🔹चुनावी_चटखारे/कीर्ति राणा🔹
प्रदेश और राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे कुशाभाऊ ठाकरे वाली भाजपा में जरूर कार्यकर्ता ही शक्ति का मूलाधार रहते थे लेकिन जब से संभाग प्रभारियों और संगठन मंत्रियों को चमचमाती गाड़ियों के साथ कुर्ते-पाजामे सिलवाने से लेकर हर तरह की सुविधाएं उपलब्ध कराने का चस्का जिलों के घाघ नेताओं ने लगाया है, लगभग सभी जिलों में पार्टी, नेता आधारित गुटों में बंटती गई है।नतीजा यह कि पार्टी के हर बड़े आयोजन में निष्ठावान कार्यकर्ताओं को धकियाते हुए हर शहर और जिले में उन्हीं कुछ गिने-चुने कार्यकर्ताओं के चेहरे भोपाल तक पहचाने जाने लगे हैं जो विधायक-सांसद-महापौर-पूर्व सांसद प्राधिकरण या अन्य निगम अध्यक्ष की मंडली में शामिल रहते हैं।सिंधिया और उनके समर्थक विधायकों-कार्यकर्ताओं के लिए हर नियुक्ति में प्राथमिकता से भी उन जिलों के भाजपा कार्यकर्ता तय नहीं कर पा रहे हैं कि क्या करें।
कार्यकर्ताओं के बलबूते पर लगातार तीन बार सरकार बनी लेकिन चौथी बार धनबल से ही सत्ता मिल जाने का ही असर रहा है कि देवदुर्लभ कार्यकर्ताओं को भी यह महसूस होता रहा है कि पार्टी को अब पहले की तरह उनकी जरूरत नहीं है। सीएम से बैठकों में पार्टी के बड़े नेता तो कह सकते हैं कि अधिकारी उनकी नहीं सुनते लेकिन इन देवदुर्लभ कार्यकर्ताओं से सीधे बात करने का तो वक्त न को मुख्यमंत्री के पास है न ही पार्टी अध्यक्ष के पास है।पार्टी अध्यक्ष को संगठन चलाने के अनुभव की कमी जैसे कारणों को इतना अधिक प्रचारित किया गया है कि शायद ही कोई महीना रहा हो जब उन्हें बदले जाने की बातें नहीं चली हों-ऐसी चर्चाओं का एक कारण यह भी रहा है कि सरकार स्तर पर सारी खामियां स्वत: ही नजरअंदाज हो गईं।
सरकार की हर घोषणा इन 18 वर्षों में इवेंट आधारित होते जाने का ही नतीजा है कि कुशाभाऊ ठाकरे के रहते जो युवा कार्यकर्ता थे वो आधी उम्र के बाद अब बसों में लाई जाने वाली भीड़ लायक भी नहीं रह गए हैं।अन्य संसाधनों सहित भीड़ जुटाने का टारगेट जिलों के अधिकारियों द्वारा पूरा कर देने से राष्ट्रीय नेताओं की नजर में संगठन क्षमता के मामले में स्थानीय पदाधिकारियों के नंबर बैठे-ठाले नंबर बढ़ जाते हैं।
सत्तर पार के लिए कोई काम नहीं की लागू अघोषित नीति से पार्टी को मजबूत बनाए रखने वाली जड़ें सड़ने लगी हैं।इसकी चिंता अब इसलिए नहीं है कि शहर से लेकर जिला इकाइयों तक में 35 से ऊपर के लोगों को योग्यतम माना जाने लगा है जिन्होंने न तो कांग्रेस सरकार में आंदोलन किए न ही लाठियों-अश्रु गैस का सामना किया।जिन्होंने शिवराज सरकार के इन अठारह सालों में हरा-हरा ही देखा वो क्या जानें कि मप्र में पार्टी किन लोगों के कारण सत्ता में रहने का रिकार्ड बनाती रही है। संगठन में जब 35-40 के युवाओं पर भरोसा किया जाएगा तो ये युवा अध्यक्ष तपेतपाए वरिष्ठ अनुभवी नेताओं को सम्मान क्यों देंगे।अब जब चुनाव सिर पर हैं और पार्टी का चरमराता ढांचा असंतोष-अपनान-उपेक्षा के थपेड़ों से निरंतर कमजोर होता जा रहा है तब दिल्ली से चुनाव संचालन करने आए नेताओं को भी पुराने नेताओं की उपयोगिता और बीते वर्षों में हुई उनकी निरंतर अवहेलना के कारण समझ आ रहे हैं।इन नेताओं के निर्देश पर ही अब हर जिले में विधानसभावार पुराने कार्यकर्ताओं से मेल मुलाकात, उन्हें पार्टी में जोड़ने का अभियान चलाया जा रहा है।मार्गदर्शक मंडल के नेताओं की हालत देखकर इस पुरानी पीढ़ी के कार्यकर्ताओं को भी समझ आ चुका है कि ये मानमनौवल चुनाव तक ही है।
दिल्ली से मप्र भेजे नेताओं ने कार्यकर्ताओं को पॉवर सेंटर और खुद को तार, स्विच बताकर पार्टी वर्कर को मोहित करने की कोशिश जरूर की है लेकिन इस आदर्श वाक्य के बाद से कार्यकर्ताओं को भी अभी तक ऐसा नहीं लगा है कि वाकई वो पॉवर सेंटर हैं।
तेरी टंकी तो अब मेरी भी टंकी।
सरकार बनने पर कमलनाथ ने 500 रु में गैस टंकी उपलब्ध कराने की घोषणा कर रखी है।इस घोषणा का लाड़ली बहनों पर बढ़ते प्रभाव को समझ कर अब शिवराज सरकार भी 500 रु में गैस टंकी वाली घोषणा की कॉपी कर सकती है। नारी सम्मान योजना के बाद गैस टंकी योजना का भी अपहरण होने की आशंका से घबराई कांग्रेस के रणनीतिकार तय नहीं कर पा रहे हैं कि उनकी घोषणाओं की फर्स्ट कॉपी नहीं हो इस दिशा में अब क्या करें।
अमित शाह के आगमन का इंतजार !
