आयुर्वेद नियामक आयोग की याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट ने की खारिज

  
Last Updated:  October 20, 2022 " 08:33 am"

नॉन-नीट छात्रों के प्रवेश के मामले मे उच्च न्यायालय को छः सप्ताह में याचिकाओं का अन्तिम रूप से निराकरण करने का आदेश।

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति भूषण आर गवई और बी वी नागरतना की युगलपीठ ने केंद्रीय आयुर्वेद नियामक आयोग की एक दर्जन से अधिक अपील याचिकाओं को खारिज कर दिया, जिसमें उच्च न्यायालय के उस अंतरिम आदेश को चुनौती दे दी गई थी, जिसके तहत सत्र 2021-22 में आयुर्वेद कॉलेजों में खाली पड़ी सीटों में नॉन-नीट एवं कम अंक वाले छात्रों को प्रवेश देने हेतु भिन्न-भिन्न कॉलेजों को अनुमति प्रदान की गई थी । उच्च न्यायालय द्वारा माह अप्रैल एवं मई 2022 में आयुर्वेदा कॉलेजों की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए उनमें काउंसलिंग के पश्चात रिक्त पड़ी सीटों पर उन छात्रों को प्रवेश देने हेतु अनुमति प्रदान की थी, जिन्होंने नीट परीक्षा उत्तीर्ण की हो अथवा कम अंकों से उत्तीर्ण की हो । केंद्रीय आयुर्वेद नियामक आयोग द्वारा दर्जनभर से अधिक याचिकाओं में पारित अंतरिम आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। याचिका में कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट के पूर्व में दिए गए न्याय दृष्टांत के विरुद्ध जाकर कॉलेजों को अंतरिम राहत प्रदान की गई है।

बता दें कि काउंसलिंग के बाद सैकड़ों सीटें रिक्त रह जाती हैं, जिसको लेकर प्रति वर्ष कोर्ट में केस आते हैं। इस वर्ष मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने व्यवस्था दी कि आयुर्वेद कॉलेजों में रिक्त पड़ी सीटों को अगर शासन भर ना पाए तो मापदंडों को शिथिल कर दूसरे छात्रों को प्रवेश दिया जाए। उच्च न्यायालय के इस अंतरिम आदेश को नियामक आयोग द्वारा सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई | केंद्रीय आयुर्वेद संस्थान अधिनियम 1973 के अन्तर्गत नियमों में नीट परीक्षा पास होना किसी भी छात्र के लिए प्रवेश हेतु अनिवार्य पात्रता है। 50 अंक हासिल करना भी उसके लिए अनिवार्य है। इन नियमों को दरकिनार कर उच्च न्यायालय द्वारा अंतरिम राहत छात्रों को प्रवेश के लिए नहीं दी जा सकती है , जो पूर्णतः अनुचित है । आयोग द्वारा अपनी याचिकाओं में यह भी कहा गया कि तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर बिना सही कानून बताए कॉलेजों द्वारा उच्च न्यायालय से अंतरिम राहत ले ली गई, जबकि उच्च न्यायालय द्वारा नियमों को दरकिनार कर दिया गया। आयुर्वेद कॉलेजों की ओर से अधिवक्ता सिद्धार्थ राधेलाल गुप्ता ने पैरवी की । उन्होंने तर्क दिया कि उच्च न्यायालय के समक्ष नियमों की संवैधानिकता को चुनौती दी गई है, जिन नियमों के अन्तर्गत आयुर्वेद, होम्योपैथी एवं मेडिकल- डेंटल के कोर्स में प्रवेश हेतु एक ही चयन परीक्षा निर्धारित की गई है एवं एक ही र्पसेन्टाइल निर्धारित किया गया है।श्री गुप्ता द्वारा सुप्रीम कोर्ट में तर्क दिया गया कि आयुर्वेद कोर्स हेतु अलग चयन परीक्षा एवं अलग र्पसेन्टाइल होना अत्यंत आवश्यक है। इसके अभाव में सीटें हर वर्ष सैकड़ों की संख्या में खाली जाती है । उच्च न्यायालय द्वारा इन सभी विशेष परिस्थितियों का आकलन करने के पश्चात ही अंतरिम राहत कॉलेजों को प्रदान की गई थी, जिसमें हस्तक्षेप करना तर्कसंगत नहीं है।

दोनों पक्षों के तर्क सुनने के पश्चात सुप्रीम कोर्ट की युगलपीठ ने आयुर्वेद नियामक आयोग के वकील से प्रश्न किया कि एक ही परिक्षा, एक ही र्पसेन्टाइल पर कैसे । मेडिकल, डेंटल, होम्योपैथी एवं आयुर्वेद के कोर्स में प्रवेश होता है, जब सबके नियामक आयोग अलग-अलग है, एवं सबकी प्रवेश प्रक्रिया भी अलग-अलग होती हैं। सुप्रीम कोर्ट द्वारा मौखिक तौर पर कहा गया कि इन सभी पहलुओं पर उच्च न्यायालय द्वारा विचार किया जाना चाहिए। अंतरिम आदेश के विरुद्ध इस तरह से अपील याचिका स्वीकार करना उचित नहीं है। उपरोक्त तारतम्य में सुप्रीम अदालत की युगलपीठ ने सभी याचिकाओं को खारिज करते हुए उच्च न्यायालय को आदेशित किया कि वे छः सप्ताह के अंदर त्वरित सुनवाई करते हुए सभी याचिकाओं का अंतिम निराकरण सभी पहलुओं एवं मुद्दों पर करें । सुप्रीम अदालत के आदेश से लगभग दो दर्जन आयुर्वेद कॉलेजों में प्रवेशित सैकड़ों छात्रों को राहत मिली है।

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