मैं मिट्टी की काया’
पाँच तत्व मिलाकर,
मालिक तूने इसे बनाया।
अग्नि से क्रोधित हो जाती,
पानी से ये गीली।
हवा साँसों में घुल जाती
फिर भी चलती जाती।
आख़िर में धरती ये कहती,
तुझे मुझमें मिल जाना है।
ऊपर से आकाश बुलाता,
तेरा यही ठिकाना है।
जीवन की चक्की में देखो,
सब कैसे पीसे जाते हैं।
कभी अंधेरा कभी उजाला,
फिर भी जीते जाते हैं।
तूने जीवन दान दिया,
तू ही पार लगाएगा।
जब तू है मेरे साथ खड़ा,
तो ये जीवन मुसकाएगा।
कीर्ति सिंह गौड़
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