श्रीराम का जीवन हो या हो अलौकिक मंदिर निर्माण,सहने पड़े दोनों को ही अनंत संघर्षो के बाण।
जो श्रीराम करते स्वयं सृष्टि का शंखनाद, उनके जीवन और मंदिर निर्माण में आए कई विघ्न एवं विवाद।
वर्षों की प्रतीक्षा के पश्चात् ह्रदय को हर्षोल्लास और उमंग से भर देने वाला, नैनों में भक्ति की अविरल धारा प्रवाहित करने वाला क्षण 22 जनवरी को आने वाला है। राम लला की प्राण प्रतिष्ठा और उनके स्वागत के भव्य आयोजन के हम भी साक्षी होंगे, यह राम कृपा और हमारा अहो भाग्य है। फिर से प्रभु श्रीराम अपने जन्म स्थल में विराजमान होने वाले हैं। राम मंदिर निर्माण हो या श्रीराम का जीवन, धैर्य इसमें सदैव महत्वपूर्ण रहा है। राम भक्तों जैसे अहिल्या, शबरी, केवट, सुग्रीव इत्यादि ने भी अनंत प्रतीक्षा के बाद ही प्रभु से भक्ति का अनुराग प्राप्त किया था।भक्त हनुमान, माता सीता और भाई भरत ने भी श्रीराम से धैर्य का ही पाठ सीखा था। राम लला के विराजमान होने का सभी भक्तजन तत्परता से इंतज़ार कर रहे हैं। प्रत्येक भक्त इस भव्य आयोजन पर उमंग और उल्लास से झूमना चाहता है। आकुल-व्याकुल होकर राम लला के दर्शन का मनोरम दृश्य अपनी आँखों में संजो लेना चाहता है। अयोध्या जाकर राम लला के साथ बस राम मय होना चाहता है।
यह ऐतिहासिक दिन हमें सूर्यवंशी राम के आगमन के साथ अनंत भक्ति के सागर में डूबने को लालायित करता है। राम के धैर्य का पाठ हमें राम जन्मभूमि पर राम लला के आगमन में भी दिखाई दिया। संघर्षों के घेराव को भेदकर विजय प्राप्त करना ही जीवन का लक्ष्य होना चाहिए। बहु प्रतीक्षित क्षण में राम लला का विराजमान होना तो निश्छल, सरल भक्तों की भक्ति का ही परिणाम है। हे राम लला तेरा वंदन, अभिनन्दन है। राम लला के अमोघ दर्शन एक अनूठे स्वप्न के साक्षात्कार का शंखनाद है। राम लला स्वरुप में आप हमें पुनः धैर्यवान बनने का पाठ सिखाते हैं।
अविस्मरणीय बहुप्रतीक्षित मंदिर निर्माण देता सीख, जीवन की परीक्षाओं में धैर्य से लड़े निर्भीक।
राम और राम मंदिर ने काटा अनंत वनवास, फिर मनुष्य क्यों भयभीत होता अपने जीवन के त्रास से।
श्रीराम तो स्वयं अधर्म के नाशक, कल्याण का आधार, उद्धारक, करुणा के अवतार हैं। राम में सकल संसार निहित है। राम नाम तो अर्पण, समर्पण, सुधा, संहारक, करुणा, आस, विश्वास, सृजन का प्रतिरूप है। अनूठे प्रेम के प्रतीक हैं श्रीराम, वचनबद्धता के अनूठे निर्वाहक हैं श्रीराम, पीड़ितों के सम्मान के रक्षक हैं श्रीराम, प्रेम के वशीभूत होकर जो झूठा भी ग्रहण कर जाए वो हैं श्रीराम, विनय और करुणा के अनूठे रूप हैं श्रीराम, अन्याय के संहारक हैं श्रीराम, शरणागत को भी ससम्मान स्थान देते हैं श्रीराम, श्रीराम सर्वस्व हैं, जीवन की प्रत्येक परिस्थिति में हम राम नाम का ही स्मरण करते हैं। सुख-दुःख, अभिवादन, पीड़ा यहाँ तक