इंदौर : प्रकृति हमारी सबसे बड़ी सर्जना है। नदी, पेड़, पहाड़, झरने, पशु पक्षी, धरती व आकाश,, जंगल सभी रचनाकार को सर्जन के लिए ढेरो शब्द देते हैं। अतः प्रकृति से एकाकार होकर जब कोई रचनाकार कुछ रचता है तो वह अद्वितीय होता है। प्रकृति के कण-कण में अद्भुत सौंदर्य है। उसे अभिव्यक्त करने के लिए जब रचनाकार के पास शब्द कम पड़ जाते हैं तो प्रकृति उसे शब्द ही नंहीं उपमा, विशेषण, अलंकार सभी देती है। केवल कविता, नाटक, उपन्यास, कहानी ही साहित्य की विधा नहीं बल्कि लोक साहित्य, यायावरी, कला आदि भी साहित्य की ही विधा है। सृजन का एक अर्थ है रचना है तो दूसरा अर्थ स्वयं को मुक्त होना है। ये विचार विभिन्न साहित्यकार, पर्यावरणविद्, लेखक, लोक संस्कृतिकर्मी और विधिवेत्ताओं के हैं, जो उन्होंने समिति शताब्दी सम्मान, साहित्य उत्सव एवं साहित्यिक संस्थाओं के सम्मेलन के समापन दिवस के पहले सत्र में सर्जना के आयाम विषय पर आयोजित चर्चा में व्यक्त किए। इस चर्चा सत्र के अतिथि वक्ता थे-ललित निबंधकार नर्मदाप्रसाद उपाध्याय, पर्यावरणविद डॉ. अजय सोडानी, लोक साहित्य के शीर्ष पुरुष डॉ. श्यामसुंदर दुबे और सुपरिचित कवि डॉ. आशुतोष दुबे।
अपने संबोधन में लोक साहित्यकार और संस्कृति के अध्येता, निबंधकार डॉ. श्यामसुंदर दुबे ने कहा कि वेदों की ऋचाओं से पहले लोक ने बिम्ब बनाना शुरु कर दिया था, क्यांकि शब्दों में जो स्पंदन और सौंदर्य होता है, उसे किसी विशेषण की आवश्यकता नहीं है। ललित निबंध लेखन एक कठिन विधा है और बड़ा चुनौतीपूर्ण कार्य। जितना इसको लिखना कठिन है, उतना ही उसको पढ़कर समझना, क्योंकि इस विधा पर यह आक्षेप लगाया जाता है कि यह एक पाठ्यक्रम की विधा है। इसलिए इसके समीक्षक भी कम है और इसके लेखक भी कम है। पंडित हजारी प्रसाद द्विवेदी, कुबेरनाथ, विवेक राय, डॉ. विद्यानिवास मिश्र जैसे कुछ नाम है, जो ललित निबंधकार के रुप में लोगों को पता है। इस विधा पर यह आक्षेप भी लगाया जाता है कि इसकी भाषा बड़ी जटिल और क्लिष्ट होती है। पाठकों पर अपना जल्दी प्रभाव नहीं छोड़ती और तत्काल प्रतिक्रिया नहीं देती है, जबकि सही मायने में ललित निबंध एक ऐसी विधा है जो लेखक को भी गढ़ती है। यायावरी, जीवनी, संस्मरण आदि भी ललित निबंध के अंतर्गत आते हैं। किसी लेखक ने कहा कि जब भाव को द्रोणी (दोना) बनाकर और विचार को पिघलाकर के जो गहना बनता है, उसे ललित निबंध कहते है। ललित निबंध एक तरह से सिर का नंदी है। जो कब ललित से ज्वलित बन जाता है पता ही नहीं चलता। उन्होंने आगे कहा कि मनुष्य के व्यक्तित्व को भाषा ही गढ़ती है और भाषा ही उसे पहचान देती है
