिता हमेशा सकारात्मक होना चाहिए। देश ने वह दौर भी देखा जब सिद्धांतों और मूल्यों की पत्रकारिता होती थी। आज वह बात इतिहास हो गई।
आग में घी डालने का काम कर रहा है मीडिया।
वरिष्ठ पत्रकार राकेश पाठक ने कहा कि अलग-अलग लोगों की राय (मत) और मान्यता ही लोकतंत्र का आभूषण है। मत-मतान्तर होना चाहिए, मत-भेद नहीं। जब भी सत्ता आती है वह अपने साथ विकृति लेकर आती है। हमें इससे बचने की आवश्यकता है। आपातकाल लोकतंत्र की काली रात थी। आज आग में घी डालने का काम मीडिया कर रहा है। लम्बी लड़ाई के बाद ही दहेज विरोधी कानून बना। हमें इस कानून की गंभीरता को समझना चाहिए। यदि हमें समाज और लोकतंत्र को बचाना है तो सत्ता में बैठे लोगों से लगातार सवाल करते रहना होगा। श्री पाठक ने आगे कहा कि मध्यप्रदेश में राष्ट्रपिता महात्मागांधी दस बार आए, जबकि इन्दौर में दो बार आए। देशभर में हिन्दी का परचम फहराने में गांधीजी की मुख्य भूमिका रही।
कॉर्पोरेट को मजबूत कर रही वर्तमान पत्रकारिता।
वरिष्ठ पत्रकार शीतल पी. सिंह के मुताबिक कहा यही जाता है कि हम सूचना के माध्यम से समाज को मजबूत या ताकतवर बना रहे हैं, जबकि सच्चाई यह है कि आज की पत्रकारिता कॉर्पोरेट को मजबूत बना रही है। वर्तमान दौर में सही पत्रकारिता करना बहुत ही मुश्किल और कांटों से भरा है। देश में आज फिल्ड रिपोर्टिंग खत्म होती जा रही है। अब प्रायोजक रिपोर्टिंग हो रही है। मतलब धनाडय वर्ग या उद्योगों से जुड़े मालिक जो कह रहे हैं आज वही अखबारों में और न्यूज चैनलों में पढऩे और देखने को मिल रहा है। यदि जनता में इच्छा शक्ति हो तो वह सच्चाई का पता लगा सकती है।
पत्रकारिता निष्पक्ष होना चाहिए।
वरिष्ठ पत्रकार हरीश पाठक ने कहा कि पत्रकारिता देश के लिए होती है। किसी व्यक्ति विशेष या संस्था के लिए नहीं। ना वो किसी जाति वर्ग या पंथ के लिए होती है और ना अमीर-गरीब के लिए। पत्रकारिता तो निष्पक्ष होती है जो सबके लिए हितकारी और कल्याणकारी है, लेकिन आज अक्षरों और शब्दों पर पहरा है। ऐसे में सच्ची पत्रकारिता के सामने संकट ही संकट है।
ताजा खबरों को तोडऩे का काम न्यूज चैनल ने किया।
वरिष्ठ पत्रकार हितेश शंकर ने कहा कि न्यूज चैनलों ने ताजा खबरों को तोड़ा है, जबकि पहले अखबारों में छपी खबरों को हम ताजा खबरें कहते थे। यही समय है जब हम फेक न्यूज या झूठी खबरों का पर्दाफाश करें और जनता को सच्चाई से रूबरू कराएं। दिग्गज पत्रकारों का कोई हक नहीं बनता कि वे अपना गुस्सा नई जनरेशन को दें। सरकारों के बदलने से समाज के सरोकार नहीं बदलना चाहिए।
सत्य से कभी दूर नहीं हो पत्रकारिता।
वरिष्ठ पत्रकार प्रखर श्रीवास्तव ने कहा कि हर दौर में पत्रकार की भूमिका रही, चाहे वह दौर किसी का भी क्यों ना रहा हो। पत्रकार की भूमिका कल भी थी, आज भी है और भविष्य में भी रहेगी। 2014 के बाद पत्रकारिता संकट में आई है और इसे हमे समझना होगा। स्व. दुर्गादास सबसे बड़े पत्रकार थे। वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैय्यर ने पत्रकारिता पर कई किताबें लिखी जो ये बताती है कि पत्रकारिता के लिए एक जिन्दगी ही काफी नहीं है। वरिष्ठ पत्रकार पंकज शर्मा ने भी इसी मुद्दे पर अपनी बात बेबाकी के साथ रखते हुए कहा कि पत्रकार वही है जो अपनी बात निर्भिकता के साथ करें और सत्य से कभी दूर नहीं हो।
अतिथि स्वागत संस्था अध्यक्ष प्रवीण कुमार खारीवार, सुदेश तिवारी, कमल कस्तूरी ने किया। संचालन आकाश चौकसे ने किया। आभार कीर्ति राणा ने माना।