विश्व साहित्य की अनमोल धरोहर हैं कबीर- धनश्री लेले

  
Last Updated:  December 29, 2019 " 07:58 am"

इन्दौर : शहर की 30 प्रमुख धार्मिक, सामाजिक संस्थाओं द्वारा वैशाली नगर के माधव विद्यापीठ में संयुक्त रूप से आयोजित राष्ट्र चेतना व्याख्यानमाला के दूसरे दिन मुंबई की सुप्रसिद्ध लेखिका और प्रखर वक्ता धनश्री लेले ने सांगे कबीर(कबीर कहिन)विषय पर प्रवचन दिया। उन्होंने बड़ी संख्या में उपस्थित श्रोताओं से कालजयी सुफी संत कबीर का अलौकिक अनुभूति कराता परिचय करवाया। पूरे समय श्रोता मंत्रमुग्ध होकर धनश्री लेले का धाराप्रवाह और ओजपूर्ण संबोधन सुनते रहे। विदुषी वक्ता ने कबीर के जीवन चरित्र,उनके कालजयी दोहे और आध्यात्मिक पहलुओं की मानव मनोविज्ञान के संदर्भ में सुंदर व्याख्या की। धनश्री लेले ने कहा कि कबीर विश्व साहित्य की अनमोल धरोहर हैं। उनके जैसा कोई नहीं। 500 वर्षो के बाद भी कबीर उतने ही प्रासंगिक हैं,जितने वे 15 वीं शती में थे। उन्होंने कहा कि वे अद्भुत विचारक थे। उन्होंने मनुष्य के लौकिक और परलौकिक दोनों का विचार किया। उनके दोहे सरल,सुबोध और सीधे ह्रदय में उतरने वालें हैं,इसलिए वे देश,काल और परिस्थिति से ऊपर हैं। वे जब यह कहते हैं कि.. कबीर, राम नाम कड़वा लागे मीठे लागे दाम। दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम। तो वे बताते हैं कि प्रपंच में रमा यानी सांसारिक व्यक्ति दुविधा में रहता ही है,तो कबीर का आशय होता है कि हमे दुविधा में नहीं रहना चाहिए। फिर हमे कैसे रहना चाहिए तो वे कहते हैं कि
बड़ो बड़ाई ना तजै , छोटा बहुत इतराय।
ज्यों प्यादा फरजी भया, टेढ़ा -मेढ़ा जाय।।
अर्थात ओछे लोग थोड़ा सा धन,मान,पद पाकर बहुत घमंड करने लगते हैं और जो लोग महान होते हैं, वह अपनी महानता नहीं छोड़ते।
विदुषी वक्ता के अनुसार कबीर हमे जीवन की राह भी बताते हैं और यह भी कि जीवन का मकसद क्या होना चाहिए।
धनश्री लेले ने अपने धाराप्रवाह और ओज पूर्ण संबोधन में कबीर के कई दोहे सुनाए और उन्हें वर्तमान आधुनिक जीवन शैली के संदर्भ में समझाया। विदुषी वक्ता का कहना था कि आध्यात्मिक कबीर बहुत ही गूढ़ हैं। उन्हें समझना आसान नहीं है,हालांकि उनमें महान जीवन दर्शन छिपा हुआ है।
धनश्री लेले ने बताया कि कबीर कर्मकांड और पोंगा पंथी कुरितियों को तजने का संदेश अपने ही तरीके से देते हैं। विदुषी व्याख्याकार ने कबीर के हिंदू ,मुस्लिम विवाद को भी अपने तरीके से स्पर्श किया और कहा कि यह विवाद व्यर्थ का है। इस पर बहस करने वाले कबीर को समझ ही नहीं पाए। कबीर संपूर्ण मानवता के हैं उन्हें इस तरह के विवादों से छोटा नही बनाया जा सकता,बल्कि जो इस विवाद में पड़ते हैं,या इसे बढ़ाते हैं,वे बौने कद के हैं,संकीर्ण हैं। कबीर खुद कहते हैं-
हिन्दू कहूं तो हूं नहीं, मुसलमान भी नही
गैबी दोनों बीच में, खेलूं दोनों माही..
धनश्री लेले अंत में कहतीं हैं कि कबीर ने हिन्दू और मुस्लिम दोनों धर्मों की शाश्वत बातों को ग्रहण किया और काल्पनिक व निर्रथक बातों का परित्याग किया। इसलिए वे संपूर्ण मानवता के हैं।
प्रारंभ में मुख्य अतिथि विनय पिंगले ने दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। पहले दिन की तरह शनिवार को भी युवाओं के लिए व्याख्यान पर आधारित क्विज रखी गई थी। सनद रहे व्याख्यानमाला शहर के प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता स्व.वसंत बोचरे ,स्व. प्रदीप कुळकर्णी और स्व.चन्द्रशेखर येवतीकर की स्मृति में रखी गई है।

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