इंदौर : कपड़ा मिलें तो बरसों पहले दम तोड़ चुकी हैं पर इन मिलों के श्रमिक आज भी शहर की सबसे बड़ी सांस्कृतिक विरासत गणेश विसर्जन चल समारोह की परंपरा को शिद्दत के साथ निभा रहे हैं। इस बार इंद्रदेव देश और प्रदेश के साथ इंदौर पर भी कुछ ज्यादा ही मेहरबान हैं। गणेश विसर्जन चल समारोह की परंपरा को भी उन्होंने अपने सैलाब में डुबों देना चाहा पर गजानन के प्रति मजदूरों और शहर के बाशिंदों की आस्था उनपर भारी पड़ी। दरअसल 90 से अधिक वर्षों से चली आ रही परम्परा को निभाने के लिए मिल के श्रमिकों ने पूरी तैयारी कर ली थी। बुधवार रात झिलमिलाती झांकियों के काफिले के साथ वे निर्धारित जुलूस मार्ग पर आ डटे थे। अखाड़ों के कलाकार भी अपनी कला का प्रदर्शन करने को बेताब थे। जिला व पुलिस प्रशासन के अधिकारी, कर्मचारी और पुलिस जवानों ने भी अपनी जगह ले ली थी। लोग भी रतजगा करने का इरादा लेकर सड़कों पर जमा होने लगे थे। उससमय हलकी-फुलकी बारिश हो रही थी। सभी को उम्मीद थी कि इंद्रदेव पार्वतीनंदन के विदाई जुलूस में रायता नहीं फैलाएंगे। निर्धारित समय पर कलेक्टर लोकेश जाटव और एसएसपी रुचि वर्धन मिश्र ने खजराना गणेश का पूजन कर झांकियों के काफिले को आगे बढ़ाया। झांकियों का क्रम पहले ही तय कर दिया गया था। सबसे आगे खजराना गणेश की झांकी थी। उसके बाद नगर- निगम, आईडीए व पीछे हॉप टेक्सटाइल्स, स्वदेशी, कल्याण और हुकुमचंद मिल की झांकियां खड़ी की गई थी। इसी कतार में नंदानगर सहकारी साख संस्था एवं अन्य संस्थाओं की झांकियां भी लगी थीं। अभी खजराना गणेश व नगर निगम की झांकियों ने जेलरोड चौराहा पार किया ही था कि इंद्रदेव ने रोड़े अटकाना शुरू कर दिए। अबतक धीमें- धीमें बरस रहे बादलों ने उग्र रूप धारण कर लिया और मुसलाधार बारिश शुरू हो गई। इससे अफरा- तफरी मच गई और लोग घरों, दुकानों की ओट में खड़े हो गए। पुलिस जवान पहले से ही बारिश से बचाव का इंतजाम कर के आये थे। बरस रहे पानी का वेग इतना तेज था कि देखते ही देखते सड़कें भी लबालब हो गई। किसी अनहोनी को टालने के लिए झांकियों की लाइट बन्द करना पड़ी। थोड़ी देर तक तो सभी ने बारिश थमने का इंतजार किया लेकिन ऐसा नहीं होते देख पुलिस अधिकारियों ने बरसते पानी में ही काफिले को आगे बढाया।श्रमिकों व अखाड़े के कलाकारों ने भी इंद्रदेव की दादागिरी को ठेंगा दिखाते हुए प्रथमदेव श्री गणेश के विदाई जुलूस को दुगुने जोश के साथ आगे बढ़ाया। अखाड़ों के कलाकार तरबतर होते हुए भी अपनी शस्त्रकला का प्रदर्शन करते मैदान में उतर आए। जगह- जगह लगे मंचों से भी श्रमिकों और अखाड़े के कलाकारों का उत्साहवर्धन किया जा रहा था। लगातार हो रही भारी बारिश पर अंततः आस्था भारी पड़ी। जैसे ही बादलों ने बरसने की गति को थोड़ा कम किया। शहर के बाशिंदे बरसाती और छाते लेकर मनोहारी झांकियों की छटा निहारने उमड़ पड़े। युवाओं ने तो भीगते हुए ही शहर के इस सांस्कृतिक अनुष्ठान में अपनी भागीदारी जताई।
झांकियों में धार्मिक प्रसंगों व विकास योजनाओं की झलक।
अब बात झांकियों की, पौराणिक प्रसंगों के साथ शहर, प्रदेश और देश के विकास से जुड़ी योजनाओं को भी झांकियों में स्थान दिया गया था। कुल 28 झांकियां चल समारोह के काफिले में शामिल थीं। अखाड़ों के कलाकार मिलों की झांकियों के आगे अपने हुनर व शस्त्रकला की बानगी दे रहे थे। इनमें कई छोटी बालिकाएं भी शामिल थीं। जैसे- जैसे रात गहराती गई, लोगों का जोश व उत्साह भी बढ़ता गया। देर रात तक झांकियों का कारवां लोगों को लुभाता रहा। लोग भी घर- परिवार के साथ डटे रहकर झांकियों की लुभावनी छटा को निहारते रहे।
बहरहाल, भारी बारिश के बावजूद इंदौर की गणेश विसर्जन चल समारोह की परंपरा उसी जोश, जुनून और उत्साह के साथ निभाई गई जिसके लिए वह जानी जाती है। इससे एक बात तो साबित हुई कि जब बात शहर की सांस्कृतिक परंपरा को सहेजने की हो तो कोई भी रुकावट मायनें नहीं रखती। इंद्रदेव की भी नहीं।