इंदौर : गुरुवार शाम अभिनव कला समाज का मुक्ताकाश मंच बाल कलाकारों की किलकारी और चहल-पहल से गूँज उठा। मंच पर रंगबंदरा किड्स थिएटर के 52 बच्चों ने तीन लघु नाटकों की प्रस्तुति दी। ये तीनों नाटक 30 दिन की थिएटर वर्कशॉप के दौरान तैयार किए गए थे।
स्टेट प्रेस क्लब, म.प्र. के अध्यक्ष प्रवीण खारीवाल एवं कला समीक्षक पंकज क्षीरसागर ने दीप प्रज्ज्वलित कर नाट्य मंचन का शुभारंभ किया। अतिथि का स्वागत नाट्य निर्देशक नीतेश उपाध्याय ने किया।
प्रथम प्रस्तुति : इंस्पेक्टर मातादीन चाँद पर।
व्यंग्य सम्राट हरिशंकर परसाई की कालजयी रचना “इंस्पेक्टर मातादीन चाँद पर” का नाट्य रूपांतरण कर मंच पर उतारा गया। यह प्रस्तुति हास्य और कटाक्ष के माध्यम से सामाजिक विसंगतियों पर तीखा व्यंग्य कसने में पूरी तरह सफल रही।नाटक में इंस्पेक्टर मातादीन, जो पृथ्वी से चाँद पर कानून-व्यवस्था सुधारने के मिशन पर भेजे जाते हैं, वहाँ भी अपने पुराने तौर-तरीकों और भ्रष्टाचार की परंपरा को बख़ूबी लागू करते हैं। इस चांद यात्रा के बहाने नाटक में हमारे देश की पुलिस व्यवस्था, नौकरशाही और सत्ता के ढकोसलों पर करारा व्यंग्य किया गया। निर्देशक नीतेश उपाध्याय ने परसाई की लेखनी की आत्मा को मंच पर जीवंत कर दिया। संवादों की धार और अभिनय की सहजता ने दर्शकों को न केवल खूब हँसाया।
मंच पर सार्थक माली, मिराया गांधी, भागवत, पार्थ शर्मा, धनंजय शर्मा, राघव शर्मा, कनिष्का शर्मा, तितिक्षा नागर, आराध्या जोशी, सानवी, रूही चेंडके, नव्या मिश्रा ने अपने-अपने पात्रों में जान फूंक दी। विशेष रूप से इंस्पेक्टर मातादीन की भूमिका निभाने वाले कलाकार सार्थक माली ने अपने भाव, हावभाव और संवाद अदायगी से दर्शकों को बाँधे रखा।
दूसरी प्रस्तुति : “नुक्ता”
नाटक “नुक्ता” ने व्यंग्य के तीरों से तेरहवीं की प्रथा पर साधा निशाना। जवाहर चौधरी द्वारा लिखित यह नाटक एक आम सी प्रतीत होने वाली घटना किसी व्यक्ति की मृत्यु और उसके तेरहवीं संस्कार को केंद्र में रखकर, “नुक्ता” जैसी वर्षों पुरानी परंपरा को प्रदर्शित करता है।
नाटक में तेरहवीं भोज को किस तरह एक सामाजिक दिखावे का साधन बना दिया गया है, इसे हास्य, विडंबना और सूक्ष्म व्यंग्य के माध्यम से उजागर किया गया। लेखक की लेखनी ने सोचने पर मजबूर किया कि क्या ऐसी परंपराएं अब भी सार्थक हैं?
मंच पर सूर्यांश वर्मा, तक्षय वर्मा, वीर छाबड़ा, अनय नीमा, अंगद सिरोठिया, ध्रुपद काले, सिद्धार्थ सिंह तोमर, दिवित श्रीवास्तव, चिराग राय, सवित्र दीक्षित, माही अग्रवाल, अबीर पठान, मीरन पठान, विश्वराज, पृथ्वीराज त्रिलोकी, पायल त्रिलोकी, प्रशस्ति पाटीदार, प्रगति सिंह तोमर, चेष्टा राठौड़ ने अभिनय किया।
तीसरी प्रस्तुति : “झांसी की झलकारी”l
नाटक “झांसी की झलकारी” का कुलदीप राठौड़ के निर्देशन में सशक्त मंचन किया गया। इस नाटक में वीरांगना झलकारी बाई के अद्भुत साहस, देशभक्ति और बलिदान को जीवंत किया नाटक में झलकारी के बचपन से लेकर उनके शहीद होने तक के जीवन संघर्ष को मार्मिक रूप से प्रस्तुत किया गया। दर्शकों ने देखा कि किस तरह एक सामान्य परिवार में जन्मी बालिका ने बचपन में ही शेर से लड़कर अपने अदम्य साहस का परिचय दिया, और आगे चलकर रानी लक्ष्मीबाई की दुर्गा सेना की महत्वपूर्ण योद्धा बनकर 1857 की क्रांति में वीरगति को प्राप्त हुईं। मंच पर झलकारी के संघर्ष और बलिदान की प्रस्तुति ने सभागार में देशभक्ति का माहौल बना दिया।
मंच पर आरवी लोहिया, आराध्या जोशी, नीर अजमेरा, वंश राठौड़, आर्ची लोहिया, गौरांशी मिश्रा, चित्रांगना पवार, त्रिशान पवार, प्रावी जैन, चारवी पाण्डेय, आदित्य शर्मा, मयूख अवस्थी, रुद्रांश सिंह सोलंकी, हीती मेहता, हीरल नीमा ने अभिनय किया।
कार्यक्रम में बड़ी संख्या में नाट्य प्रेमी एवं बाल कलाकारों के अभिभावक मौजूद थे। सभी ने बाल कलाकारों की प्रतिभा को सराहा।