प्रेस्टीज इंस्टीट्यूट का फिल्म फेस्टिवल बना कला, कहानी और अभिव्यक्ति का सार्थक मंच

  
Last Updated:  April 22, 2025 " 01:09 am"

पीआईआईएफएफ 2025 की भव्य शुरुआत।

इंदौर : प्रेस्टीज इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड रिसर्च इंदौर के मास कम्युनिकेशन विभाग द्वारा आयोजित 8वे प्रेस्टीज इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल (PIIFF) ने सिनेमा की दुनिया में रचनात्मकता और प्रेरणा का एक शानदार मंच प्रस्तुत किया। अपनी थीम “कलाचित्र – जहां कला सिनेमा से मिलती है” के साथ यह फेस्टिवल कला, कहानी और अभिव्यक्ति का जीवंत संगम बन गया।

संस्कृति और सृजन का आगाज।

फिल्म फेस्टिवल का उद्घाटन दीप प्रज्ज्वलन और सरस्वती पूजन के साथ हुआ। इस अवसर पर पीआईएमआर के ग्रुप डायरेक्टर डॉ. एस.एस. भाकर, यूजी कैंपस डायरेक्टर कर्नल डॉ. एस. रमन अय्यर, और मेहमान कलाकार अशोक पाठक, अनुलता राज नायर, नितेश उपाध्याय, और श्रीराम जोग उपस्थित रहे। डॉ. भाकर ने ‘आर्ट ऑफ स्टोरीटेलिंग एंड सिनेमेटोग्राफी’ पर जोर देते हुए कहा, “यह फेस्टिवल ‘लर्निंग बाय डूइंग’ का प्रतीक है। यह युवाओं को अपनी प्रतिभा को निखारने का अवसर देता है।” डॉ. अय्यर ने इसे समाज और संस्कृति का एक जीवंत दस्तावेज बताया।

थिएटर एक कलाकार की बुनियाद है।

फेस्टिवल के पहले दिन अनुलता नायर और पल्लवी त्रिवेदी द्वारा निर्देशित बिना संवाद वाली फिल्म का प्रदर्शन किया गया। इसके बाद पंचायत वेब सीरीज में विनोद का किरदार निभाने वाले अशोक पाठक ने ‘इन कॉन्वर्सेशन’ सेशन में अपने थिएटर के अनुभव साझा किए। उन्होंने कहा, “थिएटर एक कलाकार की बुनियाद है। यह हमें जीवन को समझने का नजरिया देता है। अभिनय में सच्चाई और ईमानदारी सबसे जरूरी है।” कैमरा और थिएटर अभिनय के अंतर को समझाते हुए उन्होंने बताया, “कैमरा हर बारीकी को पकड़ता है, इसलिए स्क्रीन पर छोटी-छोटी सच्चाइयां भी चमकती हैं।”

48 घंटे फिल्म निर्माण प्रतियोगिता।

दूसरे सत्र में अड़तालीस घंटे फिल्म निर्माण प्रतियोगिता के तहत प्रतियोगियों द्वारा निर्मित 14 शॉर्ट फिल्में दिखाई गईं। द बैकअप प्लान, इमेजिनरी कम्पैनियन तथा री राइट द एंडिंग थीम्स पर बनी इन फिल्मों ने दर्शकों और निर्णायकों को प्रभावित किया। प्रतियोगिता के विजेताओं की घोषणा अगले दिन वैलेडिक्ट्री सेशन में होगी।

मास्टर क्लास: कहानी कहने की बारीकियां।

तीसरे सत्र में अनुलता नायर की मास्टर क्लास में कहानी लेखन की कला पर प्रकाश डाला गया।उन्होंने किरदार, संघर्ष और कहानी के अंत की भूमिका समझाई। लेखकों को सलाह देते हुए उन्होंने कहा, “लेखन सिखाया नहीं जा सकता, लेकिन हर कोई लिख सकता है। एक कहानी में शुरुआत, संरचना और अंत होना चाहिए। रचनात्मक कला का एक ढांचा होता है—पहले शुरू करें, फिर बीच का हिस्सा लिखें, और अंत में कहानी को पूरा करें।” उन्होंने लेखकों को रीडिंग स्किल्स और व्यक्तिगत अनुभवों पर ध्यान देने की सलाह दी।

फिल्म स्क्रीनिंग और मनोरंजन।

शैक्षिक सत्रों के बाद शाम को जोया अख्तर की फिल्म ‘जिंदगी ना मिलेगी दोबारा’ की स्क्रीनिंग हुई, जिसे स्टूडेंट्स और फैकल्टी ने खूब सराहा। इस फिल्म की स्क्रीनिंग के साथ फिल्म फेस्टिवल के पहले दिन की गतिविधियों का समापन हुआ।

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