रंगपंचमी पर खूब मची रंगों की धमाल, गेरो ने मिटाया अपनों और गैरों का फर्क

  
Last Updated:  March 25, 2019 " 06:45 pm"

इंदौर: विविधताओं से भरे हमारे देश में हर क्षेत्र, प्रांत और अंचल की अपनी भाषा, कला, संस्कृति, परंपराएं और लोक पर्व हैं। होली के 5 वे दिन मनाया जाने वाला रंगपंचमी का पर्व खासकर पश्चिम भारत में मनाया जाता है।

इंदौर में रियासत काल से रही है परंपरा।

इंदौर में आजादी के पूर्व रियासत काल से रंगपंचमी सामूहिक रूप से मनाने की परंपरा रही है। समय के साथ इसका स्वरूप व्यापक होता गया वहीं लोगों की भागीदारी भी बढ़ती गई। रंगों की बौछारें अपनों और गैरों का फर्क मिटा देती हैं इसलिए इसे गेर कहा जाने लगा।

फाग यात्राओं ने बढ़ाई महिलाओं की भागीदारी।

अस्सी- नब्बे के दशक तक गेरो में महिलाओं की भागीदारी न के बराबर होती थी। इसका प्रमुख कारण फूहड़पन और कुछ हुड़दंगियों का गेर में अमर्यादित बर्ताव था। इसे देखते हुए पूर्व मंत्री स्व. लक्ष्मण सिंह गौड़ ने राधाकृष्ण फाग यात्रा की शुरुआत की और सूखे व प्राकृतिक रंगों से रंगपंचमी मनाने की पहल की। उन्होंने सुरक्षा का भरोसा देते हुए महिलाओं को भी इसमें जोड़ा। उनकी इस पहल का नतीजा ये रहा कि गेर में होनेवाली हुड़दंग कम हो गई और महिलाएं व युवतियां भी रंगों के इस पर्व का हिस्सा बनने लगी। वहीं गेरो का स्वरूप भी बदल गया।

हजारों लोगों की उमड़ी भीड़।

इस बार 4 गेर और 1 फाग यात्रा निकाली गई। टोरी कॉर्नर, रसिया कॉर्नर, मॉरल क्लब और संगम कॉर्नर की एक के बाद एक निकली गेरो में टैंकरों से रंगों की बौछार की जा रही थी। मिसाइलों के जरिये सूखे रंग भी खूब उड़ाए गए। हजारों युवा रंगों में सराबोर होकर डीजे की धुन पर थिरक रहे थे। इन के पीछे निकली हिन्द रक्षक संगठन की फाग यात्रा की अगुवाई इंदौर की महापौर मालिनी लक्ष्मणसिंह गौड़ कर रहीं थी। भगवा ध्वज लहराते सैकड़ों युवा और राधा- कृष्ण का रथ हाथों से खींचती मातृशक्तियाँ आकर्षण का केंद्र बनी हुई थी।ज्यादातर गेर मल्हारगंज क्षेत्र से निकलकर खजूरी बाजार होते हुए राजवाड़ा पहुंची वही फाग यात्रा नृसिंह बाजार से प्रारंभ होकर विभिन्न मार्गों से होते हुए राजवाड़ा आई। राजवाड़ा क्षेत्र गेर और फाग यात्रा का मिलन स्थल बन गया। बड़ी तादाद में महिलाएं और युवतियां भी रंगों के इस महापर्व में भागीदार बनकर फाग की मस्ती का लुत्फ उठा रही थीं। आम और खास का फर्क खत्म हो गया था। जहां देखो वहां तक रंगों की धमाल मची हुई थी। जमीन से लेकर आसमान तक केवल रंग ही रंग नजर आ रहा था। सबकुछ भूलकर शहर के बाशिंदे इस रंगीन माहौल में डूब जाना चाहते थे। गेर में गैरों को अपना बनाकर रंगों की मस्ती में डूब जाने का ये सिलसिला दोपहर बाद तक चलता रहा।

यूनेस्को की धरोहर बनेगी गेर..

रंगपंचमी पर निकलने वाली गेर की परंपरा को यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल कराने का भी प्रयास किया जा रहा है। जिसतरह इंदौर में हजारों लोग गेर के जरिये रंगपर्व मनाते हुए खुशियों के रंग बिखेरते है वैसा मनोहारी नजारा और कहीं नजर नहीं आता। बरसों से ये परंपरा जारी है। यही कारण है कि यूनेस्को ने भी इसमें दिलचस्पी दिखाई है।

हाथों- हाथ सफाई ।

इंदौर ऐसे ही सफाई में हैट्रिक का हकदार नहीं बना है। उसके पीछे लोगों की भागीदारी और स्वच्छता प्रहरियों का समर्पण जुड़ा है। रंगपंचमी पर जैसे ही रंगों की धमाल मचाने का सिलसिला थमा उसके थोड़ी ही देर बाद हाथों में झाड़ू थामें स्वच्छता प्रहरी मैदान में उतर आए। देखते ही देखते सड़कें साफ- सुथरी होकर पहले की तरह चमकने लगी। शाम ढलते ही लोग नहा- धोकर भ्रमण पर निकले तो सड़कें चकाचक देखकर चकित रह गए। वे स्वच्छता प्रहरियों की तारीफ किये बिना नहीं रह सके।

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