संस्कृत के माध्यम से ज्योतिष को पढ़ें तो भारत को विश्व गुरु बना सकते हैं

  
Last Updated:  January 12, 2023 " 05:42 pm"

इन्दौर में जुटें देशभर के 350 ज्योतिषी।

राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी में ज्योतिष-वास्तु के समसामयिक विषयों पर हुआ मंथन।

इन्दौर : भारत ने विश्व को ज्योतिष जैसे कई शास्त्र प्रदान किये हैं, किंतु वर्तमान में ज्योतिष, ज्योतिषियों और अन्य शास्त्रों की स्थिति चिंताजनक है। तिथि, वार, मुहूर्त, त्यौहार इन सभी को लेकर जनमानस में भ्रम की स्थिति बनी हुई है। एक ज्योतिषी जो फलित बताता है दूसरा उसका खंडन कर कुछ और बताता है। इसके कारण ज्योतिष का उपहास बन गया है। आम जनता का ज्योतिष पर से भरोसा उठता जा रहा है। यदि हम चाहते हैं कि भारत पुनः गौरवशाली बने तो हमें सभी शास्त्रों का उचित ढंग से अध्ययन करके नए विद्यार्थी तैयार करने होंगे, नए विद्वान तैयार करने होंगे, नए आचार्य तैयार करने होंगे। इसके लिए शास्त्रों को और उसकी अध्ययन परम्परा को प्रचलन में लाना होगा। जब तक हम मूल ग्रंथों का अध्ययन नहीं करेंगे, तब तक हम उन शास्त्रों को सम्मान नहीं दे पाएंगे और ना ही उनका ज्ञान प्राप्त कर पाएंगे, इसलिए हम संस्कृत पढ़ें और संस्कृत के माध्यम से ज्योतिष को पढ़ें तो पुनः भारत को विश्वगुरु बना पाएंगे।

यह विचार शासकीय संस्कृत महाविद्यालय इंदौर में आयोजित ज्योतिष एवं वास्तु पर आधारित राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी में सामने आए। इस अवसर पर पधारे समस्त अतिथियों का एक स्वर में मानना था कि भारतीय शास्त्र परंपरा समस्त ज्ञान का भंडार है और जब तक इनका मूल ग्रंथों के साथ अध्ययन नहीं होगा तब तक पुनः इन शास्त्रों को सम्मान दिला पाना असंभव है।

कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि थे महर्षि पतंजलि संस्कृत संस्थान के अध्यक्ष एवं राज्यमंत्री भरत बैरागी। अध्यक्षता महर्षि पाणिनी संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति विजय मेनन ने की। विशेष अतिथि संस्कृत भारती के मध्य क्षेत्र संगठन मंत्री प्रमोद पंडित, देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ रेणु जैन, संतश्री अण्णा महाराज, उच्च शिक्षा विभाग के अतिरिक्त संचालक डॉ किरण सलूजा, हिन्दू महासभा के अध्यक्ष पवन त्रिपाठी थे। अतिथियों ने कहा कि वर्तमान समय में मूल ग्रंथों को पढ़ना आवश्यक है। वेद के साथ वेदांग को पढ़ें, उसके बाद ज्योतिष को समझेंगे तो सही फलित दे पाएंगे और प्रश्नकर्ता का मार्गदर्शन कर पाएंगे। मूल प्राच्य विद्या को पहले पढ़ें। संस्कृत को पहले पढ़ें, व्याकरण को समझें, उसके बाद ज्योतिष सीखें। केवल 6 महीने की डिग्री ग्रहण करके ज्योतिषी नहीं बना जा सकता।

