नयी दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक की प्रथा को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आज सुनवाई शुरू की और कहा कि वह इस बात की समीक्षा करेगा कि मुसलमानों में प्रचलित तीन तलाक की प्रथा उनके धर्म के संबंध में मौलिक अधिकार है या नहींं, लेकिन वह बहुविवाह के मामले पर संभवत: विचार नहीं करेगा।
प्रधान न्यायाधीश जेएस खेहर की अध्यक्षता में पांच न्यायाधीशों की एक पीठ ने कहा कि वह इस पहलू की समीक्षा करेगी कि तीन तलाक मुसलमानों के लिए प्रवर्तनीय मौलिक अधिकार है या नहीं।
प्रधान न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ इन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। इनमें पांच याचिकाएं मुस्लिम महिलाओं ने दायर की हैं, जिनमें मुस्लिम समुदाय में प्रचलित तीन तलाक की प्रथा को चुनौती देते हुये इसे असंवैधानिक बताया गया है। इन याचिकाओं पर लगातार 10 दिनों तक सुनवाई होगी।
पीठ में 5 धर्मों के जज हैं शामिल
इस पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ, न्यायमूर्ति आर एफ नरिमन, न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित और न्यायमूर्ति अब्दुल नजीर शामिल हैं। संविधान पीठ स्वत: ही लिये गये मुख्य मसले को मुस्लिम महिलाओं की समानता की जुस्तजू नाम की याचिका के रूप में भी विचार के लिये लेगी। संविधान पीठ के सदस्यों में सिख, ईसाई, पारसी, हिन्दू और मुस्लिम समुदाय से हैं।पीठ ने कहा कि वह मुसलमानों के बीच बहुविवाह के मामले पर विवेचना संभवत: नहीं करेगी क्योंकि यह पहलू तीन तलाक से संबंधित नहीं है।
पीठ सात याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है जिनमें पांच पृथक रिट याचिकाएं मुस्लिम महिलाओं ने दायर की हैं। उन्होंने समुदाय में प्रचलित तीन तलाक की प्रथा को चुनौती दी है। याचिकाओं में दावा किया गया है कि तीन तलाक असंवैधानिक है।
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि पीठ द्वारा तैयार किए गए दो प्रश्नों पर अपने अपने तर्क तैयार करने के लिए हर पक्ष को दो दिन का समय दिया जाएगा और एक दिन उनकी दलीलों के विरोध में तर्क देने के लिए दिया जाएगा।इसने यह भी स्पष्ट किया कि वह दलीलों को दोहराने वाले किसी भी वकील को रोक देगी।
पीठ ने कहा, हर पक्ष ऐसा कोई भी तर्क पेश कर सकता है जो वह पेश करना चाहता है लेकिन किसी प्रकार का दोहराव नहीं होना चाहिए। वे केवल तीन तलाक की वैधता पर ध्यान केंद्रित करेंगे।याचिकाओं में मुसलमानों के बीच निकाह हलाला और बहुविवाह जैसी अन्य प्रथाओं की संवैधानिक वैधता को भी चुनौती दी गई है।
तीन तलाक पर इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला
इस मामले में सुनवाई और भी महत्वपूर्ण हो गयी है क्योंकि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अप्रैल के अंतिम सप्ताह में ही अपने एक फैसले में तीन तलाक की प्रथा को एकतरफा और कानून की दृष्टि से खराब बताया था।
हाईकोर्ट ने अकील जमील की याचिका खारिज करते हुये यह फैसला सुनाया था। अकील की पत्नी ने उसके खिलाफ आपराधिक शिकायत दायर करके आरोप लगया है कि वह दहेज की खातिर उसे यातना देता था और जब उसकी मांग पूरी नहीं हुयी तो उसने उसे तीन तलाक दे दिया।