एम वाय अस्पताल मे दो दिवसीय न्यूरोसर्जरी कार्यशाला का शुभारंभ l
इंदौर : मेडिकल कॉलेज से संबद्ध एम वाय हॉस्पिटल के ऑडिटोरियम में आयोजित दो दिवसीय न्यूरोसर्जरी वर्कशॉप का शुभारंभ शनिवार को हुआ।बोर्ड ऑफ़ एजूकेशन न्यूरोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ़ इंडिया और डिपार्टमेंट ऑफ़ न्यूरोसर्जरी एमजीएम मेडिकल कॉलेज के बैनर तले सेरेब्रो वैस्कुलर स्टीमुलेशन कोर्स के तहत आयोजित इस कार्यशाला के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता मेडिकल कॉलेज के डीन डॉक्टर अरविंद घनघोरिया ने की। सुपरिंटेंडेंट एम वाय हॉस्पिटल डॉक्टर अशोक यादव कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे l वर्कशॉप में कोर्स कोआर्डिनेटर डॉक्टर जफर शेख, कोर्स चेयरपर्सन डॉ. राकेश गुप्ता, कोर्स ऑर्गेनाइजर डॉ.परेश सोंधिया, डॉ. मुकेश शर्मा, डॉक्टर राघवन, कोर्स फैकल्टी डॉक्टर श्रीधर, डॉ. रजनीश कचारा, डॉक्टर शाश्वत मिश्रा, डॉक्टर अनमोल रहेजा और न्यूरोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ़ इंडिया के प्रेसिडेंट डॉ. मानस पाणिग्रही ने अपनी भागीदारी जताई।
मरीजों की सेवा चिकित्सक का पहला दायित्व।
इस अवसर पर डीन डॉ. अरविंद घनघोरिया ने कहा कि चिकित्सा को हमेशा से एक नोबल पेशे में गिना गया है। सहज शब्दों में कहें तो यह एक ऐसा पेशा है, जहां आपके हाथ में ईश्वर सुपर पॉवर दे देता है। इसे चाहे आस्था कहें, विश्वास कहें या चमत्कार, चिकित्सा जगत में ऐसे कई घटनाक्रम आम हैं, जहां गम्भीर बीमारी या दुर्घटना से जूझ रहा व्यक्ति भी मौत के मुंह से वापस आ जाता है।इसमें ईश्वर की माया के साथ डॉक्टर की काबिलियत और खुद मरीज का विश्वास भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।डीन डॉ. घनघोरिया ने कहा कि चिकित्सक होना सौभाग्य की बात है। मानव सेवा ही माधव सेवा है। मरीजों की सेवा करना ही चिकित्सक का पहला दायित्व और प्राथमिकता होती है। एक सर्जन रुपी डॉक्टर सृजनकर्ता होता है।
आयोजक संस्थाओं के पदाधिकारियों ने बताया कि इस कार्यशाला का उद्देश्य माइक्रोवस्कुलर उत्तेजना,यानी विशेष रूप से माइक्रोवस्कुलर स्टिमुलेशन (एमवीएस) के संदर्भ में, जिसमे कपाल की नसों पर दबाव को दूर करने के लिए उन्हें पास की रक्त वाहिकाओं से अलग करने के लिए सर्जिकल तकनीक शामिल होती है। इसका उपयोग अक्सर ट्राइजेमिनल न्यूराल्जिया और हेमीफेशियल ऐंठन जैसी स्थितियों के इलाज के लिए किया जाता है।
इस सर्जिकल प्रक्रिया में ब्रेनस्टेम क्षेत्र तक पहुंचना शामिल है जहां कपाल तंत्रिकाएं उभरती हैं। आक्रामक रक्त वाहिका की पहचान करना, और फिर आगे के संपीड़न को रोकने के लिए धीरे से इसे तंत्रिका से अलग करना शामिल है।