♦️चुनाव चटखारे/कीर्ति राणा♦️
भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय जब खुद कार्यकर्ताओं के बीच कहे कि अमित शाह ने प्रस्ताव रखा था कि बिना सरकारी कार्यक्रम के कार्यकर्ताओं का बूथ सम्मेलन कौन करा सकता है तो उन्होंने तुरंत यह टॉस्क पूरा करने की जिम्मेदारी स्वीकार कर ली।
जाहिर है बैठक में ऐसा ही हुआ होगा, बाकी नेता अमित शाह की बात समझने, कैसे कर पाएंगे की उधेड़बुन में लगे होंगे और विजयवर्गीय ने बाज झपट्टा मार दिया।
हरियाणा में भाजपा सरकार बनवाना हो या महेश्वर, सांवेर सीट पर प्रत्याशी की जीत हो विजयवर्गीय-मेंदोला की जोड़ी ने जब ऐसी तमाम चुनौतियों को सफलता में बदल कर दिखा दिया हो, कनकेश्वरी देवी से लेकर बागेश्वरधाम वाले धीरेंद्र शास्त्री की कथा में सात दिन में लाखों लोगों के भोजन आदि का इंतजाम करना जिनके लिए सामान्य बात हो तो मात्र 72 घंटे से भी कम समयावधि में सारी तैयारी कर के हजारों कार्यकर्ताओं का यह संभागीय सम्मेलन कराना तो इस जोड़ी के लिए हाथ के मेल समान ही है।
इस सम्मेलन को इंदौर और अपने क्षेत्र में कराने का दायित्व लेकर उन्होंने मप्र का चुनाव कराने आए तमाम बड़े नेताओं को यह संदेश भी दे दिया है कि विश्वस्त कार्यकर्ताओं की फौज के साथ धन-बल में भी किसी से कम नहीं हैं।पं बंगाल के चुनाव परिणाम के बाद केंद्रीय नेतृत्व की नाराजी की जो हवा चली थी ऐसी सारी बातों को भी अमित शाह ने विजयवर्गीय के प्रति अपना विश्वास दर्शा कर झूठा साबित कर दिया है।
अमित शाह की मौजूदगी में इंदौर में होने वाला यह बूथ कार्यकर्ता सम्मेलन भाजपा के इतिहास में इसलिए महत्वपूर्ण होगा कि इस सम्मेलन से में उनके भाषण का असर मालवा-निमाड़ तक होगा।प्रदेश की 230 में से मालवा-निमाड़ क्षेत्र में 66 सीटें हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को यहां 28 सीटें मिली थीं, कांग्रेस ने यहां 35 सीटें जीती थीं।कहा जाता है मालवा-निमाड़ में भाजपा के पिछड़ने के कारण पार्टी को सत्ता से बाहर होना पड़ा था।इस बार विजयवर्गीय को मालवा-निमाड़ क्षेत्र में पार्टी सीटों की अधिकाधिक जीत का दायित्व सौंपती है तो वे भी पिछली बार की भूल से सबक लेकर इस बार अधिक प्रभावी तरीके से अपनी रणनीति को सफल कर के दिखाएंगे, क्योंकि इस बार चुनाव में सीएम फेस शिवराज नहीं हैं, मोदी के चेहरे के ताप के आगे तमाम चेहरों की हसरतें झुलस गई हैं।
धर्म की जय हो….अधर्म का नाश हो…!
