देपालपुर के खेड़ापति हनुमान मंदिर की जमीन के मामले में प्रशासन को सुप्रीम कोर्ट से मिली राहत

  
Last Updated:  October 21, 2022 " 03:42 pm"

इंदौर : सुप्रीम कोर्ट ने मप्र शासन-प्रशासन को सरकारी जमीनों के मामलेे में बड़ी राहत दी है। विलंब से दायर की गई याचिका को भी स्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इंदौर जिले की देपालपुर तहसील के खेड़ापति हनुमान मंदिर की जमीन के मामले में स्टे दे दिया है। इसके चलते लगभग 50 करोड़ रुपए मूल्य की श्री खेड़ापति हनुमान मंदिर की सरकारी जमीन निजी हाथों में जाने से फिलहाल बच गई है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर ही इस मामले में लापरवाही बरतने वाले तीन तहसीलदारों के खिलाफ कार्रवाई भी की गई। जबकि दो तहसीलदारों की भूमिका संदिग्ध नहीं पाई गई।

ये है पूरा मामला :-

देपालपुर स्थित खेड़ापति हनुमान मंदिर की लगभग 25 एकड़ जमीन को तत्कालीन पुजारी ने खुर्द-बुर्द कर दिया और यह जमीन निजी हाथों में चली गई थी। पिछले दिनों कलेक्टर मनीष सिंह को इस बेशकीमती जमीन की जानकारी मिली तो उन्होंने अपर कलेक्टर राजेश राठौर को प्रकरण का प्रभारी अधिकारी नियुक्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी प्रस्तुत करने के निर्देश दिए। दरअसल इस मामले में इंदौर हाईकोर्ट में ही 2013 में शासन-प्रशासन हार गया था। सीधे कलेक्टर का नाम प्रबंधक के रूप में दर्ज करने के खिलाफ दायर की गई याचिका में इस बात पर आपत्ति ली गई कि पुजारी का पक्ष नहीं सुना गया। लिहाजा हाईकोर्ट में की गई दूसरी अपील भी शासन की खारिज हो गई। नतीजतन इस जमीन, जिसका सर्वे नम्बर 190, 1065 और 1066 है पर सुप्रीम कोर्ट जाने पर सीधे खारिज होने का खतरा भी था हालांकि अतिरिक्त महाधिवक्ता से अभिमत प्राप्त कर कलेक्टर ने शासन के स्टेंडिंग काउंसिल के स्थायी अधिवक्ता से भी चर्चा की। चूंकि प्रकरण में 6 साल से अधिक का विलंब हो गया था और एसएलपी दायर करने पर प्रथम दृष्ट्या ही उसके खारिज होने के साथ शासन पर भारी जुर्माना लगाए जाने की आशंका भी जताई गई, बावजूद इसके पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट द्वारा ही दिए गए मंदिरों की जमीनों के एक फैसले को आधार बनाकर एसएलपी दायर की गई और सुप्रीम कोर्ट के ही आदेशानुसार इस मामले में दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई भी की गई।

एक तहसीलदार की वेतनवृद्धि रोकी।

अपर कलेक्टर राजेश राठौर के मुताबिक इस मामले में तीन तहसीलदारों के खिलाफ कार्रवाई की गई है। तत्कालीन तहसीलदार योगेन्द्रसिंह मौर्य की एक वेतनवृद्धि रोकी गई और दो अन्य तत्कालीन तहसीलदारों केश्या सोलंकी और चरणजीतसिंह हुड्डा के खिलाफ परिनिंदा की शास्ती अधिरोपित की गई। एक तहसीलदार अवधेश चतुर्वेदी सेवानिवृत्त हो गए। लिहाजा उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं की गई। इन दोषी अधिकारियों के खिलाफ की गई कार्रवाई का प्रतिवेदन भी सुप्रीम कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया गया, जिसे कोर्ट ने स्वीकार किया। शासन की ओर से दायर एसएलपी को भी मंजूर करते हुए इंदौर हाईकोर्ट द्वारा शासन के खिलाफ दिए गए आदेश पर स्टे भी जारी कर दिया। अब इस फैसले से ऐसे अन्य मामलों में बड़ी मदद मिलेगी।

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