स्मृति शेष
इंदौर : मोबाइल नहीं होता तो शायद सुधीर गुप्ता के निधन की सूचना भी इतनी जल्दी नहीं मिल पाती, और मजबूरी भी कैसी, सूचना मिल गई तो भी अंतिम विदाई देने नहीं जा सकते। कोरोना वाली बेड़ियों ने कैसा मजबूर कर रखा है। प्रियजनों के लिए बस खबर देखो, अफसोस कर लो, मन मसोस कर रह जाओ या फोन पर संवेदना व्यक्त कर लो।
नईदुनिया के वक्त से गोपी दादा से परिचय था, जब वे भास्कर में आ गए तो उनसे मित्रता गहरी होने के साथ ही सुधीर से भी मित्रता हो गई। गोपी जी की स्मृति में शुरु की गई रिपोर्टिंग स्पर्धा का दारोमदार पहले उनके मित्र सुरजीत सिंह (आईपीएस) और फिर मित्र-पत्रकार प्रकाश_हिंदुस्तानी ने संभाला। बाद में सुधीर ने ही उनके नाम को चलाए रखा। अप्रैल से एक दो महीने पहले ही फोन आ जाता बॉस, तारीख आ रही है याद है ना।आदरणीय (अशोक सेन) पान दुकान पर मुलाकात होती तो तपेंद्र_सुगंधी के साथ यही चर्चा, सुधीर की चिंता रहती इस बार किसे अतिथि रखें। बाद में इस स्पर्धा को इंदौर_प्रेस_क्लब का सहयोग मिलने से सुधीर कुछ चिंता मुक्त सा लगने लगा। भाई अरविंद_तिवारी के बाद उसके लिए नवनीत_शुक्ला स्पर्धा से जुड़ी हर परेशानी का हल हो गए थे। संस्कृतिकर्मी संजय पटेल से लेकर पत्रकार मित्र स्व. महेंद्र बापना, सेठ स्व. नारायण नीमा की ही तरह सुभाष खंडेलवाल (रविवार) भी सहयोग को सदैव तत्पर नजर आए ।
सुधीर से कई बार मुलाकात सराफा में अविनाश आनंद के यहां हो जाती या उसकी दुकान पर भी चले जाता तो केशर की चाय पीने वापस थाने के सामने वाली चाय दुकान पर ही आना पड़ता।सराफा में सोना चांदी कारोबार, पानी पतरे का सट्टा से लेकर चोरी के माल में थाने से लेकर पदाधिकारियों की कितनी हिस्सेदारी, सराफा एसोसिएशन की गुटीय राजनीति आदि की उसे सब जानकारी रहती थी लेकिन बाजार की इज्जत का हवाला देकर टाल जाता। लंबे समय से पत्रकार मित्रों से उसकी पटती तो खूब थी पर उसकी एकमात्र चिंता या कहें लक्ष्य यही रहता था कि गोपीजी की स्मृति वाला कार्यक्रम गरिमापूर्ण तरीके से सम्पन्न हो जाए। पितृ ऋण उतारने का शायद सुधीर का यह एकमात्र कार्य रहा। उसके अचानक निधन संबंधी जानकारी की सत्यता जानने के लिए भाई सुबोध गुप्ता को फोन लगाया तो पता चला सुबह 6 बजे हार्ट अटैक आया। पास के हॉस्पिटल भी ले गए पर….! इंदौर प्रेस क्लब अध्यक्ष अरविंद तिवारी, दैनिक दोपहर परिवार-संपादक नवनीत शुक्ला, प्रिंट-इलेक्ट्रानिक मीडिया के साथियों की तरफ से विनम्र श्रद्धांजलि।
(वरिष्ठ पत्रकार कीर्ति राणा ने ये आलेख लिखा है।)