धार्मिक आयोजनों में यह गगनभेदी जयघोष लगाया जाता है लेकिन हकीकत इसके विपरीत है। इतनी कथाएं, शोभायात्राओं और भजन-भंडारों के बाद भी लोगों का मन न तो शत प्रतिशत धार्मिक हो पाया है और ना ही अपराधों में कमी आ पाई है। अब यह धर्म चुनावी वैतरणी पार कराने का साधन भी बन गया है। पांच-दस साल पहले जो धर्म चुनावी मैदान से गायब था अब मतदाताओं को रिझाने का मूलाधार बन गया है।भाजपा के लिये मंदिर-मस्जिद मुद्दा सत्ता तक पहुंचने का वर्षों से माध्यम रहा है लेकिन इसी मुद्दे पर कोसने वाली कांग्रेस भी अब कथा-भजन-भंडारे की राह पर चल पड़ी है। पिछले विधानसभा चुनाव में धर्म का प्रभाव कम भले ही रहा हो लेकिन अब तो हर प्रत्याशी और दल का अपना-अपना धार्मिक कैलेंडर हो चला है। चुनावी मैदान में इस बार सावन और साथ में अधिकमास का असर ज्यादा ही है।दावेदारी करने वालों का प्रेम अपने क्षेत्र के मतदाताओं पर खूब उमड़ रहा है। पहले कथा-भंडारे आदि बड़े आयोजनों में बिन बुलाए पहुंचने वाले आसपास के श्रद्धालुओं ने भी खूब लाभ उठाया लेकिन अति धार्मिक महत्व वाले सावन और अधिक मास जुड़वा संतान की तरह एक साथ आ गए हैं, दो बच्चों के लालन-पालन पर भी तो आर्थिक बोझ बढ़ जाता है तो दावेदारों ने अपने प्रेम का दायरा भी अपने क्षेत्र तक सीमित कर दिया है।
दावेदारों ने अब पार्थिव शिवलिंग का निर्माण अपने क्षेत्र के शिवमंदिरों में कराना शुरु कर दिया है।किलो के भाव में रुद्राक्ष लाकर-अभिमंत्रित रुद्राक्ष के दावे के साथ-अपने क्षेत्र के मतदाताओं के बीच अपने कार्यकर्ताओं के माध्यम से घर घर बंटवा रहे हैं।भजन गायकों की भजन निशा का दायरा भी अपने क्षेत्र की सीमा में सिमट गया है। धर्मप्रेमी मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए सावन में अब कावड़ यात्रा का आयोजन और फलाहारी खिचड़ी का वितरण भी सीधे संपर्क का जरिया बन गया है।
सावन महीने में आसपास के सुप्रसिद्ध शिव मंदिरों की यात्रा कराने का चलन अब लगभग हर विधानसभा में सामान्य हो चला है।दरवाजा खटखटाने के बाद भैया के समर्थक कभी भी बिल्व पत्र का पौधा देने घर पहुंच रहे हैं।भाजपा की ब्लु बुक में तो ये सारे धार्मिक विधान पहले से दर्ज है लेकिन बदली हुई हवा में कांग्रेस के दावेदारों को भी समयानुकूल चंदन तिलक,भगवा वस्त्र और ऐसे सारे धार्मिक विधानों में अपना समर्पण भाव प्रदर्शित करना पड़ रहा है।
इंदौर में पांच नंबर से किसे टिकट मिलेगा तय नहीं लेकिन सत्तू पटेल, स्वप्निल कोठारी दोनों को विश्वास है कि धर्म की गंगा उनकी मनोइच्छा आसान कर देगी।लगातार भंडारे-धार्मिक यात्राएं कराते रहे विधायक संजय शुक्ला तो आत्म विश्वास से इतने लबरेज हो गए हैं कि उन्हें लगने लगा है कमलनाथ, दिग्विजय सिंह के मार्गदर्शन बिना भी वे अपने क्षेत्र में फिर से इन्हीं धार्मिक कामों की बदौलत जीत कर दिखा देंगे। ऐसा नहीं कि ये सारे धार्मिक कौतुक शहरी इलाकों में ही चल रहे हैं।