सत्य, शुचिता, धर्म और कर्म हैं भारत के स्व निर्माण का आधार

  
Last Updated:  February 17, 2024 " 12:20 am"

स्व आधारित शिक्षा ही आर्थिक उन्नति का मार्ग।

देश विचारधारा नहीं आदर्शों से श्रेष्ठ बनेगा।

धार में आयोजित नर्मदा साहित्य मंथन के पहले दिन वक्ताओं ने रखे इस आशय के विचार।

धार : विश्व संवाद केंद्र मालवा के बैनर तले धार में आयोजित नर्मदा साहित्य मंथन के तृतीय सोपान का उद्घाटन माँ नर्मदा के पूजित जल कलश की स्थापना के साथ हुआ।विश्व संवाद केंद्र के सह संयोजक शंभू मनहर एवं अध्यक्ष दिनेश गुप्ता ने पूजित जल कलश की स्थापना की। इसके बाद नर्मदाष्टक का गायन हुआ।

उद्घाटन सत्र की शुरुआत माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय के कुलगुरु डॉ. के जी सुरेश के मुख्य आतिथ्य और पद्मश्री भगवतीलाल राजपुरोहित एवं प्रज्ञा प्रवाह के राष्ट्रीय संयोजक जे नंदकुमार की उपस्थिति में दीप प्रज्वलन के साथ किया गया।

नर्मदा साहित्य मंथन के संयोजक डॉ मुकेश मोढ़ द्वारा कार्यक्रम की रूपरेखा एवं परिकल्पना के विषय में जानकारी दी गईं।

राजा भोज रचित शास्त्र पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए है उपयोगी।

मुख्य अतिथि डॉ.के जी सुरेश ने अपने उद्बोधन में कहा कि राजा भोज द्वारा रचित शास्त्र पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए जीवन के प्रत्येक आयाम को समझने का आदर्श माध्यम हैं।

राजा भोज ने लिखे करीब 84 ग्रंथ।

पद्मश्री राजपुरोहित ने राजा भोज के साहित्य , शासन एवं वास्तुशिल्प पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि राजा भोज ने लगभग 55 वर्ष तक शासन किया और साहित्य, ज्योतिष,आयुर्वेद,शिल्प, राजनीति जैसे विषयों पर लगभग 84 ग्रंथ लिखे।

सत्य, शुचिता भारत के स्व निर्माण का आधार।

उद्घाटन सत्र के मुख्य वक्ता जे नंदकुमार ने भारत के स्व की अवधारणा पर अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि राष्ट्र स्वयं को प्रकाश के मार्ग पर चलाने का एक उपकरण है। सत्य, शुचिता, धर्म और कर्म भारत के स्व के निर्माण का आधार हैं। देश अपने प्रतीक चिन्हों को उनके स्व के आधार पर चुनते हैं। चाइना ने ड्रैगन को चुना क्योंकि वह आक्रमण का समर्थक हैं जबकि भारत का चिन्ह गाय है को शांति के प्रतीक के रूप में स्थापित हैं।

स्व आधारित शिक्षा ही आर्थिक उन्नति का मार्ग।

प्रथम सत्र स्व आधारित शिक्षा पद्धति पर केंद्रित रहा। भारतीय शिक्षण मण्डल के राष्ट्रीय सचिव मुकुल कानिटकर ने इस विषय पर अपने विचार रखे। उन्होंने कहा भारत को निरक्षर करने का काम अंग्रेजों ने किया। स्व आधारित शिक्षा के आधार पर ही हम भारत को आर्थिक रूप से संपन्न कर पायेंगे। उन्होंने कहा छात्र यदि परिणाम की बजाय प्रयासों पर ध्यान केंद्रित करेंगे तो ही सफल हो पाएंगे। उन्होंने माता पिता से आग्रह किया कि वे अपने बच्चों से प्रेम करते हैं तो उन्हें अंग्रेज़ी माध्यम के स्कूल में ना पढ़ायें। शिक्षण व्यवस्था में परिवर्तन समाज के माध्यम से ही संभव है।

देश का कौशल बाहर जा रहा है।

पहले दिन का द्वितीय सत्र वैश्विक परिदृश्य और वर्तमान भारत विषय पर केंद्रित रहा जिसमें स्वामी विज्ञानानन्द ने अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि देश के स्व को मज़बूत करने के लिए अर्थव्यवस्था, तकनीक , शिक्षा और रक्षा को मज़बूत करने की आवश्यकता हैं। उन्होंने कहा 18 लाख से अधिक विद्यार्थी हर साल शिक्षा प्राप्त करने के लिए देश से बाहर जाते हैं। इनके साथ देश का कौशल भी देश से बाहर जा रहा हैं। इनके देश में रहने से अर्थव्यवस्था मज़बूत होगी।

देश विचारधारा नहीं आदर्शों से श्रेष्ठ बनेगा।

तृतीय सत्र भारत के आत्मबोध का स्वरूप और आधार विषय पर केंद्रित रहा। विषय प्रवर्तन ख्यात इतिहासकार एवं समाज वैज्ञानिक रामेश्वर मिश्र पंकज ने किया। उन्होंने कहा कि अंग्रेज भारत को लूटने के उद्देश्य से आये थे। अंग्रेजों के आने के पूर्व भारत के इतिहास में कही भी ग़ुलामी का वर्णन नहीं है। हमें आत्मबोध के लिए शास्त्रों की शरण में जाना होगा। राज्य विचारधारा से नहीं आदर्शों से श्रेष्ठ बनेगा। आत्मबोध की साधना से राजा तेजस्वी होता हैं। जनता की भावनाओं का सम्मान ही लोकतंत्र का मूल है।
भारत में समाजवाद और सेकुलरिज्म की कोई परिभाषा नहीं दी गई, यदि इसकी परिभाषा हिंदू द्रोह है तो इसे हटाना ही चाहिए।

कोई भी पश्चिमी देश सेक्युलर नहीं है।

उन्होंने कहा कि सेकुलरिज्म केवल ईसाई धारणा है, पश्चिमी देश भी सेक्युलर नहीं हैं, वे ऑर्थोडॉक्स हैं, प्रोटेस्टेंट हैं या कैथोलिक हैं, भारत को सेक्युलर घोषित करना ही गलत था।

जनजातीय समाज में परोपकार की परंपरा रही है।

चतुर्थ सत्र में जनजातीय समाज भ्रम और वास्तविकता विषय पर शिवगंगा अभियान झाबुआ के पद्मश्री मुकेश शर्मा ने विचार रखे। उन्होंने कहा कि जनजातीय समाज में परोपकार की परंपरा रही हैं जिसका जीवंत प्रमाण हलमा परंपरा हैं। जिसके माध्यम से जल संरक्षण का एक बड़ा प्रकल्प झाबुआ में चल रहा हैं। पलायन जनजाति समाज की मजबूरी हैं अन्यथा कोई अपनी जन्मभूमि छोड़कर नहीं जाता। जनजाति समाज में महिलाएँ सशक्त हैं। भौतिक सुविधाएँ कम होने के बाद भी उनका आर्थिक प्रबंधन अच्छा हैं। सामाजिक विषमता ही जनजाति समाज के पिछड़ेपन का मुख्य कारण हैं।

तीन दिवसीय नर्मदा साहित्य मंथन में शनिवार को दुसरे दिन भी विभिन्न विषयों पर विचार रखे जाएंगे।

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