इंदौर- आबकारी विभाग से रिटायर्ड हुए राजेन्द्र चौहान ‘राज’ अब अपनी बहुआयामी प्रतिभा को नए आयाम दे रहे हैं। जो शौक वे नौकरी में रहते व्यस्तता के कारण पूरा नहीं कर पाए उन्हें अब बखूबी अंजाम दे रहे हैं। लेखन के साथ उनके हाथों में वो हुनर है जो केनवास पर उतरते ही खूबसूरत चित्रों में ढल जाता है। उनके इसी हुनर की बानगी देते चित्रों की प्रदर्शनी रीगल तिराहा स्थित दुआ कला वीथिका में संजोई गई है।
शुक्रवार को इस नुमाइश का औपचारिक शुभारंभ हुआ। कुल 55 चित्र यहां सजाए गए हैं जिनमें ऑइल पेंट, वाटर कलर, एक्रेलिक और पेंसिल वर्क का प्रयोग किया गया है। 100 साल पहले ऐतिहासिक राजवाड़ा कैसा नजर आता होगा उसे अपनी कल्पना के जरिये राजेन्द्रजी ने केनवास पर साकार किया है। इसके अलावा पोर्ट्रेट, लैंडस्केप, कोलाज और रेखांकन भी उनकी नुमाइश का हिस्सा हैं। कुछ पेंटिंग्स में राजेंद्र राज ने सूखे पत्ते, घासफूस और गेहूं की सुखी बालियों का भी प्रयोग किया है इनमें वनदेवी शीर्षक से निर्मित पेंटिंग बरबस ही ध्यान आकर्षित कर लेती है। प्रदर्शनी में राजेन्द्रजी की भतीजी शालिनी की भी चुनिंदा कलाकृतियां प्रदर्शित की गई हैं। प्रदर्शनी रविवार तक कलाप्रेमियों के अवलोकनार्थ खुली रहेगी।
प्रदर्शनी के साथ ही राजेन्द्र राज के लिखे उपन्यास समर्पण का विमोचन भी किया गया। ये उनकी तीसरी किताब है। इसके पहले वे शेरो शायरी और अपने जीवन संस्मरणों पर भी पुस्तक का प्रकाशन कर चुके हैं।
राजेन्द्र राज के चित्रों की नुमाइश और समर्पण का विमोचन
Last Updated: January 4, 2019 " 06:04 pm"
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