राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं पर मौका मिले तो परहेज भी नहीं..

  
Last Updated:  March 4, 2024 " 08:42 pm"

🔹महिला दिवस पर विशेष 🔹

अवर लाइव इंडिया.कॉम से चर्चा में बोली शहर की जानी – मानी समाजसेविका माला सिंह ठाकुर।

अपनी जिन्दगी के सफर को लेकर की सारगर्भित चर्चा।

नारी सशक्तिकरण सहित सामाजिक क्षेत्र में किए कार्यों की लंबी श्रृंखला पर डाला प्रकाश।

इंदौर : महिलाओं के सशक्तिकरण, स्वावलंबी होने आत्मरक्षा के लिए प्रेरित करने की बातें तो कई मंचों और माध्यमों से की जाती है पर इसको लेकर पूरी गंभीरता के साथ धरातल पर काम करने वाले विरले ही होते हैं। ऐसा ही एक बिरला नाम है माला सिंह ठाकुर, शहर में अपनी अलग पहचान बना चुकी माला ठाकुर नारी सशक्तिकरण के लिए तो काम करती ही हैं, वे विभिन्न संगठनों से जुड़कर समाज और शहर हित से जुड़े मुद्दों पर बेबाकी के साथ अपनी राय भी रखती हैं। बहुमुखी प्रतिभा की धनी माला जी किसी राजनीतिक महत्वाकांक्षा से तो इनकार करती हैं पर मौका मिले तो इससे उन्हें परहेज भी नहीं है। घर – परिवार की जिम्मेदारी और नौकरी के साथ सामाजिक क्षेत्र में भी सक्रिय भागीदारी निभा रही माला ठाकुर ने किस तरह कामयाबी का अब तक का सफर तय किया, सीढ़ी दर सीढ़ी कैसे वे नए – नए मुकाम हासिल करती गई, आने वाले समय में वे ऐसा क्या करना चाहती हैं जिससे समाज लाभान्वित हो, ऐसी तमाम जिज्ञासाओं के साथ अवर लाइव इंडिया. कॉम ने उनसे चर्चा की।

पढ़ाई में बचपन से ही रही रुचि।

माला ठाकुर ने अपने बचपन की यादों को ताजा करते हुए बताया कि उनके पिता शिक्षक थे और मां गृहिणी। हम दो बहनें हैं,बड़ी बहन 11 साल बड़ी होकर महू में निवास करती हैं। माला जी के मुताबिक पाठ – पठन को लेकर उनका बचपन से ही झुकाव रहा। 10 वी में पढ़ते हुए ही वे कोचिंग भी पढ़ाने लगी थी। 12 वी के बाद उन्होंने अपना कोचिंग संस्थान भी शुरू किया था। ऑर्गेनिक केमिस्ट्री उनका प्रिय विषय था। कोचिंग संस्थान में वे केमिस्ट्री और बायोलॉजी पढ़ाती थी।

व्यक्तित्व को गढ़ने में मां का अहम योगदान।

माला जी बताती हैं कि उनके व्यक्तित्व को गढ़ने में मां की बड़ी भूमिका रही है। स्कूल में पढ़ाई के दौरान वे खरे कोचिंग इंस्टीट्यूट में सुबह साढ़े पांच बजे पढ़ने जाती थीं, तब मां तड़के साढ़े तीन बजे उठकर उनके लिए टिफिन बनाकर देती थी। मां से ऐसी कई बातें सीखने को मिली जो आज भी जिंदगी में रास्ता दिखाती हैं।

डॉक्टर बनना चाहती थी पर परिस्थितियों ने जिंदगी की दिशा बदल दी।

माला ठाकुर बताती हैं कि वे बचपन से ही डॉक्टर बनना चाहती थी। 12 वी के बाद पीएमटी की परीक्षा भी दी थी लेकिन एडमिशन किसी अन्य शहर के कॉलेज में मिल रहा था, बड़ी बहन की शादी हो चुकी थी और माता – पिता को छोड़कर जाना गवारा नहीं था, इसलिए होलकर कॉलेज में एडमिशन ले लिया। बाद में उसी कॉलेज में अतिथि सहायक प्राध्यापक के रूप में सेवाएं भी दी।

एक घटना ने आइएएस बनने का विचार त्यागा।

माला ठाकुर ने बताया कि उन्होंने एनसीसी में भी सी सर्टिफिकेट प्राप्त किया था, उन्हें एसएससी के बाद इंटरव्यू के जरिए जॉब का अवसर मिला था पर छह माह तक घर नहीं आ सकते थे इसलिए उस अवसर को जाने दिया। पीएससी की परीक्षा देकर आइएएस बनने का सोचा था पर एक कार्यक्रम में मंत्री जी के लिए जिले के मुखिया को कार का दरवाजा खोलते देखा तो आइएएस के विचार से ही मुंह मोड़ लिया।

