🔹 कीर्ति राणा 🔹
इंदौर : शायद ही कोई ऐसा दिन हो, जब कांग्रेस से भाजपा में जाने का सिलसिला थमा हो। प्रदेश के और कितने नेता भाजपा का अंगवस्त्र धारण करेंगे… यह वक्त तय करेगा, लेकिन जो हवा चल रही है, वो संकेत दे रही है कि कमलनाथ का मन भी मचल रहा है। उनकी राह तभी आसान हो सकती है, जब भाजपा का शीर्ष नेतृत्व गौतम अडानी की सलाह मान ले और छिंदवाड़ा सीट पर कमलनाथ के सांसद पुत्र नकुलनाथ को भाजपा प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ाने पर राजी हो जाए। पुत्र के सुरक्षित राजनीतिक भविष्य की इस सौदेबाजी की गारंटी मिलने पर बहुत संभव है कि राहुल गांधी की न्याय यात्रा के मप्र से गुजरने के दौरान कमलनाथ हरदा से भी बड़ा राजनीतिक धमाका कर दें!
याद करिए… पिछले लोकसभा चुनाव-विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी मप्र के चुनावी दौरे में छिंदवाड़ा को छोड़कर बाकी जगह आमसभा करने गए थे। नकुलनाथ वाली सीट तब भी अजेय बनी रही तो अडानी की नाथ से कॉरपोरेट फ्रेंडशिप की वजह से। इस बार भाजपा इस सीट को जीतने का लक्ष्य लेकर चल रही है। कैलाश विजयवर्गीय की नजर में जो ‘बासी फल’ हैं उन कमलनाथ की भाजपा में एंट्री होने से नकुलनाथ की संसद में जाने की राह तो आसान हो ही जाएगी, बासी फल का टेस्ट भी भाजपा को अच्छा लगने लगेगा और कमलनाथ भी पुराने मामलों की जांच से टेंशन मुक्त हो जाएंगे!
मप्र में कांग्रेस की सरकार ढहाने का श्रेय ज्योतिरादित्य सिंधिया को जाता है तो उनका कांग्रेस से मोह भंग कराने के खलनायक कमलनाथ और दिग्विजय सिंह माने जाते हैं। दिग्विजय सिंह तो भाजपा और भगवा आतंकवाद के विरुद्ध दिए जाने वाले बयानों के कारण कांग्रेस के पोस्टर बॉय बने हुए हैं, लेकिन कमलनाथ और राहुल गांधी के बीच तब से ही खटपट जारी है, जब उन्हें इत्तला किए बगैर राहुल गांधी ने जीतू पटवारी को मप्र कांग्रेस की कमान सौंप दी, वह कमलनाथ का सार्वजनिक अपमान से कम नहीं था, तभी से कमलनाथ अपने बयानों से टेढ़ी चाल चल रहे हैं और आभास भी करा रहे हैं कि वो कभी भी मनमाफिक निर्णय ले सकते हैं।
यह इसलिए भी संभव हो सकता है कि कांग्रेस में पीढ़ियों का अंतर उसमें विस्फोट के हालात पैदा करता रहा है। इंदिरा गांधी के दत्तक पुत्र माने जाने वाले कमलनाथ का सोनिया गांधी तो सम्मान करती हैं, लेकिन राहुल गांधी से उनकी पटरी नहीं बैठती।
राज्यसभा की खाली हो रही सीटों में उन्होंने भी मध्यप्रदेश कोटे से अपना दावा ठोंक दिया है। राऊ से चुनाव हारे जीतू पटवारी भी राहुल के भरोसे राज्यसभा में जाने का सपना देख रहे हैं, किंतु प्रदेश अध्यक्ष का दायित्व संभालने के बाद उनके खाते में उपलब्धि के नाम पर कांग्रेस महापौर, जिला पंचायत अध्यक्ष, पूर्व विधायकों, पूर्व महाधिवक्ता सहित अन्य नेताओं द्वारा पार्टी छोड़ने की लंबी सूची ही है।
कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं मिलने से खफा चल रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव इंतजार कर रहे हैं कि आलाकमान उन्हें राज्यसभा भेजेगा, ऐसा नहीं होने पर वे भी मुख्यमंत्री यादव से पारिवारिक रिश्तेदारी को भाजपा से प्रतिबद्धता में बदल सकते हैं। भाजपा में जाने पर मुख्यमंत्री उन्हें खंडवा सीट से लोकसभा प्रत्याशी बनाए जाने में मदद कर सकते हैं। कांग्रेस के पूर्व सांसद-ब्राह्मण नेता सुरेश पचोरी भी श्रेष्ठ मुहूर्त के इंतजार में हैं! कांग्रेस द्वारा राम मंदिर मामले में सकारात्मक रुख नहीं अपनाए जाने से भी प्रदेश का कांग्रेस समर्थक ब्राह्मण वर्ग खुश नहीं है। पचोरी यदि अपनी राह बदलते हैं तो उनके कृपापात्र इंदौर के एक पूर्व विधायक भी पाला बदल सकते हैं।