बेतहाशा बढ़ रहे हैं कागज के दाम, पैकेजिंग और प्रिंटिंग उद्योग पहुंच गए हैं बर्बादी की कगार पर..

  
Last Updated:  March 19, 2021 " 06:59 pm"

इंदौर : लॉकडाउन एवं कोरोना संक्रमण काल के कारण ठप पड़े कागज उद्योग के बुरे दिन शुरू हो गए हैं। पिछले छह माह में हर तरह के कागज के भाव 100 से 110 प्रतिशत तक बढ़ गए हैं। बढ़ते दामों के कारण पैकेजिंग एवं प्रिंटिंग उद्योग बंद होने की कगार पर पहुंच गया है। आने वाले दिनों में नए शिक्षा सत्र के शुरू होने पर बच्चों की पुस्तकें एवं अभ्यास पुस्तिकाएं दोगुने से भी ज्यादा दामों पर बिकने लगे तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। कागज के दामों में हो रही बेतहाशा वृद्धि पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं होने से हालात बेहद गंभीर हो गए हैं। कागज मिलें भी बिना नकद के माल नहीं दे रही हैं, इसके कारण अनेक उद्योग बंद होने की स्थिति में पहुंच गए हैं। भाव बढ़ने से कोरोगेटेड बॉक्स सहित कागज से बनने वाले उत्पादों के दाम भी बढ़ाने पड़ रहे हैं।
द इंदौर मास्टर प्रिंटर्स एसो. के अध्यक्ष स्वदेश शर्मा, महामंत्री एस.के. झा और कार्यसमिति सदस्य राजेंद्र मित्तल ने बताया कि पिछले 6 माह में कागज के दाम लगातार शेयर बाजार की तरह बढ़ते जा रहे हैं। कागज के साथ-साथ लेमिनेशन फिल्म में भी 30 से 40 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। स्याही एवं केमिकल के भी 15 से 20 प्रतिशत दाम बढ़े हैं। यही रफ्तार रही तो आने वाले शिक्षा सत्र में बच्चों की पुस्तकें और कॉपियां वर्तमान से दोगुने से भी ज्यादा दामों पर बिकेंगी। इन दिनों देशभर में कागज की बढ़ी हुई कीमतों को लेकर हंगामा मचा हुआ है। कागज आधारित उद्योगों, पैकेजिंग यूनिट तथा प्रिंटिंग प्रेस की हालत दयनीय हो गई है। यदि किताबों और कॉपियों के निर्माताओं को महंगे दामों पर कागज मिलेगा तो उपभोक्ताओं को भी इसका नुकसान उठाना पड़ेगा। शहर में 150 कोरोगेटेड बॉक्स निर्माता एवं इतने ही प्रिंटिंग प्रेस हैं जो पूरी तरह कागज पर ही निर्भर हैं। कागज के दामों में हो रही बढ़ोतरी के कारण अकेले इंदौर में 300 यूनिट बंद होने की कगार पर पहुंच गई हैं। सारे देश में लघु एवं मध्यम श्रेणी के 10 हजार से अधिक उद्योग हैं जिनमें एक लाख से अधिक लोग रोजगार पा रहे हैं। यदि ये सभी इकाइयां बंद होती हैं तो रोजगार का संकट तो पैदा होगा ही, आम पालकों एवं छात्रों को भी इसका नुकसान उठाना पड़ेगा।
कागज के दामों में हो रही वृद्धि का मुख्य कारण यह माना जा रहा है कि केंद्र सरकार ने अब तक कागज निर्यात पर प्रतिबंध नहीं लगाया है। दूसरा प्रमुख कारण यह है कि रद्दी कागज से नया कागज बनाने अर्थात रिसायकल करने की प्रक्रिया पिछले दो वर्षों से बंद पड़ी है। इसके अलावा चीन सरकार ने एक जनवरी 2021 से रद्दी पेपर के आयात पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया है। पेपर मिलें अच्छा कागज चीन को निर्यात कर रही हैं और कचरा भारत के बाजार में सप्लाय किया जा रहा है। इससे भारतीय कागज उद्योग चौपट हो गया है। यही नहीं, अमेरिका में भी चीन की कागज कंपनियों ने पूंजी लगाकर वहां उत्पादित कागज को अपने पास बुलाने का एकाधिकार बना रखा है जिसके कारण 120 डॉलर में बिकने वाला कागज अब 325 डॉलर तक पहुंच गया है। इस तरह पूरे विश्व में कागज का संकट भयावह रूप लेता जा रहा है इसके बावजूद भारत सरकार ने अब तक स्वदेशी मिलों द्वारा उत्पादित कागज के निर्यात पर प्रतिबंध नहीं लगाया है। यही कारण है कि पिछले छह माह में कागज के दाम आसमान छूने लगे हैं । अभी भी यही रफ्तार चल रही है। इस वजह से आने वाले दिनों में स्कूल-कॉलेज की किताबों और अभ्यास पुस्तिकाओं के साथ हर वह संस्थान एवं उपभोक्ता प्रभावित हुए बिना नहीं रहेगा, जहां कागज ही मुख्य विषय वस्तु रहा है।
यदि कागज उद्योग पर संकट के बादल जल्द से जल्द नहीं हटे तो इसका असर आम लोगों, कोरोगेटेड बॉक्स, अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं, स्कूलों, कॉलेजों, सरकारी दफ्तरों, फोटोकॉपी दुकानों, न्यायालयों से लेकर राज्य सरकार के सचिवालयों तथा अन्य दफ्तरों तक पड़े बिना नहीं रहेगा। इस स्थिति में देश की कागज मिलों को अपनी नीति बदलने की जरूरत है। केंद्र सरकार को चाहिए कि वह समय रहते हस्तक्षेप करें, कागज के निर्यात पर प्रतिबंध लगाए और उसके बढ़ते दामों पर नियंत्रण करें क्योंकि अधिकांश राज्यों में पैकेजिंग व प्रिंटिंग उद्योग तालाबंदी की हालत में पहुंच गए हैं।

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