64वे गीता जयंती महोत्सव का समापन, गीता भवन अस्पताल के लिए 7 करोड़ देनेवाले गर्ग बन्धुओं का किया गया सम्मान

  
Last Updated:  December 19, 2021 " 12:35 am"

इंदौर : गीता कुरुक्षेत्र के मैदान में खड़े अर्जुन की तरह हम सबको भी दिव्य दृष्टि प्रदान करती है। स्वयं भगवान के श्रीमुख से जिस दिव्य संदेश का प्रवाह हजारों वर्षों बाद भी पूरे विश्व को आत्म कल्याण के मार्ग पर प्रवृत्त कर रहा हो, उस संदेश की प्रासंगिकता पर कोई संदेह नहीं होना चाहिए। काम, क्रोध, लोभ और मोह जैसे विकारों से मनुष्य को मुक्त कराने वाले इस ग्रंथ की उपयोगिता कभी कम नहीं हो सकती, न ही कभी खत्म हो सकती है। हम सबके जीवन में भी हर दिन अनेक कुरुक्षेत्र बनते-बिगड़ते रहते हैं। इनसे मुकाबले के लिए गीता का आलंबन ही सर्वश्रेष्ठ और सर्वमान्य मंत्र है।
अंतराष्ट्रीय रामस्नेही संप्रदाय के आचार्य जगदगुरु स्वामी रामदयाल महाराज ने शनिवार को गीता भवन में गत 12 दिसम्बर से चल रहे 64वें अ.भा. गीता जयंती महोत्सव के समापन सत्र में उक्त प्रेरक विचार व्यक्त किए।

गीता भवन अस्पताल के कायाकल्प देने वाले समाजसेवियों का सम्मान।

इस अवसर पर जगदगुरु एवं अन्य संतों ने गीता भवन हास्पिटल के कायाकल्प के लिए 7 करोड़ रुपए की सहयोग राशि देने वाले समाजसेवी टीकमचंद गर्ग एवं राजेश गर्ग केटी का शॉल-श्रीफल एवं पुष्पहार भेंटकर सम्मान किया। उन्होंने कहा कि पीड़ित मानवता की सेवा की दिशा में इस तरह के सेवा यज्ञ में आहुति देने वाले, हर दृष्टि से सम्मान एवं अभिनंदन के अधिकारी हैं।

संतों ने बताई गीता की महत्ता।

सुबह की सत्संग सभा का शुभारंभ डाकोर से आए स्वामी देवकीनंदनदास के भजन संकीर्तन के साथ हुआ। आगरा से आए राष्ट्र संत हरियोगी, गोधरा से आई साध्वी परमानंदा सरस्वती, उज्जैन के स्वामी असंगानंद, अहमदाबाद से आए आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी विशोकानंद भारती, अशर्फी भवन अयोध्या से आए जगदगुरु रामानुजाचार्य स्वामी श्रीधराचार्य ने भी भक्तों को गीता, रामचरित मानस एवं अन्य धर्मग्रंथों की महत्ता बताई। गीता भवन ट्रस्ट के अध्यक्ष गोपालदास मित्तल, मंत्री राम ऐरन, सत्संग समिति के संयोजक रामविलास राठी, प्रेमचंद गोयल, महेशचंद्र शस्त्री, मनोहर बाहेती, हरीश जाजू, पवन सिंघानिया आदि ने सभी संत-विद्वानों का स्वागत किया। ट्रस्ट के मंत्री राम ऐरन ने आए हुए संतों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए अगले वर्ष पुनः 65वें गीता जयंती महोत्सव में पधारने का न्यौता दिया। इस अवसर पर आचार्य पं. कल्याणदत्त शास्त्री के निर्देशन में चल रहे विष्णु महायज्ञ की पूर्णाहुति भी संपन्न हुई। गीता जी की आरती के साथ महोत्सव का समापन हुआ।

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