इंदौर : दिवाली के अगले याने धोक पड़वा वाले दिन इंदौर जिले के ग्राम गौतमपुरा में दो गावों की सेनाओं के बीच भीषण संग्राम हुआ। लगभग दो घंटे चले इस युद्ध में दोनों पक्षों के 25 से अधिक योद्धा घायल हुए। जिनकी चोट मामूली थी उनका मौके पर ही इलाज किया गया जबकि गंभीर घायलों को अस्पताल भेजा गया। हजारो लोग इस युद्ध के साक्षी बने।
बरसों से निभाई जा रही परम्परा।
दरअसल ये नजारा था हिंगोट युद्ध का। गौतमपुरा में हिंगोट युद्ध की परंपरा बरसों से निभाई जा रही है। सोमवार शाम झोले में हिंगोट भरकर गौतमपुरा के तुर्रा और रुणजी गांव के कलगी दल के योद्धा देवनारायण मन्दिर के समीप स्थित मैदान पर आ डटे। हजारों दर्शक इस रोमांचकारी युद्ध का आनंद लेने के लिए मौजूद थे। ठीक 5 बजे दोनों दलों के योद्धाओं ने झोले में भरकर लाए अग्निबाण ( हिंगोट ) एक- दूसरे पर बरसाना शुरू कर दिए। देखते ही देखते भीषण संग्राम छिड़ गया। दोनों ओर से जैसे अग्निबाणों की बारिश हो रही थी। कभी तुर्रा के योद्धा भारी पड़ते नजर आए तो कभी कलगी दल के योद्धाओं ने तुर्रा योद्धाओं को पीछे हटने पर मजबूर किया। करीब दो घंटे तक चले इस युद्ध में हार- जीत किसी की नहीं हुई पर दोनों ओर के 25 से ज्यादा योद्धा घायल जरूर हुए। एक योद्धा को आंख के पास चोट आई।उसे तुरंत अस्पताल भिजवाया गया।
सुरक्षा के किये गए थे पुख्ता इंतजाम।
जिला व पुलिस प्रशासन ने हिंगोट युद्ध के दौरान सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए थे। अग्निबाण ( हिंगोट) से दर्शकों की सुरक्षा के लिए जाली लगाई गई थी। घायलों के उपचार के लिए मौके पर ही डॉक्टर और पैरा मेडिकल स्टॉफ के साथ एम्बुलेंस को तैनात रखा गया था। अधिकांश घायलों का इलाज एम्बुलेंस में ही किया गया।
ऐसे बनता है हिंगोट से अग्निबाण।
बताया जाता है कि हिंगोट एक प्रकार का फल होता है, जो हिंगोरिया नामक पेड़ पर उगता है। नींबू के आकार के इस फल की सतह कठोर होती है। इसके एक छोर पर छोटा व दूसरे छोर पर छोटा छेद करने के बाद इसके अंदर भरा गुदा निकालकर उसमें बारूद भरी जाती है। बड़े छेद को पीली मिट्टी और छोटे छेद को बारूद का ही लेप लगाकर बन्द कर दिया जाता है। निशाना साधने के लिए उसपर आठ इंच की बांस की किमची बांधी जाती है। युद्ध वाले दिन दोनों दलों के योद्धा यह अग्निबाण ( हिंगोट ) झोले में भरकर मैदान में उतरते हैं। झोला कंधे पर लटकाए योद्धाओं के एक हाथ में जलती लकड़ी होती है जिससे हिंगोट सुलगाकर दूसरे दल के योद्धाओं पर फेंका जाता है।
हिंगोट युद्ध पर रोक लगाने में नाकाम रहा प्रशासन।
हिंगोट युद्ध में हर साल कई योद्धा घायल होते हैं फिर भी लोग पूर्वजों के जमाने से चली आ रही इस परंपरा को निभाते चले आ रहे हैं। जिला प्रशासन ने बीते वर्षों में कई बार इस जोखिम भरे युद्ध पर रोक लगाने का प्रयास किया लेकिन जनप्रतिनिधियों और स्थानीय जनता के भारी विरोध के चलते उसके प्रयास विफल साबित हुए।