शिव आराधना हमें जीवन के सत्य को याद रखने के लिए प्रेरित करती है

  
Last Updated:  August 7, 2023 " 05:41 pm"

इंदौर : श्रावण मास शिव शम्भू का प्रिय है और श्रावण में शिव भक्त भी बम-बम भोले और हर-हर महादेव के उद्घोष से सृष्टि को गुंजायमान कर देते हैं। हम सभी जानते हैं कि त्र्यंबकेश्वर शिव के समान कोई दाता नहीं है। बहुत ही कम सामग्री में शम्भू नाथ प्रसन्न हो जाते हैं।रुद्राभिषेक, काँवड़ यात्रा, अमरनाथ यात्रा, श्रावण का सोमवार, प्रदोष हो या नागपंचमी यह सभी शिव भक्तों के लिए उत्सव स्वरुप हैं।श्रावण माह में सभी भक्त अपने मनोरथों की पूर्ति के लिए बाबा वैद्यनाथ से प्रार्थना करते हैं। क्योंकि श्रीहरि विष्णु के योग निद्रा में जाने के बाद त्रिशूलधारी त्रिपुरारी ही सृष्टि की सत्ता का संचालन करते हैं। जिस प्रकार नीलकंठ विष धारण करने के बाद भी ध्यानमग्न होकर आनंद की खोज करते हैं, उसी प्रकार शिवभक्त भी शम्भू की भक्ति में आनंद के क्षणों से अभिभूत होता है। आदि अनंत अविनाशी शिव की आराधना से शिव भक्तों का मन निर्मल एवं शांतचित्त हो जाता है। पल भर में प्रलय करने वाले शिव स्वयं आनंद प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करते हैं, जिनकी महिमा का सभी देवी-देवता,दानव,असुर,यक्ष इत्यादि गुणगान करते हैं। महादेव सावन में शीघ्र कृपा कर देते हैं।

शिवभक्त ज्योर्तिलिंग के दर्शन कर शिव के प्रत्यक्ष विराजमान स्वरुप को महसूस करते हैं।वहीँ पार्थिव शिवलिंग एवं लिंग स्वरुप की आराधना से सभी जनमानस धन्य हो जाते हैं। महामृत्युंजय मंत्र के जप से महाँकाल की शरण प्राप्त कर भय से मुक्त नजर आते हैं। शिव महापुराण में भी श्रावण और शिव की स्तुति का वर्णन हमें मिलता है। हम भला ईश्वर को क्या अर्पित कर सकते हैं पर पूजा के स्वरुप द्वारा हम भावों और आत्मा से ईश्वर से जुड़ने लगते हैं। कुछ क्षण के लिए ही सही हम उस परमात्मा के साथ एकाकार होने की दिशा में अग्रसर होते हैं। पूजन अर्चन के अनेक स्वरुप हो सकते हैं। कोई शम्भुनाथ उमापति की झाँकी सजाता है, कोई उनके भजन-कीर्तन में तल्लीन हो जाता है, कोई महाँकाल की सवारी निकालता है, तो कोई व्रत-उपवास एवं मंत्र-जप द्वारा शिव की आराधना का मार्ग चयन करता है।माध्यम कोई भी हो, बस हम शिव की भक्ति के सूर्य को देदीप्यमान और प्रकाशवान करना चाहते हैं।

