नई दिल्ली देश का कालाधन सिंगापुर के रास्ते सफेद करने की कोशिश को झटका लगेगा, क्योंकि भारत ने सिंगापुर के साथ दोहरे कराधान बचाव समझौते में फेरबदल किया है। देश में आने वाला कुल विदेश निवेश का करीब 16 फीसदी सिंगापुर से आता है।
सिंगापुर के साथ अगर मॉरिशस और साइप्रस को ले लें तो अकेले ये तीनों देश भारत में आने वाले विदेशी निवेश मे 52 फीसदी हिस्सेदारी रखते हैं। समझा जाता है कि इन देशों से आने वाला ज्यादा पैसा भारत का ही पैसा है जो विदेशों में बनी कंपनियों के जाल में उलझा कर यहां लाया जाता है ताकि टैक्स बचाया जा सके। तकनीकी भाषा में इसे राउंड ट्रिपिंग कहते हैं।
वित्त मंत्रालय की मानें तो दोहरे कराधान से जुड़े समझौते में फेरबदल के बाद इस पर लगाम लगाना संभव हो सकेगा और इससे काले धन पर भी अंकुश लगेगा। इसी मकसद से भारत ने सिंगापुर के साथ कर से जुड़े समझौते में फेरबदल के लिए दस्तख्त किए हैं।
फेरबदल का उद्देश्य यही है कि सिंगापुर के रास्ते भारत में आने वाले विदेशी निवेश पर कैपिटल गेन टैक्स लगाया जाए। कैपिटल गेन का मतलब शेयर बेचने से हुआ मुनाफा है। दोहरे कराधान बचाव समझौते के तहत मॉरिशस की ही तरह सिंगापुर से आने वाले निवेश पर यहां कैपिटल गेन टैक्स नहीं लगता। इस बारे में वित्त मंत्री अरुण जेटली का कहना है कि काले धन के इस रास्ते को खत्म करने में सरकार को कामयाबी मिली है।
नई व्यवस्था के तहत सिंगापुर में रजिस्टर्ड निवेशक अगर किसी भी भारतीय कंपनी में 1 अप्रैल 2017 के बाद शेयर खरीद कर बेचता है तो उससे हुए मुनाफे पर मौजूदा दर के आधे के हिसाब से कैपिटल गेन टैक्स लगेगा। मतलब यदि कैपिटल गेन टैक्स की दर 10 फीसदी है तो सिंगापुर के रास्ते आए निवेशक को 5 फीसदी की दर से टैक्स देना होगा।
ये भी तय हुआ है कि 1 अप्रैल 2019 या उसके बाद शेयरों की बिक्री से हुए मुनाफे पर टैक्स की पूरी दर यहां लगेगी। अभी तक की व्यवस्था में जिन 2 देशों में जहां टैक्स की दर कम होती थी, वहीं के हिसाब से टैक्स देना होता है। चूंकि भारत में टैक्स की दर 10 फीसदी और सिंगापुर में 0 फीसदी है, लिहाजा सिंगापुर के रास्ते आए निवेशक को एक पैसा भी टैक्स नहीं देना होता है। ऐसी ही व्यवस्था मॉरिशस और साइप्रस के साथ भी थी, इसीलिए तीनों देशों के रास्ते भारत में खासा निवेश होता था।