इंदौर शहर में एयर क्वालिटी इंडेक्स में सुधार के लिए शहरी वन विकास।
इंदौर : महापौर पुष्यमित्र भार्गव और विधायक महेंद्र हार्डिया ने रुपए 1 करोड़ 77 लाख की लागत से नगर वन परियोजना के तहत अहिल्या वन सिटी फॉरेस्ट का पिपल्याहाना झील के किनारे वृक्षारोपण कर शुभारंभ किया। इस सिटी फॉरेस्ट का कुल क्षेत्रफल 11 हेक्टेयर रहेगा। इस अवसर पर उद्यान विभाग प्रभारी राजेंद्र राठौर, पार्षद राजीव जैन, पूर्व पार्षद अजय सिंह नरूका अपार आयुक्त ऋषभ गुप्ता, निगम सचिव राजेंद्र गरोठिया और क्षेत्रीय रहवासी उपस्थित थे।
100 से अधिक विकसित होंगे सिटी फॉरेस्ट।
महापौर पुष्यमित्र भार्गव ने कहा की शहर में 100 से अधिक अहिल्या वन सिटी फॉरेस्ट का विकास किया जाना है। यह सिटी फॉरेस्ट इंदौर के लिए लंग्स का काम करेंगे जो शहर की वायु गुणवत्ता में सुधार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। जिसतरह इंदौर स्वच्छता में नंबर वन है, उसी प्रकार वायु गुणवत्ता में भी इंदौर नंबर वन शहर बनेगा। महापौर श्री भार्गव ने कहा कि पिपल्याहाना तालाब स्थल के पास 11 हेक्टेयर भूमि पर 40 हजार से अधिक पौधे रोपे जाएंगे।
शहर के बनेंगे ऑक्सीजन बैंक।
उद्यान प्रभारी राजेंद्र राठौर ने बताया की इंदौर शहर ‘हरित इंदौर’ के अपने दृष्टिकोण को साकार करने के लिए वायु गुणवत्ता को प्राप्त करने और बनाए रखने का लक्ष्य बना रहा है। इस दिशा में पहले कदम के रूप में, शहर में घने जंगल के लिए पिपल्याहाना झील स्थल की पहचान की है। शहर का लक्ष्य चिन्हित खुली भूमि में सिटी फॉरेस्ट का निर्माण करना है ताकि उन्हें शहर के ऑक्सीजन बैंकों में बदला जा सके। सिटी फॉरेस्ट के लिए शहर भर में खुले स्थानों की पहचान कर ली गई है, जिन्हें हरित स्थान के रूप में विकसित किया जाएगा। चयनित साइट पहचाने गए ग्रीन स्पेस (गार्डन+अहिल्यावन) से जुड़ जाएगी जो कार्बन फुटप्रिंट को कम करने और शहर के समग्र एक्यूआई में सुधार करने के लिए स्पंज पॉइंट के रूप में कार्य करेगी।
विभिन्न प्रजातियों के लगाएंगे पौधे।
विधायक महेंद्र हार्डिया ने कहा कि पिपल्याहाना झील के सिटी फॉरेस्ट में अशोक, नीम, पीपल, जाम, जामुन, बांस आदि प्रजातियों के पौधे लगाए जाएंगे। शहर के बीचोबीच इसकी उपस्थिति के कारण क्षेत्र में यातायात का प्रवाह अधिक होता है, जिसके परिणामस्वरूप एक्यूआई कम हो जाता है।
विदित हो की प्रस्तावित सिटी फॉरेस्ट में वृक्षारोपण को मियावाकी तकनीक के अनुसार निष्पादित किया जाएगा जो एक स्थायी दृष्टिकोण है और 10 गुना तेजी से बढ़ने में सक्षम है, 30 गुना सघन है और तीन साल में आत्मनिर्भर हो जाता है। अंततः, वृक्षारोपण से आसपास के ठोस ताप द्वीपों में तापमान कम करने, वायु और ध्वनि प्रदूषण को कम करने, स्थानीय पक्षियों और कीड़ों को आकर्षित करने और कार्बन सिंक बनाने में मदद मिलेगी। अन्य हस्तक्षेपों में जसोंदा का रोपण, सुबह की महिमा, गिलोय, करोंदा के साथ-साथ मौजूदा बाड़ / सीमा की दीवार आदि और मियावाकी पौधारोपण की तकनीक में उपयोग की जाने वाले पेड़ की किस्में जैसे नीम, पीपल, पारिजात, इमली, अर्जुन, महुआ, कुसुम आदि पौधे शामिल हैं।