ही मृत्यु के समय भी राम नाम ही सहाय और मुख से उच्चारित होता है। राम लला की भक्ति और राम नाम की शक्ति अनूठी और अद्वितीय है। अथाह प्रेम के सागर है श्रीराम। सघन प्रीत और समर्पण की विजय है राम। राम ने अपने जीवन में अनवरत संघर्षों के द्वारा अनूठे आयाम रच दिए। ऐसे ही राम लला को भी विराजमान होने के पूर्व अनेक संघर्षों का सामना करना पड़ा। नभ की प्रफुल्लता तो देखिए, धरा की जगमगाहट तो देखिए, पाँच सदी का वनवास राम लला ने भी पूर्ण किया, राजा राम को तो कैकयी ने मात्र चौदह वर्ष का ही वनवास दिलवाया था। राम लला के अपने आलय में आने के पुण्य अवसर पर भक्त हर्षित है। वे प्रेम भाव के कुसुम अयोध्या धाम को समर्पित करना चाहते हैं। अश्रुपूरित नेत्र और अपार स्नेह से राम लला को निहारना चाहते हैं।
अयोध्या तो राम लला की जन्मस्थली है। राम लला की प्रतिमा केवल प्रतिमा नहीं बल्कि प्रतिमान है। अवधपुरी की पहचान और मिथिला नगरी की शान है। राम लला तो भक्तवत्सल करुणा निधान हैं।महादेव स्वयं कहते हैं कि मेरे कंठ में तो हलाहल विष विद्यमान है, फिर भी मुझे राम नाम रूपी शिरोमणि से सदैव ही विश्राम है। प्रभु की चरण भूमि अब तीर्थ का रूप धारण कर चुकी है। राम की श्रीराम बनने की यात्रा में राघव का वन-वन भटकना, युवावस्था में संघर्षों की तपन को सहना, जनकल्याण के लिए कन्दमूल खाकर वनवास काटना, यह सबकुछ सहज तो नहीं था, परन्तु आने वाले समाज के लिए प्रत्यक्ष उदाहरण तो प्रस्तुत करना था।
सृष्टि के सृजनकार, पालनहार श्री राम लला के विराजमान होने वाले पुण्य अवसर के इस विलक्षण क्षण के हम भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से साक्षी होगें। राम लला के दर्शन की लालसा तो शायद ही समाप्त होगी। उनकी छवि निहार कर हमें मन-मंदिर में भी राम राज्य की स्थापना करनी है। राम नाम अभिवादन, पूजा एवं सत्कार भी है। भाव सागर से पार पाने के लिए भी हम राम नाम का ही आश्रय लेते हैं। आइये ऐसी पावन स्थली राम जन्मभूमि और राम लला की पावन भक्ति गंगा में गोते लगाएँ और प्रभु के चरणों में अपना स्थान सुनिश्चित करें। मन की चंचल गति की थाह पाना तो असंभव है, तो फिर क्यों न हम भक्ति भाव से विभोर होकर राम लला के स्वागत के लिए अंतर्मन में प्रकाश के दीप प्रज्वलित करें और अपने मन को ही अयोध्या रूपी तीर्थ में परिवर्तित करें। भव्य मंदिर, भव्य मूर्ति निर्माण संपन्न हो रहा है, पर भक्ति और आस्था के इस ऐतिहासिक उत्सव में सरल और उदार भावों का अभाव न होने पाए।
कण-कण में गुंजायमान है प्रभु श्रीराम,राम लला के आगमन से अयोध्या बना है धाम।
शुभ एवं पुण्यदायी अवसर है प्राण प्रतिष्ठा, अगाध श्रृद्धा और निष्ठा का,डॉ. रीना कहती, यह समय है मनमंदिर में भी राम की स्थापना का।
डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)