संस्कृति का संरक्षण करने की जिम्मेदारी हम सबकी है : साध्वी कृष्णानंद

  
Last Updated:  December 14, 2023 " 05:18 pm"

गीता भवन में चल रहे श्रीमद भागवत ज्ञान यज्ञ में धूमधाम से मना राम एवं कृष्ण जन्मोत्सव।

इंदौर : राम और कृष्ण भारत भूमि के आधार स्तंभ हैं। राम नाम की भक्ति का बीज पूरे ब्रह्मांड को लहलहा देता है। भक्ति का बीज कभी बंजर नहीं होता। राम यदि इस देश के घट-घट में व्याप्त हैं तो कृष्ण भी भारत भूमि के कण-कण में व्याप्त हैं। सनातन धर्म और संस्कृति की दृढ़ता राम और कृष्ण रूपी अवतारों से ही संभव है। हमारी संस्कृति के साथ इनका संरक्षण करने की जिम्मेदारी हम सबकी है।

श्रीधाम वंदावन के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद की सुशिष्या साध्वी कृष्णानंद ने गीता भवन सभागृह में गोयल पारमार्थिक ट्रस्ट द्वारा आयोजित भागवत ज्ञान यज्ञ में राम एवं कृष्ण जन्मोत्सव के दौरान उक्त प्रेरक विचार व्यक्त किए। कथा शुभारंभ के पूर्व संयोजक प्रेमचंद गोयल एवं विजय गोयल ने व्यासपीठ का पूजन किया। भागवतजी की आरती में सैकड़ों श्रद्धालुओं ने शामिल होकर पुण्य लाभ उठाया। जन्मोत्सव के लिए कथा स्थल को विशेष रूप से गुब्बारों, माखन की मटकियों और फूल-पत्तियों से श्रृंगारित किया गया था। भक्तों के सैलाब के बीच जैसे ही नन्हें श्रीकृष्ण के जन्म का प्रसंग आया भक्तों में उनके दर्शनों की होड़ मच गई। नंद में आनंद भयो जय कन्हैयालाल की… जैसे भजनों पर समूचा सत्संग सभागृह झूम उठा। साध्वी कृष्णानंद के भजनों ने आज भी भक्तों को आल्हादित बनाए रखा।

गीता भवन में गोयल पारमार्थिक ट्रस्ट के सौजन्य से भागवत ज्ञान यज्ञ का यह संगीतमय आयोजन 16 दिसम्बर तक प्रतिदिन अपरान्ह 4.30 से सायं 7 बजे तक हो रहा है। गुरुवार, 14 दिसम्बर को गोवर्धन पूजा एवं छप्पन भोग के प्रसंग की कथा होगी।

संस्कृति के संरक्षण की जिम्मेदारी हम सबकी।

साध्वी कृष्णानंद ने कहा कि सनातन धर्म एवं हमारी संस्कृति अनमोल है। भक्ति हमारा स्वभाव होना चाहिए। बचपन से जो संस्कार हमारे परिपक्व होते मन पर अंकित होते हैं, वे ही आगे चलकर हमारे व्यक्तित्व और चरित्र का निर्माण करते हैं। भारत भक्तों की भूमि रही है। हमारी संस्कृति के संरक्षण की जिम्मेदारी हम सबकी होना चाहिए। धर्म ग्रंथ ही हमें वह मार्ग दिखा सकते हैं, जिस पर चलकर हम पाप और पुण्य में अंतर समझ सकते हैं। पाप और पुण्य हस्तांतरणीय नहीं है। भागवत का संदेश यही है कि हम नर में नारायण के भाव का दर्शन बनाए रखे। भागवत जैसी कथाएं हमारी नई पौध को संस्कारित, प्रेरित और ऊर्जावान बनाती है।

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