ललित निबंधकार नर्मदा प्रसाद उपाध्याय ने कहा कि लेखन की विरासत मुझे अपने दादाजी से मिली। वर्तमान में कुछ साहित्यकार ललित निबंध के नाम पर सांस्कृतिक प्रलाप कर रहे हैं और शब्दों की पच्चीकारी या लालित्य से उसे ललित निबंध कह रहे है, जो सही नहीं है। दरअसल प्रकृति के समानांतर जो लिखा जाता है, वह ललित निबंध है। ललित निबंध पाठकों को भी परिष्कृत करता है और उसे एक नयी दृष्टि देता है। उन्हांने आगे कहा कि कला का मतलब नवीन बनाना ही नहीं, नवीन बने रहना भी है।
विधिवेत्ता एवं लेखक विनय झैलावत ने कहा कि यह सही है कि कानून का संबंध आमजन से है, लेकिन सभी उसकी उपेक्षा भी करते है। मैंने 5 वर्ष की उम्र में पहले कविता लिखी और उसके बाद एक ही अखबार में 16 वर्ष तक निरंतर विधि के विषय पर लिखा। कानून जैसे विषय पर लिखना बड़ा कठिन है, विडंबना यह है कि एक व्यक्ति ताउम्र अदालत में अपने अधिकारों के लिए लड़ता है और अंत में उसे अदालत द्वारा जो फैसले की प्रति दी जाती है वह अंग्रेजी भाषा में होती है। हालांकि अब स्थिति बदल रही है। अब हिंदी में मुकदमें लिखे जा रहे हैं और फैसले भी हो रहे है। कानून का ज्ञान जितना अधिक अपनी भाषा में होगा, आमजन के लिए उतना ही फायदा होगा।
पर्यावरणविद एवं लेखक डॉ. अजय सोडानी ने कहा कि पर्यावरण का अर्थ केवल हमारे चारों ओर का आवरण ही नहीं बल्कि नदी-नाले, पत्थर आदि भी पर्यावरण में शामिल हैं। पर्यावरण ही हमें शब्द देते हैं। जो लोग पहाड़ों की चढ़ाई करते है या जंगलां में लंबे समय तक भृमण करते हैं, उसका जो रोमांच है, उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। रोमांच के साथ कहीं गयी बातें को पाठक के मन में आसानी से उतरती है। कवि कालिदास का लिखा महानाट्य मेघदूत भी एक तरह का यात्रा वृतांत है।
कार्यक्रम का संचालन कवि डॉ. आषुतोष दुबे ने किया। इस मौके पर वरिष्ठ व्यंग्यकार प्रेम जनमेजय, राकेश शर्मा, नर्मदा प्रसाद उपाध्याय और हरेराम वाजपेयी ने कार्टूनिस्ट देवेंद्र शर्मा और चित्रकार राजेश शर्मा को शॉल, श्रीफल और मान पत्र देकर हिंदी सेवी सम्मान से सम्मानित किया। कार्यक्रम का संचालन संस्कृतिकर्मी संजय पटेल ने किया। अतिथि स्वागत सूर्यकांत नागर, अरविंद जवलेकर, अरविंद ओझा, मोहन रावल ने किया।
इस मौके पर साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ. विकास दवे, प्रो. सूर्यप्रकाश चतुर्वेदी, कवि रवीन्द्र पहलवान, प्रवीण जोशी, डॉ. जवाहर चौधरी, राकेश शर्मा, घनश्याम यादव, राजेश शर्मा, अनिल भोजे, प्रभु त्रिवेदी, सत्यनारायण व्यास, सुषमा दुबे, महेंद्र सांघी, अपर्णा सोडानी, सदाशिव कौतुक, प्रदीप नवीन, शोभना तिवारी, आशुतोष शुक्ला, अर्चना शर्मा, मुकेश तिवारी, डॉ. अर्पण जैन, डॉ. अखिलेश राव सहित बड़ी संख्या में गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।