सम्मेलन के समन्वयक डॉ. अभिषेक पाण्डेय, आचार्य गोपालदास बैरागी ने बताया कि ने बताया कि शासकीय संस्कृत महाविद्यालय इंदौर में ज्योतिष एवं वास्तु विषय पर आधारित एक दिवसीय राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इसमें देशभर के विभिन्न विश्वविद्यालयों के प्राध्यापक, शोधार्थी तथा ज्योतिष- वास्तु के विद्वानों ने समसामयिक विषयों पर अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए। कार्यक्रम संस्था तत्त्व वेलफेयर सोसाइटी एवं शासकीय संस्कृत महाविद्यालय इंदौर के संयुक्त तत्वावधान में किया गया। इसके बाद तीन अलग-अलग सत्रों में देश के विभिन्न शहरों और विश्वविद्यालयों से लगभग 350 ज्योतिषी तथा वास्तुविदों ने भाग लिया। संगोष्ठी में स्वास्थ्य, रोजगार, शिक्षा, व्यापार, विवाह तथा स्मार्टसिटी निर्माण और वास्तु जैसे विषयों के साथ ही ज्योतिष और वास्तु के सम्बंधित विभिन्न भ्रमों का निवारण भी किया गया। इस अवसर पर विद्वानों द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले शोध पत्रों का प्रकाशन भी स्मारिका के रूप में करने की बात भी कही गई। आयोजन में ज्योतिष की विभिन्न विधाओं जैसे फलित ज्योतिष, चिकित्सा ज्योतिष अंकशास्त्र, हस्तरेखा शास्त्र, शकुनशास्त्र, कृष्णमूर्ति पद्धति, फेंगशुई, टैरोकार्ड, रमलशास्त्र, वास्तुशास्त्र के देशभर के मूर्धन्य विद्वान सम्मिलित हुए।
अन्तिम सत्र वास्तु, ज्योतिष और पितरों पर प्रश्न – उत्तर हुआ। विद्वानों ने सभी प्रश्नों के सटीक उत्तर दिए।

भारतीय राजनीति का भविष्य क्या होगा? विषय पर विद्वानों ने उत्तर दिए।

आयोजन समिति के अध्यक्ष पं. कपिल शर्मा ने कहा कि 3 राशियों पर शनि महाराज की दृष्टि है। इसके प्रभाव से मध्य प्रदेश में 17 जनवरी से अप्रैल तक कई रोमांचित कर देने वाली घटनाएं घटेंगी। कुम्भ राशि में शनि का गोचर, मीन राशि में बृहस्पति का गोचर और बृहस्पति की युति कुछ समय के लिए राहु से भी बनेगी। भारत की राजनीति का एक नया युग प्रारम्भ होगा। भारत वैश्विक स्तर पर बहुत मजबूत होगा, पर राजनीतिक द्वेष और अंतरकलह सत्तारूढ़ दलों में बढ़ेगी। युवा भारत का सपना पूरा होगा। उन्होंने कहा कि कांग्रेस का अस्तित्व खत्म ना समझें। कांग्रेस अपनी शक्ति के साथ पुनः वापसी करेगी। जिसका प्रतिफल आने वाले 5 सालों में दिखेगा। शनि ग्रह मध्यप्रदेश में और हिन्दुस्तान में 17 जनवरी के बाद राजनीति में परिवर्तन लाएंगे और उसका परिणाम जो आएगा वह बहुत रहेगा।

समापन सत्र के मुख्य अतिथि राष्ट्रकवि सत्यनारायण सत्तन थे। विशेष अतिथि पूर्व राज्य मंत्री योगेन्द्र महन्त, महामंडलेश्वर स्वामी रामगोपालदास महाराज, रणजीत हनुमान के मुख्य पुजारी दीपेश व्यास, वरिष्ठ समाजसेवी अनिल वर्मा, घनश्याम वैष्णव, विकास अवस्थी, महेश बैरागी, प्रद्युम्न दीक्षित आदि थे। प्रारम्भ में स्वागत भाषण प्राचार्य अरुणा कुसुमाकर ने दिया। विषय प्रवर्तन संस्कृत महाविद्यालय के विभागाध्यक्ष डॉ. विनायक पाण्डेय ने किया। संगोष्ठी में शोध पत्र वाचन करने वालों में संतोष भार्गव, दिनेश शर्मा गुरुजी, बालकृष्ण शास्त्री, संतोष दाधीच, राहुल शर्मा आदि प्रमुख थे। अतिथि स्वागत चंद्रभूषण व्यास, राजेश शास्त्री, विनीत भट्ट, जितेंद्र जोशी, नरेंद्र त्रिपाठी, नरेंद्र दीक्षित, गिरीश व्यास, नारायण वैष्णव, राजकुमार आचार्य, रंजना वैष्णव, ज्ञानेश्वरी देवी, माधुरी शाहपुरकर, शिवकुमार भारद्वाज, भवानीशंकर शास्त्री, हरदीपसिंह होरा, पंकज चौरसिया, बादल भारती आदि ने किया। आभार पं. महासचिव विनीत त्रिवेदी ने माना।

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