इंदौर : संस्था पंचम निषाद द्वारा संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार और संस्कृति संचालनालय मप्र सरकार के सहयोग से जाल सभागृह में गायनाचार्य पं. सी. आर. व्यास के शताब्दी प्रसंग पर आयोजित शास्त्रीय संगीत समारोह का समापन गायन – वादन की स्तरीय प्रस्तुतियों के साथ हुआ। दूसरे और अंतिम दिन भी देश के कईं ख्यातनाम कलाकारों ने अपनी प्रस्तुतियां दी। इनमें दो गायन और एक वादन की सभाओं का समावेश था। सबसे पहले शताब्दी प्रसंग पर अपने गुरू को उन्ही की सुशिष्या और देश की ख्यात गायिका शोभा चौधरी ने स्वरांजलि पेश की। अपने गायन की शुरुआत उन्होंने राग मधुवंती से की। इस राग को आमतौर पर दोपहर बाद यानि दिन के तीसरे पहर मे गाया जाता है। राग के बडे ख्याल का विस्तार “ऐ लाल के नैना अंजन सो हतो” विलंबित एकताल मे था। छोटे ख्याल की बंदिश “सुन पिया अरज अब मोरी” द्रुत तीन ताल और “तोहे आन मोरी अब ना जाओ” द्रुत एकताल में सजी थी। गायन का समापन शोभा चौधरी ने राग मारवा मे बंदिश ” हो गुणीयन मेल ” पेश कर किया जो एकताल मे निबध्द थी। उनके साथ तबले पर पं. सुरेश तळवलकर के शिष्य दुर्जय भौमिक और हार्मोनियम पर परोमिता मुखर्जी ने संगति की, वहीं तानपूरे पर केदार मोडक और गुणिता रिसबुड थे।
कोलकाता से आये असीम चौधरी ने समारोह की दूसरी सभा की बागडौर संभाली। आपने गायकी अंग के सितार वादन से उन्होंने श्रोताओं को वादन शैली के अलग आयाम से परिचित कराया। ऋतुओं के राजा बसंत ऋतु के चलते वादन के लिये राग बहार का चयन कर उन्होंने आलाप, जोड, झाला सुनाते हुए विलंबित तीन ताल और द्रुत तीन ताल मे दो बंदिशें सुनायी। राग खमाज में गायन शैली में गायी जाने वाली ठुमरी “कोयलिया कूक सुनावे” को पं. चौधरी ने सितार पर हूबहू बजाकर श्रोताओं के दिलों पर दस्तक दी। तबले पर अंशुल प्रताप सिंह ने उनका साथ बखुबी निभाया।
पंडित सीआर व्यास शताब्दी प्रसंग का समापन
Last Updated: February 6, 2025 " 10:22 pm"
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