इंदौर : पर्यावरण संरक्षण के लिए ताउम्र समर्पित रहे पद्मश्री कुट्टी मेनन की पार्थिव देह शनिवार को पंचतत्वों में विलीन हो गई। रीजनल पार्क मुक्तिधाम में उनका अंतिम संस्कार किया गया। कुछ दिनों से वे बीमार चल रहे थे। शुक्रवार को निजी अस्पताल में उपचार के दौरान उनका निधन हो गया था।
सरलता, बाल सुलभ सहजता के पर्याय और पर्यावरण के लिए पूर्णरूपेण समर्पित कुट्टीमेनन का जन्म केरल के त्रिश्शूर जिले के कोडून्गल्लूर नामक गाँव में हुआ था l वे 6 मई 1961 को कस्तूरबा गांधी राष्ट्रीय स्मारक ट्रस्ट से जुड़े और उसके बाद वे मालवा की मिट्टी से ऐसे घुले मिले कि पूरीतरह मालवी बन गए I औपचारिक शिक्षा की दृष्टि से वे केवल दसवीं तक पढ़ें थे I वे स्टेनोग्राफर के रूप में कस्तूरबा ग्राम में आए थे परन्तु उन्हें बागवानी में आनन्द आने लगा और उसी रुचि ने उन्हें जैविक खेती-बागवानी और गौ पालन की ऐसी दुनिया में पहुंचा दिया, जिसने उनके जीवन की दिशा ही बदल डाली I वे आजीवन प्रयोगधर्मी और नवाचारी रहे I वे अपने पेड़-पौधों को अपनी संतान की तरह प्यार और देखरेख करते थे। अक्सर उनसे एक तरफ़ा बातें किया करते थे I उनके लगाए पेड़-पौधें भी सामान्य से अधिक फल और फूलों से उनके स्नेह का अभिवादन करते रहे I विगत कुछ माह से वे व्हील चेयर पर थे परन्तु वे हर दिन व्हील चेयर से अपने पेड़-पौधों से बतियाने अवश्य जाते थे I गायों से भी उन्हें बहुत लगाव था, एक बार पूर्व प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी कस्तूरबा ग्राम आई थी। उन्होंने गांधीजी की प्रिय गाय ज्योति का उल्लेख किया तो मेनन साहब उन्हें ज्योति की सन्तति के पास ले गए, जिसका नाम उन्होंने ज्योति ही रखा था, उसे देखकर इन्दिराजी बहुत प्रसन्न हुई थी I
यह मेनन साहब की प्रयोगधर्मिता का ही कमाल था कि नोबल पुरस्कार विजेता डॉ. नार्मन बोरलाग तीन बार कृषि भारतीय वैज्ञानिकों के साथ कस्तूरबा ट्रस्ट के उन खेतों- बगीचों को देखने आये, जिन्हें मेनन साहब ने विकसित किया था l डॉ.ओ.पी. धामा नामक इन्दौर के एक कृषि वैज्ञानिक ने डॉ.बोरलाग से कहा था कि यह दुर्भाग्य है कि मिस्टर मेनन कृषि स्नातक नहीं है, वह एक सामान्य मेट्रिक पास गांधी-कार्यकर्ता है l इस पर डॉ.बोरलाग ने तुरन्त जवाब दिया कि यह सौभाग्य की बात है, क्योंकि एक कृषि स्नातक इसतरह प्रयोग नहीं कर सकते हैं, उन्हें कॉलेजों में जैविक कृषि पद्धति सिखाया तक नहीं जाता है l
कृषि के क्षेत्र में और पर्यावरण संवर्द्धन तथा संरक्षण के अनूठे योगदान के लिए उन्हें 1986 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी ने देश के पहले इंदिरा प्रियदर्शनी वृक्ष मित्र सम्मान से अलंकृत किया था I फिर 1988 में लाल बहादुर शास्त्री अवार्ड दिया गया I नवम्बर 1989 में जमनालाल बजाज सम्मान से अलंकृत किया गया I फिर 1991 में पद्मश्री जैसे राष्ट्रीय सम्मान से राष्ट्रपति ने अलंकृत किया I उन्हें मिले सम्मानों के उत्तर में उनका कहना रहा कि यदि कोई भी सार्वजनिक हित का काम लगन और निष्ठा (इन्वाल्वमेंट और कन्सर्न ) के साथ करते हैं तो समाज आपको कभी अनदेखा नहीं करता है, समाज आपको सर आँखों पर बिठाने के लिए सदैव तत्पर और लालायित रहता है l
इंदौर की धरोहर स्व. कुट्टी मेनन को विनम्र श्रद्धांजलि।