इंदौर : आज हम जिस योग, वास्तु, ज्योतिष पर्यावरण एवं अन्य मुद्दों पर नवाचार कर रहे हैं, वे सब हजारों वर्ष पहले ही हमारे वेदों में समाहित हैं। हमारे चारों वेद जीवन जीने की कला सिखाते हैं। दुनिया का ऐसा कोई भी विषय नहीं है, जिसका उल्लेख वेदों में नहीं किया गया हो। वेद भारतीय धर्म एवं संस्कृति के प्राण तत्व हैं। इनमें ज्ञान का अथाह भंडार भरा हुआ है। वेदों के ज्ञान से ही मानव स्वयं को महामानव के मार्ग पर आगे बढ़ा सकता है। हमारी जीवन शैली, उपासना पद्धति, आचार-विचार, खान-पान, रहन-सहन से लेकर जीवन को संवारने के सभी मंत्र हमारे वेदों में शामिल हैं। जरूरत है, वेदों के ज्ञान को स्कूल-कालेजों के पाठ्यक्रमों में लेकर जन-जन तक पहुंचाने की।
राजमोहल्ला स्थित वैष्णव विद्यालय परिसर में चल रहे तीन दिवसीय अ.भा. वेद महोत्सव के दूसरे दिन शनिवार को देश के कोने-कोने से आए विद्वानों ने चारों वेदों का सस्वर पारायण किया और वेदों की महत्ता बताते हुए उक्त बातें कहीं। वेदों की ऋचाओँ के समवेत स्वर आयोजन स्थल और राजमोहल्ला क्षेत्र में गुंजायमान हो रहे हैं।
प्रारंभ में विद्वानों ने पुरुष सूक्त का पाठ किया। उसके बाद मैसूर से आए आचार्य पं. के. संतोष कुमार, पं. अवधानुल चिन्मय दत्ता घनपाठी एवं बैंगलुरू के पं. चैतन्य जोशी ने अपने सहयोगी विद्वानों के साथ ऋग्वेद का पारायण किया। उन्होंने बताया कि ऋग्वेद अध्यात्म के मार्ग पर आगे बढ़ाता है। इसमें इंद्र, अग्नि, रूद्र, वरूण और सूर्य जैसे देवताओँ की स्तुति के साथ ही प्रकृति की ऊर्जाओं के दोहन के मंत्र दिए गए हैं। पारायण में बांसवाड़ा के पं. इंद्रशंकर झा एवं पं. हरसदलाल नागर भी शामिल थे। दूसरे सत्र में शुक्ल यजुर्वेद का पारायण त्रयम्बकेश्वर के शैलेन्द्र कांकड़े, ब्रह्मचारी समर्थ, अद्वेत तथा पं. खेमराज ने किया। वाराणसी के आचार्य श्रीनिवास पौराणिक, मोहनलाल चैतन्य मुखरिया, श्रीकृष्ण मुरारी तथा तिरुपति के शबरी शरण और विजयवाड़ा के जी. कृष्ण मोहन एवं अनंत सयाना चार्यालु भी शामिल हुए। तृतीय सत्र में सामवेद का पारायण मैसूर के एच.एन.श्रोती, श्रीकोहिर चैतन्य कुमार श्रोती, वी. कृष्ण शर्मा, दिल्ली के कुलदीप चौबे, भीलवाड़ा के ईश्वरलाल एवं विशाखापट्टनम के पं. मणिकंठ शर्मा ने किया। अंतिम सत्र में विशाखापट्टनम के अशोक कुमार मिश्रा, गोकर्ण के श्रीधर अड़ी, तिरुपति के श्रीकृष्ण तेजा शर्मा, विजयवाड़ा के के. सूर्यनारायण शर्मा, प्रयागराज के ओमप्रकाश दिल्ली के देवेन्द्र तिवारी आदि ने अथर्ववेद का पारायण किया। पारायण के दौरान इन सभी विद्वानों ने वेदों की महत्ता भी बताई और कहा कि शुक्ल एवं कृष्ण यजुर्वेद कर्मकांड, उपासना, गृहस्थ जीवन को संवारने और परिवार तथा समाज को कैसे संस्कारित और मर्यादित बनाया जाए, इन बातों पर जोर दिया गया है। सामवेद संगीत की सप्त विधाओं, सातों सुरों, शास्त्रीय संगीत के साथ ही मानव शरीर में ऊर्जा केन्द्रों को जागृत करने के मंत्रों से भरा हुआ है। इसी तरह अथर्ववेद आरोग्य प्राप्ति के उपायों के साथ ही स्वस्थ और दीर्घायु जीवन के मंत्रों से भरपूर धरोहर है। इसमें 6 हजार श्लोक हैं। इन चारों वेदों के मंत्र मानव को सृजन की ओर ले जाते हैं, जबकि आधुनिक विज्ञान विनाश की ओर ले जाता है।
स्कूल – कॉलेज के पाठ्यक्रमों में शामिल हों वेद।
आज हम जिन विषयों पर नवाचार की बात करते हैं, हमारे वेदों में ये सभी विषय हजारों वर्ष पहले से दिए हुए हैं। इन्हें स्कूल, कालेजों के पाठ्यक्रमों में शामिल करना चाहिए।
प्रारंभ में आयोजन समिति की ओर से सांसद शंकर लालवानी, अध्यक्ष पुरुषोत्तमदास पसारी, उपाध्यक्ष विष्णु बिंदल, टीकमचंद गर्ग, प्रेमचंद गोयल, देवेन्द्र मुछाल, सुरेश बंसल, गिरधर गोपाल नागर, समन्वयक पं. गणेश शास्त्री, पं. राकेश भटेले, पं. कल्याणदत्त शास्त्री आदि ने दीप प्रज्वलन कर दूसरे दिन के महोत्सव का शुभारंभ किया। इस मौके पर विभिन्न स्थानों से आए वेद विद्वानों का आयोजन समिति की ओर से सम्मान भी किया गया।
दोपहर के सत्र में ये बोले।
दोपहर के सत्र में वाराणसी के प्रो शीतलाप्रसाद पांडे, मैसूर के वी. कृष्ण कुमार एवं इंदौर के डॉ. विनायक पांडे ने वरिष्ठ पत्रकार डॉ. वेद प्रताप वैदिक की अध्यक्षता में यजुर्वेद तथा सामवेद के परिचय एवं विशेषताओं का रोचक वर्णन किया। शहर एवं आसपास के कस्बों की संस्कृत पाठशालाओँ के करीब 1500 विद्यार्थी आज भी महोत्सव में शामिल हुए। उज्जैन स्थित महर्षि पाणिनि संस्कृत एवं वैदिक वि.वि. के कुलपति डॉ. मिथिला प्रसाद त्रिपाठी विशेष रूप से इस व्याख्यान में उपस्थित रहे।