एबीवीपी में काम करते हुए विकसित हुआ नेतृत्व कौशल।

माला जी के अनुसार उनमें नेतृत्व क्षमता और वक्तृत्व कला जैसे गुणों के विकास में एबीवीपी की बड़ी भूमिका रही है। 2003 में 12 वी की परीक्षा अच्छे नंबरों से पास करने पर एबीवीपी की ओर से एक कार्यक्रम में सम्मानित किया गया उसके बाद वे एबीवीपी से जुड़ गई। होलकर कॉलेज में रहते एबीवीपी के जरिए छात्र – छात्राओं के बीच काम करने, उनसे जुड़े मुद्दों को उठाने और उनके निराकरण का प्रयास करते हुए नेतृत्व क्षमता विकसित होती चली गई। इसी तरह 2005 में पहली बार होलकर कॉलेज का प्रतिनिधित्व करते हुए एक डिबेट कॉम्पिटिशन में भाग लेने का मौका मिला, उसके बाद तो सिलसिला सा चल पड़ा। कई डिबेट कॉम्पिटिशन में भाग लेकर अपनी वक्तृत्व कला को निखारने का अवसर मिला। एबीवीपी में रहते ही 2007 में शहर में एक बड़ा आंदोलन भी किया था जिसमें हजारों छात्रों की सहभागिता रही।

दुर्गा वाहिनी से जुड़ने के बाद नारी सशक्तिकरण पर ध्यान केंद्रित किया।

माला ठाकुर ने बताया कि वे 2010 में विश्व हिंदू परिषद की महिला शाखा दुर्गा वाहिनी से जुड़ी। इस संगठन में काम करते हुए ग्वालियर – चंबल सहित कई क्षेत्रों खासकर ग्रामीण इलाकों में जाने का मौका मिला। उस दौरान महिला उत्पीडन सहित अन्य कई समस्याओं से रूबरू हुई। तब जाकर ये महसूस हुआ कि महिला सशक्तिकरण के लिए भी काम करने की जरूरत है। इसके चलते छात्राओं, युवतियों और महिलाओं को आत्मरक्षा के गुर सिखाने के लिए शिविर लगाए। उनका आत्मविश्वास जगाकर स्वावलंबी बनने के लिए प्रेरित किया। वर्तमान में पुण्याति वेलफेयर फाउंडेशन के बैनर तले वे इस काम को जारी रखे हुए हैं।

शहर हित के मुद्दों पर काम करने के लिए अभ्यास मंडल से जुड़ी।

माला जी ने बताया कि वे अपने पिता के साथ 2004 से ही सामाजिक संस्था अभ्यास मंडल के व्याख्यान सुनने जाती थी। धीरे – धीरे लगा कि शहर हित से जुड़े मुद्दों पर भी काम किया जा सकता है तो अभ्यास मंडल से सक्रिय रूप से जुड़ गई। हाल ही में उन्हें इस संस्था का सचिव भी बनाया गया है।

घर – परिवार से मिलता है पूरा सपोर्ट।

माला ठाकुर ने बताया कि उन्हें माता – पिता ने हर कदम पर प्रोत्साहित किया। जब शादी हुई तो ससुराल में भी पति महेंद्र सोनगिरा, (शहर के जाने माने जर्नलिस्ट) और ससुराल पक्ष ने भी नारी सशक्तिकरण और सामाजिक क्षेत्र में काम करने के लिए कभी रोक – टोक नहीं की। उनके सहयोग और समर्थन की वजह से ही वे घर – परिवार और सामाजिक काम में संतुलन बना पाती हैं। उनका मानना है कि डॉक्टर बनकर वे समाज के लिए इतना कुछ नहीं कर पाती जो कर रहीं हैं। जो प्रतिष्ठा और सम्मान उन्हें सामाजिक काम करते हुए मिला है, उससे वे खुश और संतुष्ट हैं।

राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं पर अवसर मिले तो परहेज नहीं।

माला जी से यह पूछने पर कि क्या उनकी कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा है..? इस पर उनका जवाब था कि निजी तौर पर उनकी ऐसी कोई आकांक्षा नहीं है लेकिन संघ परिवार अगर राजनीति में कोई भूमिका निभाने के लिए प्रेरित करता है तो वे इनकार भी नहीं करेंगी।

युवाओं को नशे से दूर करने और अपनी विरासत से जोड़ने के लिए करना है काम।

एआईसीटीएसएल में जनसंपर्क अधिकारी के रूप सेवाएं दे रहीं समाजसेविका माला ठाकुर आनेवाले समय में युवाओं को अपने देश की संस्कृति, सभ्यता और प्राचीन विरासत से जोड़ना चाहती हैं। वे चाहती हैं कि युवा पीढ़ी देश को सबसे आगे रखें। युवाओं में नशे की बढ़ती लत पर चिंता जताते हुए माला जी ने बताया कि युवाओं को नशे से दूर करने के लिए व्यापक स्तर पर काम करने की जरूरत है। वे इस दिशा में भी काम करने की इच्छुक हैं।

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