इंदौर : हमारी पदयात्राओं संबंधी पुरातन मान्यताएं जहां हमें अपने देश, अपने परिवेश को जानने समझने और सामाजिक एकरूपता को पाने का जरिया है वहीं ये हमें मानसिक के साथ शारीरिक आरोग्य भी देती हैं।
ये विचार हाल ही में हिमालय के चारों धाम की साहसिक पदयात्रा कर लौटे वरिष्ठ पत्रकार , रंगकर्मी व रचनाधर्मी ओम द्विवेदी ने व्यक्त किए। वे आपले वाचनालय द्वारा उनके सम्मान में आयोजित विशिष्ट संस्मरणात्मक कार्यक्रम में बोल रहे थे।
श्री द्विवेदी ने तीन हजार छह सौ किलोमीटर की अपनी पूर्व नर्मदा परिक्रमा की पदयात्रा के रोचक संस्मरण सुनाते हुए इसे चार धाम प्दायात्रा की साहसिक व रोचक पूर्व तैयारी निरूपित किया। उन्होंने कहा कि इस यात्रा में मिले परिक्रमावासियों से हुई चर्चाओं में उत्तराखंड , हिमालय की पदयात्राओं की महत्ता सुनकर इस यात्रा का मानस बना।
हिमालय के सर्वज्ञात चार धामों के अलावा भी केदार व बद्री के अल्पज्ञात अनेक दुर्गम महत्व के देवस्थान है जहां पहुंचकर मुझे अलौकिक अनुभूति का साक्षात्कार हुआ । तीन महीने तीन दिन की इस दुर्गंम साहसिक यात्रा में पग – पग पर आई चुनौतियां और उन पर मिली विजय आपकी ईश्वरीय आस्थाओं को न सिर्फ दृढ़ करती है वरन प्रकृति की सदाशयता व मातृवत स्नेह आपको नतमस्तक करता है। इन यात्राओं में मिला सभी वर्गों का स्नेह भी इस विपरीत समय में मानवता के प्रति आपकी आस्था को दृढ़ करता है।अपनी रोचक व धाराप्रवाह शैली में ओमजी द्वारा दिये गए इस संस्मरणात्मक व्याख्यान ने श्रोताओं को न सिर्फ भावविभोर किया वरन वे भी इस पदयात्रा के हमराही होने के एहसास से सराबोर हुए ।
प्रारंभ में सतीश यवतीकर ,दीपक देशपांडे ,जयंत गुप्ता ,सदाशिव कौतुक ,प्रभु त्रिवेदी ,अरुणिमा राजुरकर ,दीपक शिरालकर , अरुण मौर्य ने श्री द्विवेदी को पुष्प- कृति भेंट कर स्वागत किया। संस्था की ओर से संदीप राशिनकर ने शाल , पुष्प हार व स्मृति चिन्ह भेंटकर ओम द्विवेदी युगल का सम्मान किया।
कार्यक्रम का संचालन श्रीति राशिनकर ने किया ।
इस अवसर पर बड़ी संख्या में सुधि श्रोता उपस्थित थे।