मालवा क्षेत्र में आरएसएस का गढ़ माने जाने वाले उज्जैन में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह 30 जुलाई को आने वाले हैं।यहां वे संभागीय बूथ सम्मेलन में कार्यकर्ताओं से रूबरू होंगे।उनकी इस पहली यात्रा में कार्यकर्ता तो उत्साह से स्वागत करेंगे ही, महाकाल लोक की मूर्तियों वाला भ्रष्टाचार, उच्च शिक्षा मंत्री के गृह नगर में विक्रम की जगह चक्रम बनते विश्वविद्यालय और मंत्री द्वारा सिंहस्थ क्षेत्र वाली अपनी कृषि भूमि को आवासीय कराने के लिए की गई जोड़तोड़ को विफल करने वाले पूर्व सांसद और विधायक-पूर्व मंत्री भी इस मामले में जनभावना के मान की रक्षा के लिए की गई पहल से मौका देख कर गृहमंत्री तक अपनी बात पहुंचाएंगे।
हाटपिपलिया में कांग्रेस के स्वयंभू प्रत्याशी ।
किसानों को गेहूं का दाम 3 हजारु क्विंटल दिए जाने की मांग को लेकर पूर्व मंत्री दीपक जोशी, राजवीर बघेल सहित अन्य नेताओं ने राजोदा से ट्रेक्टर रैली निकाली जिसका समापन हाटपिपलिया में हुआ।गेहूं का दाम बढ़ाने की मांग को लेकर निकली इस रैली की खास बात यह भी रही कि राजवीर बघेल को कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में प्रचारित किया जा रहा था, जबकि कमलनाथ ने 230 सीटों में से किसी सीट के लिए प्रत्याशी की घोषणा नहीं की है।
एक हजारों में मेरी बहना है….
कांग्रेस के तमाम लोग भले ही सिंधिया को पार्टी से गद्दारी करने वाला, सिंधिया घराने को अंग्रेजों की मदद और झांसी की रानी से धोखे का गुनहगार कहें लेकिन ग्वालियर में आमसभा करने आईं प्रियंका गांधी के मन में अभी भी उनके प्रति भाई वाला स्नेह लोगों ने महसूस किया है। कम से कम सिंधिया को उनके लिए तो गुनगुनाना चाहिए एक हजारों में मेरी बहना है…।जिस झांसी की रानी की प्रतिमा पर प्रियंका वंदन करने गईं वहां सिंधिया परिवार द्वारा आजादी आंदोलन में झांसी की रानी के साथ की गई गद्दारी का पोस्टर लगा था।उस पर नजर भी डाली लेकिन सभा में संतुलित भाषण ही दिया। सोनिया गांधी परिवार में सिंधिया को पुत्रवत स्नेह मिलता रहा है।यही वजह रही कि उनके गढ़ में सभा करने आईं प्रियंका गांधी ने मैं सिंधिया पर दस मिनट बोल सकती हूं लेकिन मूल मुद्दों पर बात करुंगी कह कर बड़ी चतुराई से सिंधिंया की सार्वजनिक रूप से बुराई करने से कन्नी काट ली।
एबीवीपी ने मनाया अपना अमृत महोत्सव।
संघ कार्यकर्ता बलराज मधोक ने 9 जुलाई, 1949 को जब अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की स्थापना की थी तब कहां सोचा होगा कि देश का सबसे बड़ा छात्र संगठन बन चुका एबीवीपी अपना अमृत महोत्सव गोरखपुर विवि के कुलपति, रजिस्ट्रार, पुलिसवालों को बेरहमी से पीट कर मनाएगा।अब यूपी सहित बाकी प्रदेशों के लोग इंतजार कर रहे हैं कि योगी आदित्यनाथ बुलडोजर ब्रिगेड को इन हुड़दंगियों के मकानों की लिस्ट कब सौपेंगे।