खुदा की नेमत थे स्व. मोहम्मद रफी साहब।
स्टेट प्रेस क्लब के संवाद कार्यक्रम में बोले रफी साहब के सुपुत्र शाहिद रफी।
इंदौर : कालजयी पार्श्व गायक स्व. मोहम्मद रफी के सुपुत्र शाहिद रफी का कहना है कि मो. रफी जैसे गायक बार – बार जन्म नहीं लेते। उनके जैसा गायक दूसरा न कोई हुआ है, न होगा। वे बेहद संजीदा, सरल, सहज और नेक इंसान थे। इतने बड़े कलाकार होने के बावजूद अहंकार उन्हें छू भी नहीं गया था। उनके जैसा कलाकार खुदा की नेमत है। इंदौर प्रवास पर आए शाहिद रफी स्टेट क्लब मप्र के संवाद कार्यक्रम में पत्रकार साथियों द्वारा किए गए सवालों का जवाब देने के साथ शुभचिंतकों की जिज्ञासाओं का भी समाधान कर रहे थे।
स्नेहमयी पिता थे मोहम्मद रफी।
शाहिद रफी ने पिता के साथ अपने संस्मरण साझा करते हुए कहा कि घर में वे केवल स्नेहमयी पिता थे। उन्होंने हमें कभी इस बात का अहसास नहीं होने दिया की वे देश के इतने बड़े कलाकार हैं। हमें तो उनके जाने के बाद लोगों का प्यार देखकर पता चला की वे किस उंचाईं के कलाकार थे।सीखने के लिए वे हमेशा तत्पर रहते थे। संगीतकारों को वे अपना उस्ताद मानते थे। उनके जाने के 45 साल बाद भी लोग उन्हें याद करते हैं, उनकी फैन फालोइंग आज भी लगातार बढ़ रही है। ये बताता है कि रफी साहब कितनी अज़ीम शख्सियत थे।
एक – एक गीत के लिए करते थे घंटों रियाज़।
शाहिद रफी ने बताया कि रफी साहब अपने काम के प्रति बेहद समर्पित थे। गीत कोई भी हो, जब तक संतुष्ट न हो, वे उस पर रियाज करते थे। ‘ओ दुनिया के रखवाले’ गीत का हवाला देते हुए शाहिद रफी ने कहा कि उस गीत को मुकम्मल तरीके से गाने के लिए रफी साहब ने पूरे एक माह तक रियाज़ की थी।
बेटी की विदाई का दर्द झलका था गीत की रिकार्डिंग में।
शादी के बाद बेटी की विदाई के दौरान पिता की भावनाओं को अभिव्यक्त करता गीत ‘बाबूल की दुआएं लेती जा, जा तुझको सुखी संसार मिले’ आज भी गाया बजाया जाता है। यह गीत रफी साहब ने ही गाया था। इस गीत से जुड़ा संस्मरण साझा करते हुए शाहिद रफी ने बताया कि इसकी रिकार्डिंग के एक हफ्ते पहले ही रफी साहब की बेटी और मेरी बड़ी बहन की शादी होकर वो घर से विदा हुई थी। जब इस गीत की रिकार्डिंग रफी साहब ने की तो बेटी की विदाई का सारा दर्द उसमें छलक आया। इसे उन्होंने एक टेक में ही गा दिया था।
लोगों की मदद करने में कभी पीछे नहीं रहे।
शाहिद रफी का कहना था कि उनके पिता रफी साहब लोगों की मदद करने में कभी पीछे नहीं रहते थे। जब भी वे घर से निकलते, अपनी जेब में जितने भी रुपये होते, गरीबों में बांट देते थे। पिता की इसी दरियादिली का एक किस्सा सुनाते हुए शाहिद रफी ने बताया कि रफी साहब के इंतकाल के करीब छह माह बाद कश्मीर से एक शख्स हमारे घर आया और उनसे मिलने की जिद करने लगा। जब उसे बताया गया कि रफी साहब अब इस दुनिया में नहीं हैं तो उसने यह खुलासा किया कि रफी साहब हर माह मनीआर्डर से रुपये भेजकर उसकी मदद करते थे। अब रुपये आना बंद हो गए तो वह वजह जानने चला आया। उसकी बातों से हमें पता चला की रफी साहब दूसरों की मदद भी इसतरह करते थे की किसी को पता न चले।
विश्वरत्न हैं रफी साहब।
ये पूछे जाने पर की क्या मोहम्मद रफी साहब को भारतरत्न नहीं मिलना चाहिए..? इस पर शाहिद रफी का कहना था कि भारतरत्न मिले न मिले पर रफी साहब तो विश्वरत्न हैं। दुनिया भर में उनके करोड़ों मुरीद हैं।
लता दीदी के प्रति तल्खी को छुपा नहीं पाए।
किसी बात को लेकर एक बार लता दीदी और रफी साहब में कुछ अनबन हो गई थी। उस बात को रफी साहब ने कभी दिल से नहीं लगाया लेकिन उनके बेटे शाहिद रफी लता दीदी के प्रति अपनी तल्खी को छुपा नहीं पाए। इशारों में ही सही उन्होंने लता दीदी को अपने पिता से कमतर आंका। हांलाकि ये भी कबूल किया कि सबसे ज्यादा युगल गीत रफी साहब ने लता जी के साथ ही गाए हैं। रफी साहब के समकालीन गायक कलाकार किशोर कुमार को लेकर उनका कहना था कि रफी साहब और किशोर कुमार के आपसी रिश्ते बहुत अच्छे थे। दोनों एक – दूसरे का सम्मान करते थे।
रफी साहब का बेटा होने का कोई दबाव नहीं।
कार्यक्रम पेश करते समय रफी साहब का बेटा होने के नाते लोगों की अपेक्षाओं का दबाव वे महसूस करते हैं..? इस सवाल के जवाब में शाहिद रफी का कहना था, मुझे पता है, मै रफी साहब के पैरों की धूल बराबर भी नहीं हूं, इसलिए मुझपर कोई दबाव नहीं रहता। कोशिश जरूर करता हूं की उनके गाए गानों के साथ न्याय कर सकूं।
कार्यक्रम के प्रारंभ में स्टेट प्रेस क्लब मप्र के अध्यक्ष प्रवीण खारीवाल, बंसी लालवानी, सुदेश गुप्ता, दीपक पाठक, कुमार लाहोटी, संजय मेहता, पूर्व आरटीओ आर आर त्रिपाठी और पुष्कर सोनी ने शाहिद रफी, उनके साथ आए आरके शर्मा व मनीष शुक्ला का स्वागत किया। सूत्र संचालन आलोक वाजपेयी ने किया। आभार प्रवीण खारीवाल ने माना।