ग्रामीण विधानसभा क्षेत्रों में भी लोगों से सीधे जुड़ाव के लिए धर्म आसान रास्ता बन गया है।महेश्वर में भाजपा ने डॉ. विजयलक्ष्मी साधो की बहन को भले ही अपने साथ कर लिया हो किंतु इसी आधार पर वह टिकट देकर क्षेत्र के अपने निष्ठावान कार्यकर्ताओं की नाराजी का सामना करने की भूल नहीं करेगी, इस क्षेत्र में लंबे समय से सक्रिय कृष्णकांत रोकड़े यह हकीकत समझ कर अपने कुर्ते की दोनों जेब में अभिमंत्रित रुद्राक्ष लोगों में बांटने के साथ फिर से अपना नाम और काम याद दिलाने निकल पड़े हैं।यही तरीका आष्टा में कांग्रेस से टिकट के दावेदार इंदौरी नेता पूनम वर्मा ने भी अपना रखा है। हर से गांवों तक चुनाव सामग्री बेचने वाले दुकानदारों ने पार्टी के झंडों-बिल्ले के साथ भगवा पताका और देवी-देवताओं के नाम फोटो वाले बैनर-टी शर्ट भी रखना शुरु कर दिए हैं।धर्म की इस जय जयकार से मतदाताओं का मानसिक शुद्धिकरण भले ही न हो किंतु टिकट लाने से लेकर जीतने तक किए जाने वाले अधर्म का नाश भी नहीं होना है।
कांग्रेस की राह में जयस के कांटे।
गत विधानसभा चुनाव में कांग्रेस यदि सरकार बनाने की स्थिति में पहुंची थी तो आदिवासी सीटों पर मिली जीत या आदिवासी संगठन जयस का साथ भी था।प्रदेश में 22 फीसदी आबादी है आदिवासियों की।आदिवासी बहुल और अजजा मतदाताओं के आधिक्य वाली कुल 80 सीटों पर जयस स्वतंत्र चुनाव लड़ेगा। इन 80 सीटों मे 47 सीटों में अजजा वर्ग और 33 पर आदिवासी मतदाता निर्णायक हैं।अब डॉ हीरालाल अलावा और डॉ आनंद राय अलग हो चुके हैं।डॉ. राय जरूर कांग्रेस के नजदीक हैं लेकिन डॉ. अलावा घोषणा कर चुके हैं कि सभी आदिवासी बहुल 80 सीटों पर जयस अपने प्रत्याशी लड़ाएगा। पिछले चुनाव में जयस का साथ होने से 47 अजजा वाली सीटों में से 30 सीटें कांग्रेस ने और भाजपा ने 16 सीटें ही जीती थीं।गैर आदिवासी बहुल 33 में से 22 सीटें मालवा-निमाड़ में हैं।इनमें अधिकांश पर कांग्रेस का कब्जा होने का ही नतीजा रहा है कि इन वर्षों में भाजपा का सारा फोकस आदिवासी इलाकों के मतदाताओँ को लुभाने वाला रहा है, टंट्या मामा की इतनी जोर से पहले कभी याद नहीं आई।
पूर्व न्यायाधीश प्रकाश भाऊ उइके
हो सकते हैं पांढुर्ना से भाजपा प्रत्याशी।
दमोह में न्यायाधीश रहे प्रकाश भाऊ उइके ने विधि जगत छोड़ कर अब भाजपा का दामन थाम लिया है।छिंदवाड़ा के मूल निवासी जज साहब ने पांढुर्ना विधानसभा से टिकट के लिए दावेदारी ठोंक दी है।छिंदवाड़ा नगर निगम के चुनाव के दौरान भी महापौर के टिकट के लिए उन्होंने दावेदारी की थी।अब तो न्यायधीश के पद से इस्तीफा देकर चुनावी मैदान में कूद गए हैं।भाजपा के संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा की मौजूदगी में पार्टी की सदस्यता ली है।
जहां तक पांढुर्ना विधानसभा की बात है तो पिछले दो विधानसभा चुनावों में कांग्रेस जीतती रही है।भाजपा को दमदार चेहरे की तलाश थी, जो शायद अब पूरी हो गई है।