भक्तों को मनोवांछित फल प्रदान करने वाले, नीलांचल अर्थात पुरी में निवास करने वाले, नारायण श्री हरि कृष्ण स्वरुप भगवान जगन्नाथ, जगत कल्याण के लिए रथ पर सवार होकर भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं। कृष्ण नाम तो मोक्ष प्राप्ति का सहज एवं सरल मार्ग है। भक्तों के संरक्षक पालनकर्ता भाई बलभद्र और लाड़ली सुभद्रा के साथ भ्रमण पर निकले हैं। सनातन धर्म में चार धाम यात्रा का उल्लेख है, जिनमें चार स्थान श्री हरि विष्णु नारायण ने विभिन्न कार्यों के लिए चयनित किए है। उत्तर में बद्रीनाथ में प्रभु की ध्यान स्थली है। दक्षिण में रामेश्वर में प्रभु स्नान करते है। पश्चिम में द्वारिका में विश्राम करते है एवं पूर्व में जगन्नाथ पुरी में भोजन ग्रहण करते हैं। प्रभु ने भक्तों के मनोरथ पूर्ण करने और असीम श्रद्धा भक्ति के लिए चारों दिशाओं को चयनित किया है जिससे भक्त सहज ही ईश्वरीय आराधना से जुड़ सकें। विष्णु श्री हरि नारायण वही स्वरुप हैं जो कृष्ण बनकर देने पर आ जाए तो तीन मुट्ठी चावल में तीनों लोक प्रदान कर दे और जब वामन स्वरुप में आ जाए तो तीन पग से तीनों लोक नाप ले। प्रभु की प्रत्येक लीला भक्त के ईश्वर के प्रति असीम विश्वास को उजागर करती है।
जगन्नाथ पुरी धाम में प्रथम भवन नीलांचल है जिसमें भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के साथ निवास करते हैं। दूसरा है सुन्दरांचल जिसमें गुंडीचा मंदिर है। भगवान श्री हरि, जगन्नाथ स्वरुप में भक्तों के भाव वाला भोजन ग्रहण कर उन्हें भावों की माला से जोड़ते हैं। अपनी माया से छप्पन भोग प्रकट करने वाले जगत के नाथ जगन्नाथ भक्त के अनुग्रह पर भोग ग्रहण कर तृप्ति का अनुभव करते हैं। प्रभु के विभिन्न स्वरुप में प्रत्येक समय ईश्वर की असीम भक्ति से जुड़ने का सन्देश देते हैं। नीलांचल में विराजमान भगवान जगन्नाथ सभा का आयोजन भी करते हैं, बीमार भी होते हैं, औषधि ग्रहण करते हैं, शरीर त्यागते हैं, नवीन शरीर ग्रहण करते हैं और यदि भक्त दर्शन का अभिलाषी हो तो भगवान अपनी दिनचर्या भी परिवर्तित कर देते हैं। एकादशी के दिन चावल में निवास करने वाले पाप से जगन्नाथ धाम में भक्तों को मुक्त करते हैं और दैनिक दिनचर्या अनुरूप चावल की खिचड़ी और व्यंजनों का प्रसाद स्वीकार कर ग्रहण करते हैं।
ब्रह्म तत्व धारण करने वाले भगवान जगन्नाथ, भक्तों की पुकार पर स्वयं अपने गर्भ गृह से निकलकर जन सामान्य के बीच आते हैं। ईश्वरीय लीला कभी भी अकारण नहीं होती, वह तो विधि का विधान होती है जिसमें भक्त का हित और गहरी ईश्वरीय आस्था निहित होती है। जिनकी ईच्छा के बिना पुष्प नहीं खिल सकते एक तुच्छ तृण भी गंतव्य नहीं हो सकता उन प्रभु की रथ यात्रा को भक्त गंतव्य तक पहुंचाते हैं, यह सब सृष्टि के नियामक चक्र में कितनी मनोहारी और अनोखी लीला है भगवान जगन्नाथ की। कुछ समय के लिए प्रभु बीमार हो जाते है, औषधीय काढ़ा ग्रहण करते हैं और लाड़ली सुभद्रा के अनुग्रह पर अपनी मौसी गुंडीचा के घर पर निवास करते हैं।
भगवान जगन्नाथ वही श्रीकृष्ण का स्वरुप है जो माँ को मातृत्व सुख प्रदान करने के लिए अनूठी लीलाएँ करते हैं। कभी काल कोठरी में बंद कर दिए जाते हैं तो कभी रस्सी से बाँध दिए जाते हैं, तो फिर भला मातृ तुल्य मासी का आग्रह कैसे अस्वीकार कर सकते हैं। मौसी अपने दुलारे को प्रत्येक प्रकार से मिष्ठान भोग, दूध, रबड़ी, माखन परोसकर अपने प्रेम अनुराग में कहीं भी न्यूनता नहीं आने देती है। मौसी के मनुहार के पहले भगवान जगन्नाथ जन सामान्य के कष्टों का निवारण करते हैं और भक्तों को दर्शन प्रदान कर असीम भक्ति की क्षुधा को भी शांत करते है। मौसी के घर पहुँचने पर मीठी मनुहार को सहर्ष स्वीकार करते हैं। मौसी अपने लाडलों की प्रतीक्षा में एकटक रास्ता निहारती रहती है। करुणा के सागर, भक्त की ईच्छा को पूर्ण न करें यह संभव नहीं है, इसीलिए लाड़ली सुभद्रा और मातृ तुल्य गुंडीचा मौसी दोनों की इच्छाऍं भगवान जगन्नाथ पूरी करते हैं।
जगन्नाथ भगवान का नगर भ्रमण भक्तों में अनूठे उत्साह का संचार करता है। भक्तों की आतुरता और भक्तों का सैलाब प्रभु के दर्शन के लिए उमड़ पड़ता है। रथ पर आरूढ़ भगवान जगन्नाथ के दर्शनाभिलाषी सुदूर स्थानों से एकत्र होते हैं। प्रभु की छवि के दर्शन का सौभाग्य बिरलों को ही मिलता है। रथ खींचने की होड़ में भक्ति की असंख्य श्रृंखला अविराम प्रतीक्षा करती है। यह कोई सामान्य रथ यात्रा नहीं है बल्कि जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्त करने वाली, असंख्य पापों को क्षण में नष्ट करने वाली, साक्षात् मोक्ष प्राप्ति और अनंत आस्था का द्वार है। संचित पुण्यों का प्रतिफल ही जगन्नाथ रथ यात्रा का दर्शन है। भक्ति कुछ नहीं ईश्वर के प्रति असीम विश्वास है, जो अप्रिय प्रतीत होने पर भी सदैव हित प्रदान करती है। भक्ति के वशीभूत होकर प्रभु प्रत्येक लीला के लिए तत्पर रहते हैं। सृष्टि के पालनहार का बीमार होना, शरीर परिवर्तित करना, औषधि काढ़ा ग्रहण करना, मौसी के प्रेम दुलार को प्राप्त करना, मातृत्व की असीम अनुभूति कराना, यह सब प्रभु की सुन्दर लीला का स्वरुप है। जगन्नाथ रथ यात्रा के जय घोष से भक्ति का अनुपम वातावरण निर्मित होता है जो भक्तों के विश्वास को जीवंत रखता है। आइये इस जगन्नाथ रथ यात्रा में मानसिक या शारीरिक रूप से शामिल होकर प्रभु से एकाकार होने का प्रयास करें।
डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)