🔹कीर्ति राणा/89897-89896
गृहस्थ संत शायद इसीलिए कहा जाता है कि इस श्रेणी वाले संत घर-गृहस्थी के साथ धर्म-कर्म की राह पर चलते रहते हैं।कबीर, तुकाराम आदि संत इसी परंपरा के तो रहे हैं।सिंहस्थ के दौरान ही दद्दाजी से मुलाकात हुई थी।
जब तक नहीं मिला तब तक उनका पार्थिव शिवलिंग निर्माण वाला आयोजन कुछ अटपटा लगता था। जिस दिन मुलाकात को गया, वहां दर्शन करने वालों का हुजूम था। कुछ देर इंतजार करना पड़ा तो उतने वक्त मैं भी उन ग्रामीण महिला-पुरुषों के झुंड के बीच मिट्टी के शिवलिंग बनाने बैठ गया । मिट्टी की गटागट जितनी गोलियां बनाते और उन्हें अगूंठे के आकार जितने शिवलिंग का आकार देकर चांवल के दाने चिपका कर पत्तल और परात में रखते जा रहे थे।कुछ देर बाद उनसे मुलाकात हुई।
लकड़ी वाले छोटे तखत पर मस्तक पर कंकू का बड़ा गोलाकार टीका, साथ में चंदन भी। सिर पर लाल रंग वाला पारंपरिक पंछा, हाफ बांह वाला सफेदझक कुर्ता और धोती, मुस्कुराता चेहरा, नाम आचार्य देव प्रभाकर शास्त्री। सब के दद्दाजी बोले मिट्टी के पार्थिव शिवलिंग बनाते हुए ध्यान, संयम, प्रेम के आनंद की त्रिवेणी बहती है।शिव तो एक लोटा जल से भी खुश होने वाले हैं। फिर जब पांडाल में जुटे सैकड़ों लोग शिवलिंग बनाते हैं तो शिव सबके हो जाते हैं। मुलाकात छोटी सी थी लेकिन उनके पांडाल में आना जाना होता रहा।
जितनी बार भी उनसे मिला, निश्छल और बालसुलभ संत लगे।छल, छद्म और वीआयपी आभामंडल से परे। दद्दाजी से मिलते वक्त लगता नहीं था कि किसी संत से मिल रहे हैं, ऐसा लगता था घर के किसी दादा-ताऊ से मिल रहे हैं।जितने भी गृहस्थ संतों के दर्शन का अवसर मिला उन सब में भी दद्दाजी कुछ अलग से लगे तो शायद इसीलिए कि वे फाइव स्टार कल्चर वाली संतई से अछूते रहे।
यूं तो खुद दद्दाजी का अपना शिष्य संसार है लेकिन #आशुतोष_राणा जैसे सुशिष्य की सुकीर्ति ने भी बताया कि गुरु किस तरह शिष्य को गढ़ता है। वहीं पर एक शाम मीडिया से चर्चा में अभिनेता आशुतोष राणा से दूसरी मुलाकात हुई तो इंदौर प्रेस क्लब की पहली मुलाकात की याद दिलाते हुए कहा आप भी राणा, मैं भी राणा।
पार्थिव शिवलिंग निर्माण का दद्दाजी का जो कंसेप्ट है उससे गांव-शहरों का आम श्रद्धालु भी उनके ऐसे आयोजन में खिंचा चला आता था।इंदौर में #कैलाश_विजयवर्गीय और #रमेश_मेंदोला की जोड़ी को ही दद्दाजी के सानिध्य में सवा पांच करोड़ से अधिक पार्थिव शिवलिंग निर्माण का (देश में) कीर्तिमान कायम करने का श्रेय जाता है।
अब जबकि दद्दाजी शरीर छोड़ चुके हैं तो उनकी पार्थिव शिवलिंग निर्माण वाली साधना का यह संदेश भी समझ आया है कि मिट्टी के शिवलिंग के माध्यम से दद्दाजी यह संदेश भी देते रहे कि शव से शिव बनने का आसान मार्ग मिट्टी का मिट्टी में मिल जाना ही है।वे पवित्र नदियों-तालाब की मिट्टी का उपयोग पार्थिव शिवलिंग निर्माण में संभवत नदी-तालाब के गहरीकरण के लिए कराते रहे और यह संदेश भी देते रहे मन में यदि भक्ति का भाव है तो साधना के मार्ग में किसी तरह के दिखावे, तड़क-भड़क की भी जरूरत नहीं है, मिट्टी वाले शिव भी प्रसन्न हो सकते हैं बशर्ते निर्माण करते वक्त मन में भी प्रसन्नता का भाव हो। दद्दाजी भी प्रसन्न भाव से पार्थिव शिवलिंग से हो गए।जब तक सांसारिक जगत में रहे तब भी वे संत नहीं, परिवार के दद्दाजी ही लगे।संतों के आभामंडल से भाजपा-कांग्रेस के नेता-मंत्रियों को तो प्रभावित होते देखा लेकिन दद्दाजी के कैंप में आने वाले ऐसे सारे वीआयपी ने उन पर कभी असर डाला हो ऐसा नजर नहीं आया।