श्रावण माह में हर समय हमारा मन कैलाशपति, रुद्रनाथ, विश्वनाथ, ओंकारेश्वर में मन रमता नजर आता है। हर-हर महादेव के द्वारा हम हर समय प्रभु से अपने कष्ट हरने के लिए निवेदन करते हैं।शिव तो वो हैं जो सृष्टि के प्रत्येक वैभव को हमें प्रदान कर सकते हैं। फिर भी वे वैराग्य धारण कर उसके महत्त्व को उजागर करते हैं, जो शमशान में निवास कर मृत्यु को जीवन का सत्य मानते हैं। भस्म धारण कर मोह-माया से विरक्ति दर्शाते हैं। उन्हीं शम्भू की सत्यता, सरलता और सहजता हमें उनके प्रति नतमस्तक बना देती है और हमारी आस्था एवं भक्ति को प्रबलता प्रदान करती है। शिव तो तीनों लोकों में पूज्यनीय एवं वंदनीय हैं।भूतभावन भोलेनाथ की आराधना तो हमें अकाल मृत्यु से भी मुक्ति दिलाती है। शिव की सरलता तो देखिये वे मात्र जल और बिल्वपत्र से प्रसन्न हो जाते हैं। उनकी पूजा तो प्रत्येक प्राणि के लिए सरल है।उमापति की सत्यता तो देखिये जब दूल्हे बने तब भी अपने सत्य स्वरुप में ही सबके सामने प्रत्यक्ष हुए। सभी जानते हैं कि हम सभी ने मुठ्ठी बाँधकर इस संसार में जन्म लिया है और खाली हाथ हम इस संसार से विदा हो जाएंगे।इस धरा से जो प्राप्त करेंगे उसे हम यहीं छोड़कर चले जाएंगे। वहीँ शिव का स्वरुप हमें सदैव सत्यम-शिवम्-सुंदरम का स्मरण कराता है। श्रावण मास में शिव आराधना हमें जीवन के सत्य को याद रखने के लिए प्रेरित करती है।

शिव को जलधारा अत्यंत प्रिय है। इसी कारण उन्हें श्रावण मास भी प्रिय है। शिव की पूजा-अर्चना हमारी भक्ति की प्यास को भी पूर्णता प्रदान करती है। हर पूजा के साथ हम भावों की माला से शिव की उपासना करते हैं।वर्तमान समय में श्रावण मास और अधिक मास का संयोग विद्यमान है। नारायण तो स्वयं कहते है कि जिस पर त्रिपुरारी कृपा नहीं करते उन्हें मेरी भी भक्ति प्राप्त नहीं होती, अतः शिव की आराधना तो हमें स्वयं ही सृष्टि के पालनहार के समीप पहुँचा देती है। शिव में समाहित होना हमें शिवलोक की ओर अग्रसर करता है, वहीँ शिव का अर्द्धनारीश्वर स्वरुप हमें शिव-शक्ति की अनूठी सत्ता का भी दर्शन करवाता है। शिव ने तो प्रेम निर्वहन में भी सदैव धैर्यपूर्वक उत्कृष्टता प्रदर्शित की। महादेव ही एकमात्र वो देव है जिनकी संसार के प्राणी नहीं बल्कि शमशान की आत्मा द्वारा भी स्मरण एवं जप होता है। शिव शम्भू की विवेचना तो असंभव है। उनकी वेशभूषा हो, लीला हो अथवा उनका त्याग हो वे प्रत्येक स्वरुप में वंदनीय हैं। सृष्टि और भक्त के कल्याण के लिए वे सदैव तत्पर दिखाई देते हैं। शिवशम्भू, गिरिजापति, नागेश्वर, उमाकांत तो कृपानिधान और भक्तवत्सल हैं। रावण ने सोमनाथ, जटाधारी, गौरीशंकर की आराधना कर राम के द्वारा उद्धार प्राप्त किया वहीँ श्रीराम ने आशुतोष, मुक्तेश्वर, जगपालनकर्ता महेश की आराधना कर सरलता से युद्ध में विजय प्राप्त की। रुद्रावतार हनुमान ने तो श्रीराम के प्रत्येक कार्य को सरलता प्रदान की, तो क्यों न कुछ क्षणों के लिए ही हम शिव में लीन होकर भक्ति के मार्ग पर अपने अनवरत कदम बढ़ाएं और श्रावण मास में शिव का स्मरण कर अपनी मनुष्ययोनि का कृतार्थ करें।

डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)

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