*दिलीप लोकरे*
25 जून 1983 , दोपहर 11 बजे । इंदौर का रवींद्र नाट्य गृह । आदरणीय स्व. बाबा डिके के साथ नाट्य भारती संस्था की टीम स्टेज पर सेट लगाने के काम मे व्यस्त ।
लगभग इसी समय इंग्लैंड के लॉर्ड्स मैदान में भारतीय टीम विश्वकप क्रिकेट के फाइनल मैच के लिए तैयार हो रही थी । तब विश्वकप 60 ओवर ( एक पारी ) का हुआ करता था और इंग्लैंड में होने से भारतीय समयानुसार अपरान्ह के बाद ही शुरू होना था ।
बाबा डिके उस दिन शाम को ब्रिटिश लेखक, विलियम शेक्सपियर के नाटक ‘ ओथेलो ‘ का मंचन करने वाले थे । लिटिल थियेटर अभियान के तहत यह उस वर्ष का तीसरा नाटक था जो संस्था के सदस्यों के लिए प्रस्तुत किया जाना था ।
लिटिल थियेटर अभियान बाबा का एक बहुत पुराना सपना था जिसे कई वर्षों के अंतराल के बाद 1983 में पुनः प्रारम्भ किया गया था । हिंदी रंगमंच से दर्शकों को नियमित रूप से जोड़े रखने के उद्द्येश्य से तत्कालीन सभी नाट्य संस्थाओं ने मिलकर यह अभियान प्रारम्भ किया था । तय यह हुआ था कि हर संस्था महीने में एक नाटक करेगी । यदि कोई संस्था असमर्थ रहे तो बाबा ने उसके एवज में नाट्यभारती नाटक प्रस्तुत करेगी यह ग्यारंटी दी थी । लगभग 1200 सदस्य उस जमाने मे बन भी गए थे । हांलाकि उन में से नाटक देखने 200-250 दर्शक ही आते थे ।
तैयारी में व्यस्त कलाकारों को किसी ने आकर बताया कि भारत पहले बैटिंग करने वाला है । कलाकरों में कई क्रिकेट प्रेमी भी थे । बाबा स्वयं भी थोड़ी बहुत रुचि लेते थे । पहली बार क्रिकेट विश्वकप के फाइनल में जाने , कपिल देव की जिम्बाब्वे के खिलाफ पारी , पिछले कई मुकाबलों के दौरान संदीप पाटिल,श्रीकांत की बल्लेबाज़ी, मदनलाल,बिन्नी और संधू की गेंदबाजी ने देश के लोगों की उम्मीदों को जगा दिया था । वेस्टइंडीज़ की टीम सामने होने से कोई भी भारत के जीत की उम्मीद नही कर रहा था लेकिन जिज्ञासा थी ज़रूर ।
सेट पूरी तरह तैयार हो चुका था । लाइटिंग माईक आदि चेक किये जा चुके थे । मेकरूम में पूजा के बाद मेकअप चालू हो चुका था । सभी अपने-अपने रोल पर ध्यान केंद्रित करने के प्रयत्न में थे तब खबर मिली गावस्कर के सस्ते में आउट होने की ।
मैं उस समय कला निकेतन नाट्य संस्था का सदस्य था लेकिन लिटिल थियेटर संयुक्त अभियान होने से, तथा आथेलो में पात्रों की अधिकता होने से और बाबा ने मेरा काम पूर्व के कुछ नाटकों में मेरा काम देखा होने और उसे पसंद करने की वजह से मुझे भी नाटक में लिया गया था । बाबा साहब के निर्देशन में काम करने का अवसर मिला था तो मन बल्लियों उछल रहा था ।
नाट्य गृह में कुर्सियां भरना चालू हो चुकी थी । लगभग 125 दर्शक आ चके थे । शाम ठीक 7 बजे नाटक चालू हो गया ।
उधर लॉर्ड्स से तरह तरह की खबरे मिल रही थी । टी वी तब इतने व्यापक पैमाने में व्याप्त नही था । रेडियो कमेंट्री का ज़माना । कई दर्शक पॉकेट ट्रांजिस्टर लेकर आये थे जो बीच बीच मे हॉल के बाहर जा कर स्कोर जान कर आ रहे थे । भारत की टीम कम स्कोर पर आउट हो गई तब मंच के सामने दर्शकों की हलचल कम हो गई जिसके कारण कलाकारों का ध्यान भंग होना कम हुआ ।
नाटक का मध्यांतर हुआ तब कलाकारों को मैच के स्कोर के बारे में विस्तृत जानकारी मिली । बहुत अच्छी प्रस्तुति के बावजूद दर्शकों का प्रतिसाद नही मिल रहा था । मिलता भी कैसे ? उनका ध्यान नाटक पर कम और मैच की तरफ ज्यादा था । इधर कलाकारों को लग रहा था कि हमारी प्रस्तुति में जान नाही आ पा रही ।
मध्यांतर के बाद नाटक चालू हुआ । मंच पर मेरी एंट्री के बाद हॉल में नज़र गई तो दिल धक्क रह गया । एक तिहाई दर्शक गायब थे । नाटक के खत्म होते होते मुश्किल से 15 -20 दर्शक बचे थे , जिसमे से भी कई तो कलाकरों के परिजन ही थे।निराश कलाकार सोच रहे थे की नाटक घटिया हुआ , तभी कोई दौडता हुआ आया और सूचना दी कि भारत ने विश्व कप जीत लिया । उसके बाद तो जैसे तैसे मंच से सेट खोला , पैक किया । घर जाते समय रास्ते मे तमाम लोग जश्न मना रहे थे । पिछले वर्षों जितना भव्य तो उस वक़्त नाही था , पर जश्न तो था।
घर जाने के बाद पता चला कि क्या क्या मिस किया । श्रीकांत महिंदर अमरनाथ, की बेटिंग , शानदार फील्डिंग और कपिलदेव द्वारा लिया गया विवियन रिचर्ड का अविश्वसनीय कैच , मदनलाल,बलविंदर सन्धु और मोहिंदर अमरनाथ की अविश्वसनीय गेंदबाज़ी ……….
आज 37 वर्ष बाद भी वह सब याद कर रोमांच हो आता है।
(संस्मरण लेखक दिलीप लोकरे इंदौर के वरिष्ठ पत्रकार और थियेटर आर्टिस्ट हैं।)